उत्तराखंड उत्तरकाशीHardev Rana of Uttarkashi earned a tremendous amount of self-employment

पहाड़ के हरदेव राणा..स्थानीय उत्पादों से शुरू किया स्वरोजगार, अब हर महीने शानदार कमाई

उत्तरकाशी के हरदेव सिंह हिमालय रवाईं हाट नामक दुकान चलाते हैं। वहां वे स्थानीय उत्पादों का व्यवसाय करते हैं

Uttarkashi Hardev Rana: Hardev Rana of Uttarkashi earned a tremendous amount of self-employment
Image: Hardev Rana of Uttarkashi earned a tremendous amount of self-employment (Source: Social Media)

उत्तरकाशी: उत्तराखंड में कई ऐसे लोग हैं जो ग्रामीण क्षेत्रों में रहकर स्वरोजगार को बढ़ावा दे रहे हैं और उसको अपना कर अपने साथ-साथ और भी कई लोगों को आर्थिक मजबूती प्रदान कर रहे हैं। लोगों के बीच यह धारणा पल रही है कि गांव में रहकर वे शहर जितना पैसा नहीं कमा सकते हैं। इस मिथ को कई लोग तोड़ते नजर आ रहे हैं और गांव में रहकर ही वह शहरों में रहने वाले लोगों से कहीं बेहतर आय प्राप्त कर रहे हैं। उत्तराखंड में स्वरोजगार की बेहतरीन मिसाल पेश करने पर एक ऐसे ही व्यक्ति को उद्योग विभाग, उत्तरकाशी की ओर से प्रथम पुरस्कार मिल चुका है। हम बात कर रहे हैं हरदेव सिंह राणा की जो 15 वर्षों तक सामाजिक संस्था सिद्ध मसूरी में काम करने के बाद 2006 में नौगांव ब्लॉक के खांशी गांव लौटे और उन्होंने स्वरोजगार की यात्रा आरंभ की। वर्तमान में उनका व्यवसाय दिन दोगुनी, रात चौगुनी तरक्की कर रहा है, जिसके बाद उन को उत्तरकाशी के उद्योग विभाग की ओर से स्वरोजगार चलाने पर प्रथम पुरस्कार प्राप्त हो चुका है।

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हरदीप सिंह राणा 2006 में स्वरोजगार के पथ की ओर अग्रसर हुए। उन्होंने ग्रामीण स्तर पर ही स्थानीय उत्पादों को खरीदना शुरू किया। उन्होंने नौगांव में हिमालय रवाईं हाट के नाम से एक दुकान खोली और दुकान में स्थानीय उत्पादों को बेचकर उन्होंने व्यवसाय शुरू किया। शुरुआत में उनको काफी कठिनाई हुई, मगर उन्होंने धैर्य रखा और हिम्मत से काम लिया जिसके बाद में उनका व्यवसाय बहुत तेजी से बढ़ता गया। अब वह महीने का तकरीबन 40 हजार रूपए तक कमा लेते हैं। वर्तमान में हरदेव सिंह राणा ने अपने स्वरोजगार में गांव के अन्य लोगों को भी शामिल कर लिया है और वे उनको भी रोजगार प्रदान कर रहे हैं। स्वरोजगार का यह अनोखा आइडिया उनके दिमाग में तब आया जब वह गांव से दूर शहर में कार्य कर रहे थे। हरदेव सिंह राणा अर्थशास्त्र से पोस्ट ग्रेजुएट हैं और 1988 से 1992 तक वे सरस्वती शिशु मंदिर नौगांव में अध्यापक रहे। उसके बाद 1992 से लेकर 2006 तक वे सिद्ध संस्था मसूरी में कार्यरत थे। आगे पढ़िए

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उन्होंने तकरीबन 40 गांव के ग्रामीणों के साथ-साथ शिक्षा, कृषि, महिला उत्थान और गांव में ही आजीविका बढ़ाने को लेकर काम किया। जिसके बाद उन्होंने इस काम को धरातल पर लाने की सूची और उन्होंने अपने गांव वापस आकर हिमालय रवाईं हाट के नाम से दुकान खोली और दुकान में स्थानीय उत्पादों को बेचना शुरू किया। हरदेव सिंह राणा अपनी नौगांव स्थित दुकान में मंडुवा, जौं, राजमा, झंगोरा, कौंणी, , गहत, छेमी, मसूर, सोयाबीन, जख्या, तिल, धनिया, मिर्च, मेथी, मक्की बेचते हैं। इसी के अलावा वे बुरांश, गुलाब, पुदीना, आंवाला, नींबू, माल्टा, अनार, सेब के जूस के साथ आम, मिक्स अचार, लहसुन, करेला आदि के अचार भी दुकान में रखते हैं। दलहन बीज में राजमा, छेमी, लोबिया, गहत, सोयाबीन, काले सोयाबीन, बीन समेत बेलदार सब्जियों के बीज भी उपलब्ध है। वहीं अन्य उत्पादों में स्थानीय स्तर पर तैयार किए गए घिलडे, रिंगाल की टोकरी, सूप, फूलदान, आदि सामान उपलब्ध हैं। हरदेव सिंह राणा बताते है कि उनके इस स्वरोजगार में उनकी पत्नी कमला राणा भी शामिल हैं और वे भी इसमें हाथ बंटाती हैं।