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उत्तराखंड: अपमाननीय हरकतों वाले माननीय ! पढ़िए इन्द्रेश मैखुरी का ब्लॉग

उत्तराखंड ने इस गलीजपने के चैंपियन को विधायकी दी और उसने उत्तराखंड को गाली दी। पढ़िए वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार इन्द्रेश मैखुरी का ब्लॉग

Kunwar Pranab Singh MLA: Champion come back in bjp Indresh maikhuri blog
Image: Champion come back in bjp Indresh maikhuri blog (Source: Social Media)

देहरादून: चारों तरफ चर्चा है “चैंपियन भाजपा में वापस ले लिए गए।” कोई बताए,काहे के चैंपियन : गालीबाजी के, गोलीबाजी के, फूहड़पने के, अश्लील घटियापने के ! उत्तराखंड ने इस गलीजपने के चैंपियन को विधायकी दी और उसने उत्तराखंड को गाली दी। जिसके पास जो है,वो, वही दे सकता है। इनके पास फूहड़पना है,अश्लीलता की हद तक पतित तौर तरीके हैं, गाली और गोली है तो उत्तराखंड को कुछ और क्या मिल सकता है,उनसे ?
जिस पार्टी ने इन हजरात को वापस लेने में इतनी दिलचस्पी दिखाई,उनके यहाँ गाली-गलौच करने वालों की कमी हो गयी होगी या गोलीबाजी करने वालों के अभाव से जूझ रहे होंगे, वे ! वरना ऐसी क्या जरूरत आन पड़ी थी,इनकी वापसी की? निलंबन में हुई हील-हुज्जत और वापसी में दिखाई गयी फुर्ती से तो ऐसा ही जाहिर होता है कि गालीबाजी, गोलीबाजी, अश्लीलता और फूहड़ता के इस कॉकटेल की उन्हें भारी कमी महसूस हो रही थी। जैसे किसी के शरीर में एनीमिया यानि रक्ताल्पता अर्थात खून की कमी हो जाये तो डॉक्टर तज़वीज़ करते हैं कि ऐसे व्यक्ति के शरीर में खून चढ़ाया जाये। ऐसे ही “चाल,चरित्र, चेहरे” वाली पार्टी के शरीर में बीते एक बरस से गालियों,अश्लीलता और फूहड़ता की कमी महसूस की जा रही होगी ! इन तत्वों के डोज़ में, यह कमी, प्राणघातक न बन जाये,इसलिए छह साल के लिए निष्काषित गाली,गोली,फूहड़ता,अश्लीलता के चैंपियन की साल भर में “घर वापसी” करवा दी गयी है। “चाल,चरित्र, चेहरे” का तो कहना ही क्या,संजय कुमार से लेकर महेश नेगी तक,नित नए “चैंपियन” उभर रहे हैं !

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नैनीताल के सांसद अजय भट्ट जी के अनुसार गाली,गोली,फूहड़ता,अश्लीलता के ये चैंपियन, बड़े विद्वान और कई भाषाओं के ज्ञाता हैं। संसदीय भाषा के अतिरिक्त असंसदीय भाषा के इनके ज्ञान और प्रतिभा से लगता है,भट्ट जी काफी प्रभावित हैं ! पूरे राज्य को अंग विशेष पर रखने के कथन के दौरान फूहड़ता और अश्लीलता की जो दैहिक भाषा वाइरल हुई,उस पर भी लगता है कि भट्ट जी खासे रीझे हुए हैं ! इसके अतिरिक्त तो इस प्रशंसा का कोई अन्य कारण नजर नहीं आता। अन्यथा की स्थिति में उक्त व्यक्ति के विद्वान होने में उतनी ही हकीकत नज़र आती है,जितनी पातालगंगा के गंगलोड़ों से गर्भवती महिलाओं के इलाज के दावे की हकीकत है।
यह किसी एक व्यक्ति और उसके आचरण का सवाल मात्र नहीं है। सवाल तो है कि लोकतंत्र कैसे “चैंपियनों” के हाथ फंसा हुआ है। राजनीति के अन्तःपुरों की झलक भर दिखे तो पता चलेगा कि ऐसे “चैंपियनों” की भरमार है,बहुतायत है ! जो “चैंपियनों” की उक्त प्रजाति के नहीं हैं,वे तो लुप्तप्राय हैं। सत्ता में आने-जाने वाली पार्टियां ऐसे “चैंपियनों” को सिर माथे बैठाने को उतावली हैं। गाली, गोली, फूहड़ता, अश्लीलता के चैंपियन की राजनीतिक यात्रा से इस तथ्य की तस्दीक की जा सकती है। यह व्यक्ति उत्तराखंड की सत्ता में बारी-बारी से बैठने वाली दोनों पार्टियों के विधायक दल का हिस्सा रहा है। सड़क छाप शोहदों जैसे हरकत करने वाले ऐसे लोगों को महिमामंडित करने के लिए दबंग और बाहुबली जैसे तमगे दिये जाते हैं। जिनकी हरकतें कतई अपमाननीय हैं,वे “माननीय” संबोधन के साथ ऐंठते हुए देखे जा सकते हैं। “भगत”,उनकी आवभगत में खड़े हैं !
लोकतंत्र कब तक अपमाननीय किस्म के “माननीयों” के हाथों का खिलौना रहेगा,यह सबसे बड़ा सवाल है। अंततः लोगों को ही तय करना होगा कि वे कब तक इन अपमाननीय हरकतें करने वालों को “माननीय” को बर्दाश्त करते रहेंगे ?