उत्तराखंड टिहरी गढ़वालPaneer village uttarakhand tehri garhwal

उत्तराखंड का ‘पनीर’ वाला गांव, यहां स्वादिष्ट पनीर बना रोजगार का जरिया..कमाई भी शानदार

एक वक्त था जब ये गांव पहाड़ के दूसरे इलाकों की तरह पलायन से जूझ रहा था। रोजगार के अवसर सीमित थे, लेकिन आज इस गांव को यहां बनने वाले स्वादिष्ट पनीर के लिए जाना जाता है।

Rautu ki beli: Paneer village uttarakhand tehri garhwal
Image: Paneer village uttarakhand tehri garhwal (Source: Social Media)

टिहरी गढ़वाल: मन में कुछ करने का जज्बा हो तो चुनौतियां खुद ब खुद अवसर में तब्दील हो जाती हैं। मसूरी के पास स्थित रौतू की बेली गांव ने इस बात को सच कर दिखाया है। रौतू की बेली गांव को उत्तराखंड के पनीर गांव के नाम से जाना जाता है। एक वक्त था जब ये गांव पहाड़ के दूसरे इलाकों की तरह पलायन से जूझ रहा था। रोजगार के अवसर सीमित थे, लेकिन आज इस गांव को यहां बनने वाले स्वादिष्ट पनीर के लिए जाना जाता है। गांव का हर परिवार दूध से बने उत्पादों की बिक्री कर हर महीने 15 से 35 हजार रुपये कमा रहा है। पनीर उत्पादन के लिए मशहूर ये गांव दुग्ध निर्मित उत्पादों में नए आयाम स्थापित कर रहा है। चलिए आपको इस गांव के बारे में और जानकारियां देते हैं। टिहरी जिले के जौनपुर ब्लॉक में स्थित रौतू की बेली गांव में 250 परिवार रहते हैं। गांव की आबादी करीब 1500 के आसपास है। एक वक्त था जब ये गांव सिर्फ खेती और पशुपालन पर निर्भर था। गांव के लोग मसूरी और देहरादून जाकर दूध बेचा करते थे। आमदनी का जरिया सीमित था। इस बीच गांव के लोगों ने मसूरी में कुछ लोगों को पनीर बेचते देखा। आगे पढ़िए

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तब उन्होंने सोचा कि क्यों ना दूध की जगह पनीर की बिक्री शुरू की जाए। ग्रामीणों ने पनीर बनाने का काम एक प्रयोग के तौर पर शुरू किया, जो कि आज एक बड़े व्यवसाय का रूप ले चुका है। गांव में बना पनीर मसूरीवासियों को इस कदर भाया कि धीरे-धीरे इसकी मांग बढ़ती गई। पनीर उत्पादन ने इस गांव को पहचान दिलाई, साथ ही यहां के युवाओं को रोजगार भी दिया। पहले गांव के 35 से 40 परिवार ही पनीर बनाते थे, लेकिन अब गांव के सभी परिवार इस व्यवसाय से जुड़ चुके हैं। हर परिवार रोजाना 2 से 4 किलो तक पनीर तैयार कर लेता है। बाजार में एक किलो पनीर 220 रुपये से 240 रुपये किलो में बिक जाता है। जिससे ग्रामीणों को अच्छी आमदनी हो रही है। ये गांव क्योंकि सड़क मार्ग से जुड़ा है, इसलिए यहां बनने वाले उत्पादों और फल-सब्जियों को मसूरी, देहरादून और उत्तरकाशी के बाजार तक आसानी से पहुंचाया जा सकता है। ग्रामीणों का कहना है कि दूध बेचने की बजाय पनीर उत्पादन में ज्यादा फायदा है। अब तो गांव के युवा भी रोजगार के लिए शहर जाने की बजाय पनीर उत्पादन में रुचि दिखाने लगे हैं। जो कि गांव के लिए अच्छा संकेत है।