देहरादून: उत्तराखंड से एक बेहद बुरी खबर हमारे सामने आ रही है। उत्तराखंड राज्य आंदोलन के बलिदानों के निशानी को सुरक्षित करने के लिए बीते 15 सालों से स्थाई संग्रहालय बनाने की मांग कर रहे वरिष्ठ राज्य आंदोलनकारी बीएल सकलानी का बीते शनिवार की रात को दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया है। यह राज्य के लिए बड़ी क्षति है। बीते शुक्रवार को ही उन्होंने कचहरी स्थित शहीद स्मारक में बने मंदिर के अंदर खुद को पेट्रोल की बोतल के साथ बंद कर आत्मदाह करने की कोशिश भी की थी। कल उनके निधन की खबर सुनते ही राज्य के बड़े आंदोलनकारियों के बीच शोक पसर गया। उन्होंने बीएल सकलानी के निधन पर शोक जताते हुए कहा कि 15 सालों से राज्य आंदोलन के बलिदानों की तमाम एक जगह पर सुरक्षित करने को लेकर स्थाई संग्रहालय बनाने की सरकार से लगातार मांग कर रहे थे। उनके निधन के बाद उनके लिए सबसे बड़ी श्रद्धांजलि यही होगी कि सरकार उनकी इस मांग को पूरा कर दें और तमाम आंदोलनकारियों एवं शहीदों के लिए स्थाई संग्रहालय बनवाएं।
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उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी मंच के जिला अध्यक्ष प्रदीप कुकरेती ने वरिष्ठ आंदोलनकारी बीएस सकलानी के निधन की पुष्टि की है। उन्होंने बताया कि बीते शनिवार को उन्हें दिल का दौरा पड़ा जिसके बाद उन को आनन-फानन में दून अस्पताल ले जाया गया जहां पर तकरीबन रात के साढ़े 9 बजे उन्होंने आखिरी सांस ली। उनका पार्थिव शरीर इस समय मोर्चरी में है और कोरोना के टेस्ट के बाद ही उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा। बता दें कि अपने निधन से एक दिन पहले भी उन्होंने राज्य सरकार के अनदेखे व्यवहार के खिलाफ एक बड़ा कदम उठाया था। बीते शुक्रवार को आत्मदाह की कोशिश के मामले में देर शाम को सिटी मजिस्ट्रेट ने उन्हें छोड़ दिया था और उसके बाद पुलिस उन्हें डालनवाला स्थित उनके आवास पर छोड़ने गई थी। अगले ही दिन यानी कि शनिवार को दिल का दौरा पड़ने से उनकी मृत्यु हो गई।
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बता दें कि बीते शुक्रवार को कचहरी स्थित शहीद स्मारक में उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी बीएल सकलानी एक बोतल में पेट्रोल लेकर पहुंचे और उन्होंने शहीदों की पूजा के लिए बनाए गए कमरे के अंदर खुद को ताला लगाकर बंद कर दिया। जिसके बाद आसपास के लोगों के बीच में हड़कंप मच गया और उन्होंने तुरंत पुलिस को इसकी सूचना दी। पुलिस मौके पर पहुंची और पानी की बौछारें करके और ताला काट कर उनको बाहर निकाला गया। इस दौरान बियर सकलानी ने कहा कि लंबे समय से सरकार राज्य आंदोलनकारियों की मांगों को दबाने में लगी हुई है सकलानी ने कहा कि उन्होंने खुद का एक स्थाई संग्रहालय बनाया है मगर इसके बावजूद भी उसके संरक्षण के लिए सरकार एक भवन तक नहीं बना रही है। उन्होंने अपनी मृत्यु से 1 दिन पहले भी अपनी जिंदगी आंदोलन को सौंप दी थी। उनका यह कहना था कि आने वाली पीढ़ी के लिए आंदोलनकारियों और शहीदों की निशानी को सुरक्षित करने के लिए स्थाई स्थान बनाया जाना बेहद जरूरी है। मगर हर साल शासन की ओर से इस ओर कोई भी कार्यवाही नहीं की जाती है।