उत्तराखंड पिथौरागढ़Benefit of Chestnut fruit uttarakhand

पहाड़ का अमृत..गठिया समेत कई रोगों का इलाज है ये फल, कमाई का भी शानदार जरिया

उत्तराखंड का यह कांटेदार फल कई बीमारियों से लड़ने में सहायक हैं। यह गठिया रोग को जड़ से खत्म करने में रामबाण माना जाता है

Pangar fruit: Benefit of Chestnut fruit uttarakhand
Image: Benefit of Chestnut fruit uttarakhand (Source: Social Media)

पिथौरागढ़: उत्तराखंड को प्रकृति का कोई अनोखा वरदान प्राप्त है। प्राकृतिक जड़ी-बूटियों का भंडार देवभूमि अपने कई प्राकृतिक फलों और हरी-भरी सब्जियों के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध है। उनके अंदर कई ऐसे औषधीय गुण मौजूद रहते हैं जिनसे हम अनजान रहते हैं मगर फिर भी कुछ पौधों और फलों का हम अनायास सेवन कर लेते हैं। राज्य में मौजूद गुणों की खादान लिए और बड़ी से बड़ी बीमारियों की क्षमता रखने वाले फल एवं सब्जियों के बारे में राज्य समीक्षा पर समय-समय पर आपको जानकारी मिलती रहती है। एक ऐसा ही पौष्टिक फल है जिसे कुमाऊं में पांगर के नाम से जाना जाता है। आपको बता दें कि इस फल में काफी कांटे होते हैं जिस कारण इस फल को इतना अधिक नहीं खाते हैं। मगर अगर आप इसके औषधीय गुणों से अवगत होंगे तो आप हैरान रह जाएंगे। चलिए आपको बताते हैं कि कुमाऊं में पांगर के नाम से प्रचलित यह उत्तराखंड का कांटेदार फल कितना पौष्टिक है उसके अंदर क्या-क्या गुण हैं जो कि कई बीमारियों से लड़ने में सहायक हैं।

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चेस्टनेट अथवा पांगर में कई औषधीय गुण मौजूद होते हैं और यह गठिया रोग को जड़ से खत्म करने में भी बेहद कारगर है जिस कारण इसकी मार्केट में अच्छी-खासी मांग है। बाजार में पांगर 300 से लेकर 400 रुपये प्रति किलो तक बिकता है जिस कारण यह स्वरोजगार का भी जबरदस्त साधन है। जून और जुलाई के माह में इसके पेड़ से फूल आते हैं तथा सितंबर-अक्टूबर तक फल भी पक जाते हैं। यह फल दक्षिण पूर्वी यूरोप में भी खूब मिलता है उसको वहां चेस्टनट के नाम से जाना जाता है। यह फल उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। यह फल बहुत मीठा होता है और इसी के साथ औषधीय गुणों से भरपूर होता है। बता दें कि पांगर के नियमित सेवन से गठिया रोग हमेशा-हमेशा के लिए चला जाता है। गठिया रोग के लिए इस फल को बेहद कारगर दवा के रूप में लिया जाता है।

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यह पर्वतीय क्षेत्रों में भूस्खलन को रोकने और जल संरक्षण के लिए भी बेहद उपयोगी है। लगभग 1500 से अधिक ऊंचाई वाले पांगर वृक्ष की औसत आयु 300 साल से भी अधिक होती है। जौरासी रेंज के वन क्षेत्राधिकारी मोहन राम आर्या ने बताया बताया कि इस वृक्ष का फल बाहर से नुकीले कांटों की परत से ढका रहता है। फल पकने के बाद यह खुद-ब-खुद गिर जता है। इसके कांटेदार आवरण को निकालने के बाद इसके फल को निकाल लिया जाता है। इसे हल्की आंच में भूना या उबाला जाता है। फिर इसका दूसरा आवरण चाकू से निकालने के बाद इसके मीठे गूदे को खाया जाता है। यदि पांगर फल को व्यवसायिक खेती के रूप में उगाया जाएगा तो निश्चित तौर पर अच्छी आर्थिक कमाई की जा सकती है क्योंकि यह बाजार में 300 से 400 रुपए किलो मिलता है और इसकी मार्केट में जबरदस्त डिमांड है।