उत्तराखंड देहरादूनUttarakhand state agitator Amit Oberoi

उत्तराखंड आंदोलनकारी अमित का हाल देखिए..23 साल से बिस्तर पर पड़े हैं

अमित के शरीर का निचला हिस्सा पूरी तरह बेजान हो चुका है। वो 23 साल से बिस्तर पर पड़े हैं। पहले तमाम मुख्यमंत्री, नेता और विधायक उनसे मिलने आया करते थे, लेकिन अब कोई उनकी सुध नहीं ले रहा।

Amit Oberoi Uttarakhand agitator: Uttarakhand state agitator Amit Oberoi
Image: Uttarakhand state agitator Amit Oberoi (Source: Social Media)

देहरादून: जिंदगी सुख और दुख का संगम है। यहां सब कुछ अच्छा हो यह जरूरी नहीं। हमें जिंदगी से कई शिकायतें होती है, उतार-चढ़ाव हमें भीतर से तोड़ देते हैं, लेकिन हमारे ही बीच कुछ ऐसे लोग भी हैं, जिन्होंने तमाम परेशानियां झेलने के बावजूद जीने की उम्मीद हमेशा जगाए रखी। आज हम आपको एक ऐसे ही शख्स से मिलाने जा रहे हैं। इनका नाम है अमित ओबरॉयदेहरादून के रहने वाले अमित के शरीर का निचला हिस्सा पूरी तरह बेजान हो चुका है। वो 23 साल से बिस्तर पर पड़े हैं। उनके कंधे से नीचे का हिस्सा पूरी तरह निष्क्रिय है। ऐसे में जरा सोचिए जब हमें लॉकडाउन में सिर्फ घर के भीतर रहने मात्र से ही घुटन होने लगी थी, तो अमित ने पिछले 23 साल कैसे काटे होंगे। अमित की ये हालत कैसे हुई, चलिए बताते हैं। आगे पढ़िए

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बात 2 अक्टूबर1995 की है। उस वक्त अमित 11वीं में पढ़ते थे। उन दिनों उत्तराखंड आंदोलन चरम पर था। मुजफ्फरनगर कांड की बरसी मनाने के लिए आंदोलनकारी रिस्पना पुल पर जमा थे। जिनमें अमित भी शामिल थे। तभी पुलिस ने अचानक लाठीचार्ज शुरू कर दिया। जिससे वहां भगदड़ मच गई। इसी भगदड़ के दौरान अमित पुल से नीचे गिर गए, जिस वजह से उनकी रीढ़ की हड्डी टूट गई। आज इस घटना को 23 साल हो गए हैं और अमित तब से बिस्तर पर पड़े हैं। अमित अब फेसबुक के जरिए दुनिया से जुड़े रहते हैं। उन्होंने दुनियाभर में उनके जैसी समस्या से जूझ रहे 150 लोग ढूंढ निकाले हैं। ये सभी लोग सोशल मीडिया के जरिए अपना दुख-सुख बांटकर एक दूसरे का हौसला बढ़ाते हैं। अमित फेसबुक यूज करने के लिए साउंड पहचानने वाले सॉफ्टवेयर की मदद लेते हैं।

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अब भी अमित के इलाज और देखभाल में हर महीने बड़ी रकम खर्च हो रही है। अमित कहते हैं कि मुझे जिंदगी से कोई शिकायत नहीं, लेकिन मैं ये जरूर चाहता हूं कि सरकार मेरे इलाज का सारा खर्चा उठाए, ताकि मेरी बूढ़ी मां को थोड़ी राहत मिल सके। अमित को आंदोलनकारी कोटे से हर महीने 10 हजार रुपये बतौर पेंशन मिलते हैं, लेकिन बढ़ती महंगाई के दौर में ये रकम काफी नहीं है। 41 साल के अमित प्रगति विहार में रहते हैं। अमित बताते हैं कि उत्तराखंड आंदोलन के दौरान सिर्फ दो लोग पूर्ण रूप से विकलांग हुए थे, जिनमें से एक वो खुद हैं। वो कहते हैं कि पहले तमाम मुख्यमंत्री, नेता और विधायक उनसे मिलने आते थे, मदद का आश्वासन देते थे। लेकिन अब कोई उनकी सुध नहीं ले रहा। अमित ने राज्य सरकार से इलाज के लिए आर्थिक मदद मुहैया कराने की अपील की, ताकि उनकी दुश्वारियां थोड़ी कम हो जाएं।