नैनीताल: कोरोना को लोग भले ही कोस रहे हों, लेकिन इसी कोरोना के चलते लगे लॉकडाउन ने हमें एक बार फिर प्रकृति की तरफ लौटने का मौका दिया है। लॉकडाउन में नदियां स्वच्छ हो गईं, हवा साफ हो गई और प्रकृति एक बार फिर से खुलकर सांस लेने लगी। कोरोना लॉकडाउन का एक पॉजिटिव इंपेक्ट नैनीताल में भी दिख रहा है। जहां 110 साल बाद वो हुआ, जिसकी सबने उम्मीद ही छोड़ दी थी। यहां अब दुर्लभ तितलियां और पतंगों का झुंड नजर आने लगा है। रंग-बिरंगी इठलाती तितलियों को देख वन्यजीव प्रेमी खुश हैं। इसे लेकर शोधकर्ताओं ने शोध शुरू कर दिया है। माना जा रहा है कि इस साल कोरोना के चलते लगे लॉकडाउन की वजह से दुर्लभ तितलियां हिमालय के इस रीजन में नजर आई हैं। कोरोना के चलते लोग तमाम नुकसान की बातें कर रहे हैं, लेकिन प्रकृति को इससे फायदा ही हुआ है। आगे पढ़िए
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खासतौर पर बात करें उत्तराखंड की तो यहां की नदियां साफ हो गईं। इस साल जंगलों में आग लगने की घटनाएं बहुत कम हुईं। यहां एक बार फिर दुर्लभ जीवों की मौजूदगी दर्ज की जा रही है। इसी कड़ी में उत्तराखंड वन विभाग में जूनियर रिसर्च फेलो अंबिका अग्निहोत्री ने तितली की एक दुर्लभ प्रजाति पपिलियो अल्केलनॉर खोजी है। इस साल जुलाई में ये तितली मुक्तेश्वर इलाके में नजर आई। इसे दस दशक के बाद देखा गया। पपिलियो अल्केलनॉर आमतौर पर पूर्वी-हिमालयी क्षेत्र में पाई जाती है। इसे पश्चिमी हिमालय में 110 साल के बाद देखा गया। उत्तराखंड में मिल रही दुर्लभ तितलियों और पतंगों ने विशेषज्ञों को उत्साहित किया है। पिछले कई सालों से कम ऊंचाई पर इतनी अधिक संख्या में तितलियों को पहले कभी नहीं देखा गया जितनी इस साल दिखाई दीं।
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मुक्तेश्वर में ही नहीं भवाली में भी दुर्लभ तितलियों को देखा गया। भीमताल के अनुभवी एंटोमोलॉजिस्ट और बटरफ्लाई रिसर्च सेंटर के संस्थापक पीटर स्मेटसेक कहते हैं कि इस साल लॉकडाउन के चलते जंगल में आग लगने की घटनाएं बहुत कम हुईं। जंगल की आग और तितलियों की आबादी के बीच सीधा संबंध है। जंगल में लगी आग तितलियों की पूरी आबादी का सफाया कर सकती है। इस साल जंगल में आग लगने की घटनाएं कम हुईं, जिस वजह से तितलियां सालों बाद क्षेत्र में लौट आईं। वन विभाग के आंकड़ों के अनुसार इस साल जून तक राज्य में वन में आग लगने की 134 घटनाएं हुईं। जबकि पिछले साल ये आंकड़ा 2,150 से ज्यादा था। आपको बता दें कि कुछ दिन पहले टिहरी के देवलसारी में भी दिन में उड़ने वाले दुर्लभ पतंगे अचेलुरा बिफासिटा को देखा गया था। यह पतंगा भी 1893 के बाद पहली बार देखा गया है।