उत्तराखंड चमोलीYak of Uttarakhand Niti Valley

उत्तराखंड में मौजूद हैं तिब्बत जैसे याक..जानिए 1962 युद्ध की वो कहानी, जब ये यहीं छूटे थे

अब उत्तराखंड में भी तिब्ब्त-कश्मीर की तरह याक देखने को मिलेंगे। इन याकों का तिब्बत से उत्तराखंड तक का सफर बेहद रोचक है। आप भी जानिए इन याकों के पहाड़ों तक पहुंचने का सफर-

Uttarakhand Yak: Yak of Uttarakhand Niti Valley
Image: Yak of Uttarakhand Niti Valley (Source: Social Media)

चमोली: "तिब्बत का बैल" के नाम से मशहूर याक बर्फीली वादियों के बीच देखा जा सकता है। बर्फीले इलाकों में पाए जाने वाला यह जानवर आमतौर पर कश्मीर और तिब्बत में देखा जाता है। मगर अब यदि आपको याक देखना है तो आपको तिब्बत और कश्मीर जाने की जरूरत नहीं है क्योंकि अब ये याक उत्तराखंड में भी दिखने लगे हैं। जी हां, यह अचंभे वाली है। अब आप सोच रहे होंगे कि याक उत्तराखंड में कैसे आए तो इसके पीछे भी बड़ा कारण है जो हम आपको आगे बताएंगे। आप यह भी सोच रहे होंगे कि उत्तराखंड में याक कहां पर हैं। चमोली वह जिला है जहां वर्तमान में 9 याक मौजूद हैं। इन याकों के संरक्षण के लिए पशुपालन विभाग लाता गांव में एक बाड़ा तैयार कर रहा है जिसमें याकों के लिए शेल्टर का निर्माण किया जाएगा और उसी के साथ-साथ उनका ख्याल रखने के लिए चौकीदार भी तैनात किया जाएगा। बता दें कि चमोली के जोशीमठ विकासखंड के उच्च हिमालय क्षेत्रों में तापमान कम होने से बर्फबारी शुरू हो गई है और इसके बाद नीती घाटी के जंगलों में रहने वाले याकों का झुंड अब आबादी क्षेत्रों की ओर बढ़ता हुआ नजर आ रहा है

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नीती घाटी के लाता गांव के आसपास याकों का झुंड इन दिनों विचरण करता हुआ देखा जा सकता है। बता दें कि घाटी में इस समय कुल 9 याक मौजूद है और उनके संरक्षण के लिए प्रशासन ने कदम उठाए हैं। पशुपालन विभाग ने याकों के संरक्षण के लिए अब लाता गांव के अंदर ही एक शेल्टर का निर्माण करने के आदेश दे दिए हैं इन आंखों के लिए शेल्टर के साथ ही एक चौकीदार का भी इंतजाम किया जाएगा जो इनकी देखभाल करेगा। अब आप हैरान इस बात पर होंगे कि आखिर तिब्बत और कश्मीर में आमतौर पर देखने वाला याद उत्तराखंड में क्या कह रहा है। तो चलिए आपको बताते हैं कि उत्तराखंड में यह याक कैसे पहुंचे। यह याक 58 वर्ष से नीती घाटी में रह रहे हैं। भारतीय चीन युद्ध के दौरान यह याक तक छूट गए थे। बता दें कि साल 1962 से पहले चमोली के नीती दर्रे से भारत और चीन का व्यापार संचालित होता था और तिब्बत के व्यापारी याकों पर सामान लादकर भारत लाते थे। 1962 में जब भारत और चीन का युद्ध हुआ तब नीति घाटी के दर्रे को पूरी तरह से आवाजाही के लिए रोक दिया गया और उसी दौरान तिब्बती व्यापारियों के कुछ याक चमोली में ही रह गए।

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अब उनकी संख्या 9 ही बची है। मगर पहले याकों की संख्या काफी अधिक थी। अगर पहले ही इनका संरक्षण हो जाता तो अभी भी इनकी संख्या काफी अधिक होती। मगर संरक्षण के अभाव में, हिमस्खलन और भूख से कई याकों की मृत्यु हो गई और अब यह बेहद कम संख्या में बचे हैं। चमोली के मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी डॉ शरद भंडारी के अनुसार कुछ सालों पहले नीती घाटी के लाता गांव के आसपास याकों की संख्या तकरीबन 15 थी और अब इनकी संख्या घटकर 9 रह गई है। संरक्षण के अभाव में और क्षेत्र में काफी अधिक बर्फबारी के कारण हुए हिमस्खलन की चपेट में आने से 6 याकों की बीते कुछ वर्षों में मृत्यु हो चुकी है और अब उनकी संख्या महज 9 ही बची है। अब इन 9 याको को लाता गांव में ही संरक्षित किया जाएगा और इनके लिए एक बाड़ा तैयार करवाने की पहल की जा रही है। इनके सेंटर के निर्माण के साथ-साथ एक चौकीदार का आवाज भी बनाया जा रहा है और अब इन याकों को पालतू बनाकर काश्तकारों को वितरित किया जाएगा।