उत्तराखंड पौड़ी गढ़वालHamp farming may start in uttarakhand

उत्तराखंड में रफ्तार पकड़ेगी भांग की खेती, UN दे चुका मान्यता..तैयार हो रहे हैं नियम

प्रदेश में भांग की खेती को बढ़ावा देने के लिए रणनीति तैयार की जा रही है। कई जिलों में तो कानूनी रूप से भांग की खेती शुरू भी हो गई है। आगे पढ़िए पूरी रिपोर्ट

Uttarakhand hamp farming: Hamp farming may start in uttarakhand
Image: Hamp farming may start in uttarakhand (Source: Social Media)

पौड़ी गढ़वाल: आमतौर पर नशे के लिए बदनाम भांग पहाड़ में रोजगार का जरिया बन रहा है। भांग के रेशों से कई तरह के उत्पाद बनाए जा रहे, जिससे हस्तशिल्प को बढ़ावा मिल रहा है। प्रदेश में कई जगह भांग की खेती के लिए लाइसेंस भी जारी कर दिए गए। यही नहीं भांग में कई औषधीय गुण भी हैं। इसका इस्तेमाल दवाएं बनाने में किया जाता है। कुछ दिन पहले संयुक्त राष्ट्र ने भी भांग के औषधीय गुणों को मान्यता देते हुए, इसे खतरनाक नशीले पदार्थों वाली लिस्ट से हटा दिया था। यूएन के इस फैसले का असर उत्तराखंड में भी दिखेगा। यहां भांग की खेती रफ्तार पकड़ेगी। निवेश के रास्ते खुलेंगे, किसान कानूनी रूप से भांग की खेती कर अपनी आर्थिकी को मजबूत बना सकेंगे। उत्तराखंड में भांग की खेती के लिए नियम, विनियम और उपनियम बनाने की कवायद शुरू हो गई है। प्रयास ये है कि प्रदेश में बंजर पड़ी जमीन के अलावा पॉलीहाउस में भांग की खेती के लिए किसानों को प्रोत्साहित किया जाए। इससे किसानों की आर्थिकी मजबूत होगी। दवा कंपनियों के आने से निवेश के रास्ते खुलेंगे, जिससे रोजगार के नए अवसर सृजित होंगे। आपको बता दें कि साल 2016 में भी भांग की खेती को बढ़ावा देने के लिए नीति बनाई गई थी, लेकिन कई वजहों से योजना परवान नहीं चढ़ सकी।

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अब वैश्विक स्तर पर औषधीय उपयोग के लिए भांग की डिमांड बढ़ने लगी है। जिसके चलते राज्य सरकार भी इंडस्ट्रियल हैंप को बढ़ावा देने की दिशा में प्रयासरत है। राज्य में भांग की खेती, इसका मैकेनिज्म और इससे होने वाले लाभ समेत सभी पहलुओं का आंकलन किया जा रहा है। प्रदेश में भांग की खेती के लिए रणनीति बनाई जा रही है। बीते रोज कृषि एवं उद्यान मंत्री ने इस संबंध में अधिकारियों को कार्य योजना बनाने के निर्देश भी दिए। इसके अलावा सगंध पौधा केंद्र के निदेशक डॉ. नृपेंद्र चौहान को स्टेट नोडल अधिकारी हैंप पद की जिम्मेदारी दी गई है। डॉ. नृपेंद्र चौहान ने बताया कि अब तक यूनानी और आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति में दवा के तौर पर भांग का इस्तेमाल होता रहा है, लेकिन एलोपैथ में इसकी इजाजत नहीं थी। यूएन की मान्यता के बाद एलोपैथ में भी इसका इस्तेमाल हो सकेगा। राज्य में कानूनी रूप से भांग की खेती को बढ़ावा देने की रणनीति तय की जा रही है।