उत्तराखंड नैनीतालChandan of okhalkanda creates his own jungle

पहाड़ का इको वॉरियर: 26 साल के चंदन ने लगाए 40 हजार पौधे..तैयार किया अपना जंगल

चंदन पर्यावरण को लेकर इतने सजग हैं कि उन्होंने हल्द्वानी मेडिकल कॉलेज को अपनी देह दान कर दी है। ताकि उनकी मौत के बाद किसी पेड़ को न काटना पड़े।

Nainital news: Chandan of okhalkanda creates his own jungle
Image: Chandan of okhalkanda creates his own jungle (Source: Social Media)

नैनीताल: हरे-भरे वन क्षेत्र और जैविक संपदा उत्तराखंड की पहचान है। हमें इस संपदा को संजोकर रखना है, लेकिन कमर्शियल एक्टिविटीज के चलते ये संपदा नष्ट होती जा रही है। विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन कैसे रखना है, ये हम आज तक नहीं सीख पाए। एक तरफ जहां लोग अपनी जरूरत और स्वार्थ के लिए पेड़ों को काटते चले जा रहे हैं तो वहीं पहाड़ में कुछ लोग ऐसे भी हैं, जिन्होंने जंगल को बचाने के लिए अपना जीवन तक दांव पर लगा दिया है। नैनीताल जिले के ओखलकांडा ब्लॉक में रहने वाले चंदन सिंह नयाल ऐसी ही शख्सियत हैं। 26 साल की उम्र में जब लोग अपने फ्यूचर को सिक्योर करने के लिए महानगरों का रुख करते हैं, उस उम्र में चंदन अपने गांव में जंगलों को बचाने में जुटे हुए हैं।

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चंदन ने अपनी लगन से चामा तोक इलाके में बांज का जंगल तैयार कर दिया है। चंदन सिंह नयाल नाई गांव में रहते हैं। महज 26 साल की उम्र में वो क्षेत्र में 40 हजार से ज्यादा पौधे लगा चुके हैं। चंदन उम्र में छोटे जरूर हैं, लेकिन उनके जीवन का उद्देश्य बड़ा है। चंदन कहते हैं कि उनके क्षेत्र में चीड़ और बुरांश के जंगलों में आग लग रही थी। जमीन सूख रही थी। तब उन्होंने क्षेत्र में बांज के पौधे लगाने शुरू किए। क्योंकि ये भूस्खलन रोकने में मदद करता है। साथ ही जल संरक्षण में भी अहम भूमिका निभाता है। चंदन ने तोक चामा में 15 हजार पौधे लगाकर अपना खुद का जंगल तैयार किया है। इसके अलावा आस-पास के क्षेत्रों में भी पौधे लगाए। जंगलों के साथ उन्होंने जंगली जानवरों का भी ख्याल रखा और उनकी प्यास बुझाने के लिए चाल-खाल का निर्माण कराया।

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चंदन ने इंजीनियरिंग में डिप्लोमा किया है। अब वो खेती करते हैं, साथ ही छात्रों को पर्यावरण संरक्षण का पाठ भी पढ़ाते हैं। उनके पास 70 नाली जमीन है, जिस पर वह आलू, अखरोट, माल्टा आदि उगाते हैं। चंदन कहते हैं कि उत्तराखंड में औषधीय पौधे रोजगार का बेहतर जरिया बन सकते हैं। इस दिशा में काम होना चाहिए। चंदन पर्यावरण को लेकर इतने सजग हैं कि उन्होंने हल्द्वानी मेडिकल कॉलेज को अपनी देह दान कर दी है। ताकि उनकी मौत के बाद किसी पेड़ को न काटना पड़े। मतलबपरस्ती की इस दुनिया में चंदन जैसे युवा उम्मीद की किरण सरीखे हैं, जो कि हमारी दुनिया को संवारने का काम कर रहे हैं। राज्य समीक्षा टीम चंदन सिंह नयाल को सलाम करती है। अगर आपके आस-पास भी कोई इस तरह का काम कर रहा हो तो हमें जरूर बताएं।