उत्तराखंड बागेश्वरMovement for trees in Bageshwar

उत्तराखंड में चिपको आंदोलन की तरह शुरू हुआ एक और आंदोलन..माताओं को मिला बेटों का साथ

उत्तराखंड के बागेश्वर में चिपको आंदोलन की तर्ज पर पेड़ों को बचाने के लिए जखनी गांव की महिलाओं का भी आंदोलन जारी है और वे भी पेड़ों से लिपट कर जंगल को काटने के निर्णय का विरोध कर रही हैं।

Bageshwar News: Movement for trees in Bageshwar
Image: Movement for trees in Bageshwar (Source: Social Media)

बागेश्वर: चिपको आंदोलन....उत्तराखंड का एक ऐसा आंदोलन जिसने समस्त देश को हिला कर रख दिया था। विकास के नाम पर जंगलों को कटने से बचाने के लिए चमोली के तपोवन क्षेत्र में महिलाएं उनसे लिपट गई थीं। पर्यावरण संरक्षण के लिहाज से चिपको आंदोलन बेहद महत्वपूर्ण आंदोलन माना जाता है जिसने पूरे सिस्टम की नींव हिला दी थी। चिपको आंदोलन की तर्ज पर ही बागेश्वर गांव में कमेड़ीदेवी-रंगथरा- मजगांव-चौनाला मोटर मार्ग के लिए पेड़ों को काटा जा रहा है और उन पेड़ों को बचाने के लिए जखनी गांव की महिलाओं का आंदोलन जारी है। यह आंदोलन भी चिपको आंदोलन की तर्ज पर ही हो रहा है और ग्रामीणों ने जल, जंगल और जमीन की रक्षा के लिए अपने प्राणों तक न्योछावर करने की बात कही है। पहले यह आंदोलन महिलाओं तक सीमित था मगर अब धीरे-धीरे इस आंदोलन से पुरुष और गांव के अन्य सदस्य भी जुड़ रहे हैं। ग्रामीणों ने एकजुट होकर पुरखों के बसाए जंगल को बचाने का ऐलान किया है और वे कई दिनों से चिपको आंदोलन की तर्ज पर ही जंगल को बचाने के लिए आंदोलन कर रहे हैं।

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बीते सोमवार को चिपको आंदोलन की तर्ज पर ही जखनी गांव की महिलाओं ने बुरांश, बांज समेत अन्य पेड़ों पर लिपट कर इस आंदोलन की शुरुआत की। उनका कहना है कि अगर पेड़ों को काटा जाएगा तो साथ में उनकी जान भी जाएगी और वे अपने जीते-जी पेड़ों को कटने नहीं देंगी। बुधवार को गांव के पुरुषों ने भी इस आंदोलन में बड़ी संख्या में हिस्सा लिया और अपनी भागीदारी दर्ज की। ग्रामीणों ने कहा कि विकास के नाम पर हम अपने जंगलों को कटने नहीं देंगे। उन्होंने कहा कि सदियों से संरक्षित किए इन पेड़ों को किसी भी हालत में कटने नहीं दिया जाएगा। अगर यह पेड़ कटेंगे तो साथ में हमारी जान भी जाएगी। ग्रामीणों का कहना है कि जंगल ग्रामीणों के जीवन का आधार है और इनको वह अपने जीते जी कटने नहीं देंगे। गांव की सरपंच कमला देवी ने कहा है कि वे अपनी शादी के बाद से ही इस जंगल को संरक्षित करने का काम करती हुई आई हैं और विकास के नाम पर वनों को काटना जरा भी उचित नहीं है। अगर जंगल नहीं होंगे तो ग्रामीणों की जिंदगी तबाह हो जाएगी। उन्होंने कहा है कि पहाड़ पर विकास के नाम पर कई जंगलों की कुर्बानी हम दे चुके हैं मगर अब और नहीं। चिपको आंदोलन की तर्ज पर ही जखनी गांव में भी आंदोलन हो रहा है और सभी ग्रामीण एकजुट होकर जंगल की कटाई के खिलाफ अपनी आवाज उठा रहे हैं।

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यह सच है कि जंगल के कटने से काफी नुकसान होगा। अगर जंगल कटे तो बड़े पेड़ों के साथ कई छोटे-छोटे पेड़ भी कट जाएंगे और सड़क कटान के मलबे से गांव के पेयजल स्रोत भी नष्ट हो जाएंगे। उन्होंने कहा कि आधे पहाड़ को विकास के नाम पर नष्ट कर दिया गया है। इस जंगल को उन्होंने सदियों से बचा कर रखा हुआ है और इसको सुरक्षित और संरक्षित करना ग्रामीणों का कर्तव्य है जिसको लेकर वह हर तरह की लड़ाई लड़ने के लिए तैयार हैं। महिलाओं ने बोला कि हमने इन पेड़ों ने हमको अपने बच्चों की तरह पाला है और हम इनको कटने नहीं देंगे। बीते बुधवार को भी महिलाओं और सभी पुरुषों ने धरना प्रदर्शन के बाद पेड़ों से लिपटकर जंगल काटने का विरोध जताया और ग्रामीणों ने आंदोलन पर डटे रहने की चेतावनी भी दी है। शर्मनाक बात तो यह है कि इस पूरे आंदोलन के बाद भी प्रशासन की नींद नहीं टूट रही है। अधिकारियों की उपेक्षा से ग्रामीणों के बीच में गुस्सा बढ़ता जा रहा है। ग्रामीणों का कहना है कि वे जंगल को बचाने के लिए आंदोलन तो कर रहे हैं मगर प्रशासन और शासन उनकी बात नहीं सुन रहा है।