उत्तराखंड चमोलीSuccess Story of Mahendra Singh Bisht of Chamoli District

उत्तराखंड: लॉकडाउन में जॉब छूटी तो शहर से गांव लौटा इंजीनियर..सब्जी उत्पादन से संवारी किस्मत

कोरोना काल में इंजीनियर महेंद्र की जॉब छूट गई। जिसके बाद वो गांव लौट आए, लेकिन घर पर खाली नहीं बैठे। उन्होंने खेती शुरू की और अपने लिए आमदनी का नया जरिया तैयार कर लिया। पढ़िए उनकी सक्सेस स्टोरी

Chamoli News: Success Story of Mahendra Singh Bisht of Chamoli District
Image: Success Story of Mahendra Singh Bisht of Chamoli District (Source: Social Media)

चमोली: इस दुनिया में असंभव कुछ भी नहीं। हम वो सब कर सकते हैं, जो हम सोच सकते हैं और हम वो सब सोच सकते हैं, जो हमने आज तक नहीं सोचा। इस पंक्ति को अगर हकीकत में साकार होते देखना है तो चमोली चले आइए। जहां कर्मठ इंजीनियर महेंद्र सिंह बिष्ट स्थानीय लोगों को स्वरोजगार का महत्व बता रहे हैं। महेंद्र उन लोगों में शामिल हैं, जिन्हें कोरोना काल में अपनी जॉब गंवानी पड़ी। नौकरी छूटी तो महेंद्र गांव लौट आए, लेकिन घर पर खाली नहीं बैठे। उन्होंने खेती शुरू की और अपने लिए आमदनी का नया जरिया तैयार कर लिया। महेंद्र सिंह बिष्ट ने न सिर्फ गांव की बंजर जमीन को हरा-भरा किया, बल्कि क्षेत्र के कई लोगों को रोजगार भी दिया है। चमोली जिले के दशोली ब्लॉक में एक गांव है सरतोली। 41 वर्षीय महेंद्र सिंह बिष्ट परिवार के साथ इसी गांव में रहते हैं। महेंद्र बेंगलुरु में नामी कंपनी ओमेक्स ऑटो लिमिटेड में इंजीनियर के तौर पर काम करते थे, लेकिन कोरोना काल ने लाखों लोगों की तरह उनकी भी नौकरी छीन ली। आगे पढ़िए

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इसके बाद महेंद्र गांव लौट आए और यहां अपनी 200 नाली बंजर जमीन पर सब्जी और मसालों की खेती करने लगे। काम चल निकला तो उन्होंने क्षेत्र के अन्य लोगों को भी रोजगार से जोड़ना शुरू कर दिया। महेंद्र के पास बीटेक की डिग्री है। वो अब तक कई नामी-गिरामी कंपनियों में सेवाएं दे चुके हैं। नौकरी छूटने के बाद जब वो गांव लौटे तो उन्होंने अपने खेतों को आबाद करना शुरू कर दिया। उद्यान विभाग ने भी मदद की। इस तरह महेंद्र खेतों में आलू, प्याज, भिंडी, शिमला मिर्च और लौकी समेत कई सब्जियां उगाने लगे। मेहनती महेंद्र को फरवरी में किसान भूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। महेंद्र बताते हैं कि जब उन्होंने सब्जी उत्पादन की शुरुआत की थी तो सिर्फ छह लोग उनके साथ जुड़े थे, आज वो 15 लोगों को रोजगार दे रहे हैं। महेंद्र की सफलता देख आस-पास के गांवों के लोग भी स्वरोजगार के क्षेत्र में आगे बढ़ रहे हैं।