उत्तराखंड उत्तरकाशीFredrik E Wilson of Hershil

गढ़वाल का ‘पहाड़ी विल्सन’..एक अंग्रेज भूत की कहानी, जिसे लोगों ने राजा भी कहा, राक्षस भी

एक अंग्रेज़ जो बन गया ‘हर्षिल का राजा’..एक श्राप जिसने खत्म कर दिया उसका वंश..आज भी कहां घूमती है ‘पहाड़ी विल्सन’ की आत्मा ?

Fredrik E Wilson: Fredrik E Wilson of Hershil
Image: Fredrik E Wilson of Hershil (Source: Social Media)

उत्तरकाशी: उत्तरकाशी जिले में स्थित है खूबसूरत गांव हर्षिल..सभी जानते हैं कि यहां के सेब और राजमा पूरे देश में मशहूर है..लेकिन एक बात जिसे ज्यादा लोग नहीं जानते वो है ‘पहाड़ी विल्सन’ या ‘हुलसन साहिब’ की कहानी। फ्रेड्रिक ई. विल्सन यानि पहाड़ी विल्सन पहले अंग्रेज थे जो यहां आकर न सिर्फ बसे बल्कि शादी भी यहीं की महिला से रचाई..वो भी दो-दो बार। उनकी जिंदगी किसी फिल्म की कहानी जैसी लगती है...पहाड़ी विल्सन को लेकर लोगों के दो मत हैं..कुछ लोगों की नजर में वो राजा थे..जिन्होंने यहां आकर यहां के लोगों की जिंदगी बदल दी..तो कुछ के मुताबिक एक ऐसे शख्स जिन्होंने उत्तराखंड को सिर्फ बर्बादी दी
कौन थे पहाड़ी विल्सन
फ्रेड्रिक ई विल्सन ब्रिटिश आर्मी के एक जवान थे...जो मसूरी में तैनात थे..बताया जाता है कि वो वहां से भाग कर हर्षिल पहुंचे और फिर यहीं के होकर रह गए...ये साल 1841 की बात है...थोड़े ही समय में विल्सन यहां पूरी तरह से रच बस गए..वो पहाड़ी भाषा बोलते थे और उनका रहन सहन भी ठेठ पहाड़ी था..उन्होंने शादी भी पहाड़ी युवती से ही रचाई..उन्होंने दो शादियां कीं..पहली पत्नी से कोई बच्चा न होने से दुखी विल्सन ने दोबारा यहीं की एक लड़की से शादी की जिससे उनके तीन बेटे हुए। जल्द ही टिहरी के तत्कालीन महाराज से लकड़ी के काम का ठेका हासिल कर लकड़ी के एक बड़े व्यापारी बन गए। कुछ लोगों के मुताबिक विल्सन ब्रिटिश आर्मी के जासूस थे जो उनके लिए जानकारियां इकठ्ठा करते थे और इसी के एवज में आर्मी उनको पूरा सहयोग देती थी...यही वजह है कि कम समय में ही वो रईस लोगों में गिने जाने लगे। आगे पढ़िए

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विल्सन ने अपने सिक्कों की शुरूआत भी की जो उनकी मौत के काफी समय बाद तक भी चलन में रहे। वो घाड़ पद्धति के जन्मदाता थे...इस पद्धति में बड़े बड़े पेड़ों को काटकर नदी में बहाकर एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाया जाता था...इसके अलावा हर्षिल में राजमा और सेब की खेती लाने वाले भी ‘हुलसन साहिब’ ही थे। हर्षिल के लोगों के लिए इन्होंने जाड़गंगा में 350 फीट लंबे झूला पुल का भी निर्माण करवाया। तो फिर आखिर ऐसा क्या हुआ कि अपने समय से इतना आगे चलने वाले शख्स की पहचान महज हर्षिल तक ही सीमित रह गई। माना जाता है कि विल्सन ने जंगलों को बेतरतीबी से कटवाया और बेहिसाब शिकार किया जिससे गांव के कुलदेवता भगवान सोमेश्वर ने क्रुद्ध होकर उन्हें श्राप दिया कि उनकी कोई भी संतान ज्यादा समय तक जीवित नहीं रहेगी..एक दिन उनके वंश का नाश हो जाएगा और कोई हर कोई उन्हें भूल जाएगा। और हुआ भी कुछ ऐसा ही...विल्सन के तीन में से दो बेटों की मौत कम उम्र में ही हो गई तीसरा बेटा भी लापता हो गया..और जानकारी के मुताबिक उनके वंश के आखिरी ज्ञात शख्स की भी एक हवाई दुर्घटना में मौत हो गई। इस तरह पहाड़ी विल्सन पर लगा ये श्राप सच साबित हुआा..हर्षिल के इस राजा ने मसूरी में आखिरी सांस ली और वहीं उनकी कब्र भी मौजूद है। कहते हैं कि आज भी हर्षिल में विल्सन की हवेली और पुल के पास उसकी आत्मा भटकती है और अपने होने का अहसास लोगों को करवाती है।