अल्मोड़ा: इस दुनिया में आदमी की जान से बड़ा कुछ भी नहीं है, न ईश्वर, न ज्ञान, न चुनाव....सर्वेश्वर दयाल की यह पंक्तियां इस खबर पर फिट बैठ रही हैं। यह सिस्टम की कमी ही तो है कि आदमी की जान की कीमत कुछ नहीं है। उत्तराखंड बने दो दशक से भी लंबा समय हो चुका है मगर अब तक उत्तराखंड में ना तो सिस्टम सड़क पहुंचा पाया है, ना ही अस्पताल और ना ही मरीजों के लिए पर्याप्त सुविधाएं। ऐसे में नेताओं के मुंह से पहाड़ों के विकास की बात महज एक भद्दा मजाक लगती है। कितने ही निर्दोष लोगों को सिस्टम की लापरवाही के कारण अपनी जान गंवानी पड़ी। हर वर्ष सैकड़ों गर्भवतियां उत्तराखंड के पहाड़ों में समय से और ठीक उपचार न मिलने के कारण मौत के मुंह में समा जाती हैं। सरकार मुआवजा देकर पल्ला झाड़ लेती है मगर उन आंसुओं का मुआवजा कोई नहीं दे सकता जो वे अपने पीछे छोड़ जाती हैं। सवाल यह है कि और कबतक हम अपनी बेटियों को यूं ही सिस्टम की लापरवाही के कारण मौत के मुंह में जाते देखते रहेंगे। 20 सालों में आखिर उत्तराखंड में स्वास्थ्य सुविधाओं, सड़कों की हालत दुरुस्त क्यों नहीं हुई है। खैर इन सवालों के जवाब मांगने भी किससे जाएं। शायद यही वजह है कि अल्मोड़ा में एक बेबस पति ने जब सिस्टम के कारण अपनी पत्नी को खोया तो थक हार कर वह अपने बच्चों के साथ मूसलाधार बरसात में तहसील मुख्यालय पर धरने पर बैठ गया।
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हम और किसी की नहीं मृतका मंजू देवी के पति की बात कर रहे हैं जिन्होंने इस सिस्टम की लापरवाही के कारण अपनी पत्नी को हमेशा हमेशा के लिए खो दिया। उनके बच्चों के सिर के ऊपर से अपनी मां का साया हमेशा हमेशा के लिए उठ चुका है। मंजू देवी के साथ ही उनके दो जुड़वा बच्चों का गला भी सिस्टम में घोंट दिया है जो मंजू देवी की कोख में पल रहे थे और इस नई दुनिया में आने का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे। 3 सप्ताह के बाद भी इलाज के अभाव में दम तोड़ने वालीं मंजू देवी की मौत के मामले में जांच पूरी न होने से उनके पति आहत हैं। अपनी मृत पत्नी को इंसाफ दिलाने के लिए जब उनको कुछ नहीं सोचा तो वे अपने मासूम बच्चों को लेकर तहसील मुख्यालय पर ही धरने पर बैठ गए। बता दें कि देवालय ग्राम सभा सल्ट ब्लॉक के निवासी लक्ष्मण सिंह की गर्भवती पत्नी मंजू देवी ने 3 सप्ताह पहले उपचार न मिलने के कारण दम तोड़ दिया था। उनको सीएचसी और उसके बाद रामनगर ले जाया गया मगर इस दौरान ही उन्होंने दम तोड़ दिया। हल्द्वानी ले जाते वक्त रास्ते में उनकी और उनके गर्भ में पल रहे दो जुड़वा शिशुओं की मृत्यु हो गई। उनके पति लक्ष्मण सिंह ने सीएचसी के चिकित्सा कर्मियों पर गंभीर आरोप लगाए हैं।
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उन्होंने आरोप लगाया है कि उनकी पत्नी हृदय रोगी थी मगर उसके बावजूद भी स्वास्थ कर्मियों ने उनकी पत्नी का स्वास्थ्य परीक्षण करने की जरुरत नहीं समझी और बिना देखे ही पत्नी को रामनगर रेफर कर दिया। उन्होंने कहा कि निजी वाहन से 55 किलोमीटर की दूरी तय करने के दौरान उनकी पत्नी की हालत और अधिक बिगड़ गई और उनकी पत्नी एवं उनके दोनों शिशुओं ने रास्ते में ही दम तोड़ दिया। इस प्रकरण पर कार्यवाही तो दो-तीन सप्ताह के बाद भी पूरी ना होने से आहत उनके पति बारिश में ही अपने दो मासूम बच्चों को लेकर तहसील मुख्यालय पर धरने पर बैठ गए हैं। उनके चेहरे पर बेबसी, सिस्टम के प्रति आक्रोश और अपनी पत्नी और दो अजन्मे बच्चों को खो देने का दुख साफ दिखाई दे रहा है। उनका कहना है कि उनको अपने पत्नी के लिए इंसाफ चाहिए। लक्ष्मण सिंह के साथ में पूर्व जिला पंचायत सदस्य नारायण सिंह रावत, अमित रावत आदि तहसील मुख्यालय जा धमके और उन्होंने गरीब को मुआवजा देने की मांग उठाई है। वहीं एसडीएम राजकुमार पांडे का कहना है कि मृतका के स्वजनों से रविवार तक का समय मांगा गया है और स्वास्थ्य विभाग की कमेटी पूरे प्रकरण की जांच कर रही है। जल्द ही दोषियों पर कड़ी से कड़ी कार्यवाही की जाएगी और गरीब परिवार को उचित मुआवजा भी दिया जाएगा।