उत्तराखंड रुद्रप्रयागHariyali devi mandir story jasoli rudraprayag

देवभूमि की हरियाली देवी, यहां दिवाली पर निभाई जाती है सदियों पुरानी अद्भुत परंपरा

दीपावली पर्व पर मां हरियाली की डोली को हरियाल पर्वत ले जाने की यह पौराणिक परंपरा है, जिसको हरियाली देवी कांठा यात्रा का स्वरूप दिया गया है.

Hariyali devi rudraprayag: Hariyali devi mandir story jasoli rudraprayag
Image: Hariyali devi mandir story jasoli rudraprayag (Source: Social Media)

रुद्रप्रयाग: उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में एक अद्भुत मंदिर मौजूद है. जसोली गांव, डांड़ाखाल क्षेत्र मे स्थित एक मंदिर है, इस मंदिर को माता हरियाली देवी के नाम से जाना जाता है. हरियाली देवी की राज जात अपने आप मे उत्तराखंड की अनोखी राज जात है. जो रात में चलती और सुबह गंतव्य तक पहुच जाती है. हर साल दो बार हरियाली कांठा में मुख्य मंदिर में दर्शनों के लिए जाते हैं. पहली यात्रा रक्षाबंधन के दिन की जाती है. दूसरी यात्रा दीपवाली के समय होती है. हर साल की भांति इस बार भी सिद्धपीठ हरियाली देवी यात्रा">हरियाली देवी यात्रा का आगाज दीपावली से एक दिन पूर्व किया गया. इस दौरान मां हरियालीे की ड़ोली को 7 किमी की दूरी पर ‘हरियाली कांठा’ तक ले जाते हैं. यात्रा को लेकर स्थानीय ग्रामीणों में खासा उत्साह देखा गया. ढोल नगाड़ों और शंख की ध्वनि के साथ हजारों श्रद्धालुओं की मौजूदगी में जसोली गांव से हरियाली देवी की डोली हरियाल पर्वत की ओर रवाना हुई. पौराणिक कथा कहती हैं कि जब देवकी माता की सातवीं संतान के रूप में ‘महामाया’ पैदा हुई थी तो ‘कंस’ ने महामाया को धरती पर पटक कर मारना चाहा था. इसके बाद महामाया माता के शरीर के टुकड़े पूरी पृथ्वी पर बिखर गए. महामाया का हाथ इस क्षेत्र में गिरा और ये स्थान हरियाली सिद्ध पीठ कहलाया जाने लगा. हरियाली कंठा का मंदिर मार्ग अति दुर्गम होने के कारण वहां प्रतिदिन पूजा पाठ नहीं हो सकती है इसलिए निचे जसोली गावं में एक अन्य मंदिर स्थापित किया गया जिसका नाम हरियाली देवी है. इस मंदिर में मुख्यतः तीन मूर्तियां है पहली माँ हरियाली देवी की मूर्ति है, दूसरी मूर्ति यहाँ के क्षेत्रपाल देवता की है और तीसरी मूर्ति हीत देवी की है.

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मूल मायका होने के कारण साल में एक बार दीपावली पर्व पर मां हरियाली की डोली को हरियाल पर्वत ले जाने की यह पौराणिक परंपरा है, जिसको हरियाली देवी कांठा यात्रा का स्वरूप दिया गया है. यात्रा के दौरान देवी के धर्म भाई हीत और लाटू के निशान ने हरियाली देवी डोली की अगुवाई करते हैं. देश की यह एकमात्र ऐतिहासिक देव यात्रा है, जो रात के पहर में की जाती है. जिसमें हजारों श्रद्धालुओं ने मां हरियाली की डोली के साथ जसोली गांव से दस किमी पैदल चलकर हरियाली के घने वनों के बीच से होकर अगले दिन सुबह पांच बजे हरियाल पर्वत देवी के मायके मूल मंदिर में पहुंचे. जिसके बाद देवी के पुरोहितों की ओर से वेद मंत्रों के साथ पूजा-अर्चना की गई और गाय के दूध से निर्मित खीर का देवी को भोग लगाया गया. पूजा अर्चना खत्म होने के बाद देवी के हवन कुंड में भव्य हवन का आयोजन किया गया. जिसमें 108 गायत्री और देवी मंत्रों के साथ आहुति दी गई. इस यात्रा की एक और मान्यता ये भी है की इस यात्रा मे सिर्फ पुरुष ही शामिल हो सकते है. यात्रा पश्चात मां जब कांठा मे पहुंचती है, तो ड़ोली को मंदिर के अन्दर नहीं रखा जाता है. पूर्वजों का कहना है कि अगर मां की डोली को मंदिर के भीतर रखा गया, तो मां अपना आसन वहीं जमा देंगी. फिर वहां पर मां को भोग चढाया जाता है पूजा अर्चना की जाती है. जो श्रदालु यहां सच्चे दिल से कोई मन्नत लेकर जाता है, तो मां उसे फल के रूप मे आर्शिवाद देती है और भक्त की मनोकामना पूरी करती है.

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दूसरे दिन मां मायके से ससुराल के लिए जाती हैं, तब मां की ड़ोली को नम आँखों से उनके ससुराल भेजा जाता है. हरियाली देवी शक्तिपीठ का पौराणिक महत्व बहुत है. यहाँ पौराणिक परम्परायें आज भी जीवंत हैं. यहां परम्पराओं के साथ आज भी सात्विक नियमो का कठोरता से पालन किया जाता है. मंदिर में प्रवेश के लिए श्रद्धालुओं को लगभग एक सप्ताह पूर्व मांस मदिरा और प्याज लहसुन का त्याग करना पड़ता है. यात्रा में जसोली से हरियाली कांठे तक कि यात्रा नंगे पांव की जाती है. मेले में गए यात्रियों के लिए कम्बल बर्तन की व्यवस्था होती है. सूखा राशन घर से लेकर जाना पड़ता है. पूजा अर्चना के बाद ही भक्त और श्रद्धालु खुद खाना खाते हैंं. जो भक्त इस यात्रा मै शामिल होते हैं, उनके लिए यहां पर भंडारा भी लगाया जाता है. मां हरियाली देवी को देवभूमि हरियाली, सौभाग्य और सौहार्द का प्रतीक माना जाता है. कभी मौका लगे तो इस दिव्य धाम में दर्शन के लिए जरूर आएं.