उत्तराखंड देहरादूनStory of Egas Parv Madho Singh Bhandari

उत्तराखंड में क्यों मनाई जाती है ईगास? ये है वीर माधो सिंह भंडारी की शौर्यगाथा..आप भी जानिए

ये मान्यता 17 वीं शताब्दी में गढ़वाल के प्रसिद्ध भड़ (योद्धा) मलेथा गांव के वीर माधो सिंह भंडारी (Story of Egas Parv Madho Singh Bhandari) से जुड़ी है।

Egas Parv Madho Singh Bhandari: Story of Egas Parv Madho Singh Bhandari
Image: Story of Egas Parv Madho Singh Bhandari (Source: Social Media)

देहरादून: ईगास..एक वीर (Story of Egas Parv Madho Singh Bhandari) के घर आने के उत्सव का समय। उत्तराखंड में ईगास धूमधाम से मनाई जा रही है। दिवाली के 11 दिन बाद पहाड़ में एक ओर दिवाली मनाई जाती है, जिसे इगास कहा जाता है। इस दिन सुबह मीठे पकवान बनाए जाते हैं और शाम को भैलो जलाकर देवी-देवताओं की पूजा की जाती है। पूजा-अर्चना के बाद ढोल-दमाऊं की थाप पर भैलो (भीमल या चीड़ की लकड़ी का गट्ठर) जलाकर घुमाया जाता है और नृत्य किया जाता है। एक मान्यता है कि भगवान राम के लकां विजय कर अयोध्या पहुंचने की सूचना पहाड़ में 11 दिन बाद मिली थी। इसीलिए दिवाली के 11 दिन बाद इगास (बूढ़ी दिवाली) मनाया जाता है। इसके साथ ही ईगास को लेकर एक दूसरी मान्यता भी है। ये मान्यता 17 वीं शताब्दी में गढ़वाल के प्रसिद्ध भड़ (योद्धा) मलेथा गांव के वीर माधो सिंह भंडारी से जुड़ी है। तब श्रीनगर गढ़वाल के राजाओं की राजधानी थी। माधो सिंह भड़ परंपरा से थे। उनके पिता कालो भंडारी की बहुत ख्याति हुई। माधो सिंह, पहले राजा महीपत शाह, फ़िर रानी कर्णावती और फिर पृथ्वीपति शाह के वजीर और वर्षों तक सेनानायक भी रहे। आगे पढ़िए

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तब गढ़वाल और तिब्बत के बीच अक्सर युद्ध हुआ करते थे। दापा के सरदार गर्मियों में दर्रों से उतरकर गढ़वाल के ऊपरी भाग में लूटपाट करते थे। माधो सिंह भंडारी ने तिब्बत के सरदारों से दो या तीन युद्ध लड़े। सीमाओं का निर्धारण किया। सीमा पर भंडारी के बनवाए कुछ मुनारे (स्तंभ) आज भी चीन सीमा पर मौजूद हैं। माधो सिंह ने पश्चिमी सीमा पर हिमाचल प्रदेश की ओर भी एक बार युद्ध लड़ा। कहा जाता है कि एक बार तिब्बत युद्ध में वे इतने उलझ गए कि दिवाली के समय तक वापस श्रीनगर गढ़वाल नहीं पहुंच पाए। आशंका थी कि कहीं युद्ध में मारे न गए हों। तब दिवाली नहीं मनाई गई। दिवाली के कुछ दिन बाद माधो सिंह की युद्ध विजय और सुरक्षित होने की खबर श्रीनगर गढ़वाल पहुंची। तब राजा की सहमति पर एकादशी के दिन दिवाली मनाने की घोषणा हुई। तब से इगास बग्वाल निरंतर मनाई जाती है। गढ़वाल में यह लोक पर्व बन गया। हालांकि कुछ गांवों में फिर से आमावस्या की दिवाली ही रह गई और कुछ में दोनों ही मनाई जाती रही। इगास (Story of Egas Parv Madho Singh Bhandari) बिल्कुल दीवाली की तरह ही मनाई जाती है।