उत्तराखंड नैनीतालDanger of landslide in Nainital

उत्तराखंड की शान नैनीताल पर मंडरा रहा है बड़ा खतरा, अभी भी ध्यान न दिया तो हम इसे खो देंगे

नैनीताल में भूस्खलन (Nainital Landslide) का खतरा साल दर साल बढ़ता जा रहा है। इस साल भूस्खलन के चलते बलियानाला क्षेत्र से दर्जनों परिवारों को शिफ्ट करना पड़ा। प्राकृतिक जलस्त्रोत भी सूखने लगे हैं।

Nainital Landslide: Danger of landslide in Nainital
Image: Danger of landslide in Nainital (Source: Social Media)

नैनीताल: हैप्पी बर्थडे नैनीताल। सरोवर नगरी नैनीताल (Nainital Landslide) की स्थापना को आज 180 साल पूरे हो गए। देश दुनिया में अपनी खूबसूरती और मनोहर तालों के लिए मशहूर नैनीताल की खोज साल 1841 में आज ही के दिन की गई थी। वैसे तो जन्मदिन के मौके पर लंबे जीवन की कामना की जाती है, लेकिन आज हम आपको नैनीताल को लेकर एक चिंता बढ़ाने वाली खबर बताने जा रहे हैं। देश के सबसे खूबसूरत पर्यटन स्थलों में शुमार नैनीताल के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है। बलियानाला के साथ ही ठंडी सड़क के अलावा टिफिन टॉप और चायनापीक की पहाड़ी में दरार पड़ गई है, जो कि बड़े खतरे का संकेत है। अंग्रेजों के शासन काल में यहां 100 से अधिक प्राकृतिक जल स्रोत हुआ करते थे। जो कि अवैध निर्माण और नालों पर अतिक्रमण के चलते सूख गए हैं। भूस्खलन का खतरा साल दर साल बढ़ता जा रहा है। इस साल भूस्खलन के चलते बलियानाला क्षेत्र से दर्जनों परिवारों को शिफ्ट करना पड़ा।

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डीएसपी कॉलेज भी भूस्खलन की जद में आ गया था। यहां हॉस्टल में रह रही छात्राओं को दूसरी जगह भेजना पड़ा। दोनों संवेदनशील पहाड़ियों के ट्रीटमेंट को लेकर शासन-प्रशासन की देरी लोगों की चिंता बढ़ा रही है। बता दें कि 90 के दशक में अति संवेदनशील पहाड़ियों और शहर में व्यावसायिक निर्माण को पूरी तरह प्रतिबंधित किया गया था, लेकिन इसके बाद भी शहर में किसी न किसी बहाने अवैध निर्माण चल रहे हैं। पर्यावरणविद प्रो. अजय रावत कहते हैं कि अवैध निर्माण के चलते पानी के स्त्रोत सिमट रहे हैं। वनस्पतियां गायब हो गई हैं। दर्जनों नालियों का अस्तित्व खत्म हो गया है। शहर में संवेदनशील क्षेत्र हनुमानगढ़ी में रोपवे की तैयारी की जा रही है जो कि पर्यावरण की दृष्टि से खतरनाक है। नैनी झील (Nainital Landslide) का कैचमेंट रहे सूखाताल में अतिक्रमण से संकट पैदा हो गया है। ऐसे में शासन और प्रशासन को भूस्खलन प्रभावित क्षेत्रों के ट्रीटमेंट में देरी नहीं करनी चाहिए।