देहरादून: बच्चे का आगमन परिवार में खुशियों की दस्तक माना जाता है, लेकिन Uttarakhand Private Hospitals की लूट-खसोट के चलते यह मौका खुशी कम चिंता ज्यादा लेकर आता है। सरकारी अस्पतालों के हाल बुरे हैं, जबकि प्राइवेट अस्पतालों में ज्यादातर प्रसव ऑपरेशन यानी Cesarean Delivery करवाए जा रहे हैं। उत्तराखंड के प्राइवेट अस्पतालों में होने वाले करीब 45 फीसदी प्रसव ऑपरेशन से होते हैं। इसका खुलासा नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की रिपोर्ट में हुआ है। निजी अस्पतालों में सिजेरियन प्रसव के जरिए अधिक फीस वसूली जाती है, यही वजह है कि डॉक्टर ज्यादातर मामलों में ऑपरेशन से प्रसव को तरजीह देते हैं। प्राइवेट अस्पतालों के मुकाबले इस मामले में सरकारी अस्पतालों में हाल फिर भी ठीक हैं। सरकारी अस्पतालों में 15 फीसदी मामलों में ही सिजेरियन डिलीवरी हो रही है। गर्भवती महिलाओं को लेकर एक और चिंता बढ़ाने वाली खबर आई है। प्रदेश में 46 फीसदी गर्भवती महिलाएं एनीमिया पीड़ित हैं। आयरन और फॉलिक एसिड की गोलियां बांटने की योजना भी गर्भवती महिलाओं में एनीमिया खत्म नहीं कर पा रही।
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राहत वाली बात ये है कि राज्य ने बाल लिंगानुपात के मामले में बड़ी छलांग लगाई है। राज्य में बाल लिंगानुपात में 96 अंकों का सुधार हुआ है। जिससे अब प्रति हजार बालकों पर 984 बेटियों का जन्म हो रहा है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की मिशन निदेशक सोनिका ने बताया कि राज्य के अस्पतालों में प्रसव की स्थिति में भी 21 प्रतिशत तक का सुधार हुआ है। नई रिपोर्ट में लिंगानुपात की स्थिति में काफी सुधार आया है। महिलाओं की आर्थिक स्थिति भी मजबूत हो रही है। रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश में करीब 60 फीसदी महिलाओं के पास मोबाइल फोन है, लेकिन करीब 15 फीसदी महिलाएं घरेलू हिंसा की शिकार हैं। 24 फीसदी महिलाओं के नाम पर जमीन या घर की संपत्ति है। राज्यभर में 21 फीसदी महिलाएं नौकरी कर रही हैं। 91 फीसदी महिलाओं का अपने घर में होने वाले निर्णय में योगदान रहता है। प्रदेश की 80 फीसदी महिलाएं अपना बैंक अकाउंट रखती हैं, जिससे पता चलता है कि उनकी स्थिति में सुधार हो रहा है।