उत्तराखंड देहरादूनHarak singh rawat may join another party

उत्तराखंड विधानसभा चुनाव से पहले बड़ी अपडेट, हरक सिंह रावत ने खेला रूदाली दांव

जब-जब पॉलिटिकल करियर का सबसे कठिन समय आया है, फूटफूट कर रोए हैं हरक।

Harak Singh Rawat: Harak singh rawat may join another party
Image: Harak singh rawat may join another party (Source: Social Media)

देहरादून: हरक सिंह रावत... पिछले चार दिनों से हरकू दा का नाम उत्तराखंड के सियासी गलियारों में जोरों-शोरों से उछल रहा है। कोई उनकी चुटकी ले रहा है तो कोई उनके प्रति सहानुभूति दिखा रहा है। हरकू दा भी भाजपा से निष्कासित होने के बाद टूट चुके हैं। उत्तराखंड राजनीति के रंगमंच के धुरंधर कलाकार हरक सिंह रावत सियासी मंच पर लगातार अपने किरदार बदलते रहते हैं। कभी कांग्रेस की सरकार गिरा देते हैं तो कभी भाजपा के खिलाफ बोलते हैं। भाजपा ने तो उनको पार्टी से आउट कर ही दिया है और अब वे कांग्रेस में घर वापसी करने की उम्मीद लगाए बैठे हैं। हरकू दा अपने रूदाली दांव चलने को लेकर भी काफी प्रचलित हैं। जैसे ही उनपर कोई संकट आन पड़ता है वे रूदाली दांव चलकर लोगों की सहानुभूति लेना शुरू कर देते हैं। इतिहास गवाह है कि हरक के ऊपर जब जब पॉलिटिकल करियर का सबसे कठिन समय आया है हर बार वे फूटफूट कर रोए हैं। हर बार वह रुदाली दांव अपने आखिरी हथियार के तौर पर इस्तेमाल करते हैं। भाजपा से निकाले जाने के बाद उन्होंने फिर रुदाली दांव चला है। सियासी जानकारों की मानें तो हरक सिंह रावत ने यह सपने में भी नहीं सोचा था कि भाजपा उन्हें बाहर का रास्ता दिखा देगी। अचानक पार्टी से निकाले जाने के बाद हरक अभी अपने राजनीतिक जीवन के सबसे कठिन मोड पर खड़े माने जा रहे हैं। जैसे ही हरक सिंह रावत राजनीति में कठिनाई में आते हैं तो खुद ब खुद उनके आंसू निकलने लग जाते हैं। जो लोग उन्हें करीब से जानते हैं, उन्हें मालूम है कि सियासत के सबसे बुरे दौर में जब-जब हरक फंसे उन्होंने रुदाली दांव से हालात बदलने की कोशिश की। अभी तक तो उनका यह रुदाली दांव कभी खाली नहीं गया है। 2012 के विधानसभा चुनाव इसका उदाहरण हैं। कांग्रेस ने हरक सिंह को रुद्रप्रयाग विधानसभा सीट पर लमातबर सिंह कंडारी के खिलाफ उतार दिया था। इस सीट पर कंडारी बेहद स्ट्रांग कैंडिडेट माने जा रहे थे। मगर चुनाव के आखिरी मूमेंट पर हरक पूरे चुनाव का चेहरा ही बदल दिया।

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हरक ने चुनावी दांवपेंच के साथ ही निर्णायक वक्त में ऐसा रुदाली दांव चला कि चुनाव पलट गया। उनका यह विलाप उस दौरान खूब चर्चाओं में रहा। चर्चित जैनी प्रकरण में क्लीन चिट मिलने पर उन्होंने काफी आंसू बहाए और लोगों से सहानुभूति हासिल करने का पूरा प्रयास किया और वे इसमें सफल भी रहे। हरक अपनी छलछलाती आंखों से भावनाओं के तीर छोड़ने से कभी नहीं चूके। मौजूदा सरकार में ही प्रदेश मंत्रिमंडल की बैठक के दौरान सरकार के कई मंत्री हरक सिंह के इस दांव के साक्षी रहे हैं। जबतक वे पार्टी के सदस्य थे भारतीय जनता पार्टी ने हरक की सभी ज़िद मानीं। हरक ने कहा कि वे कोटद्वार की बजाय केदारनाथ से चुनाव लड़ेंगे। पार्टी इस पर भी सोच विचार कर रही थी और हरक को केदारनाथ की टिकट मिलने की पूरी-पूरी संभावनाएं थीं। मगर बात तब बिगड़ गई जब उन्होंने परिवार के लिए एक से अधिक टिकट को लेकर भारतीय जनता पार्टी पर दबाव बनाना शुरू किया और यह खींचतान की डोर इतनी अधिक खिंची की हर को पार्टी ने बाहर का रास्ता दिखा दिया। भाजपा के बाद उनके पास एकमात्र विकल्प बचा है कांग्रेस में शामिल होने का। हालांकि कांग्रेस में हरीश रावत उनके वापस आने पर नाराज चल रहे हैं। मगर हरक को यह पता है कि कांग्रेस उनको अपने चरणों में वापस जरूर लेगी। तब तक वह अपने सबसे मारक रुदाली दांव को चल रहे हैं। वे जमकर भारतीय जनता पार्टी की बुराइयां कर रहे हैं और अन्य लोगों से सहानुभूति ले रहे हैं उनका यह दांव चुनाव पर क्या असर डालेगा, यह भविष्य के गर्भ में छिपा हुआ है।

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बात की जाए सोशल मीडिया की तो वहां पर लोग हरकू दा पर जमकर तंज कस रहे हैं और तीखे व्यंग्य कर रहे हैं। उन्होंने तो यह तक कह दिया है कि हर चुनाव से पहले वे रोते है, फिर पांच साल सोते हैं। हरक के निष्कासन की खबर के बीच जैसे ही उनके रोने की वीडिया वायरल हुई तो सोशल मीडिया में उनके आंसुओं पर घमासान मच गया। लोग तरह-तरह के कमेंट करने लगे। किसी ने कहा कि पहले नेता रोते हैं और जो उनके आंसुओं के झांसे में आता है, अगले पांच साल वह रोता है। वहीं पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत को भी लोग हरक को कांग्रेस में शामिल न करने की सलाह दे रहे हैं। दरअसल हरदा का वीडियो वायरल हो रहा हा जिसमें वे कह रहे हैं कि जिन्होंने लोकतंत्र की हत्या की थी, उन्हें वापस आने के लिए माफी मांगनी पड़ेगी। इस पोस्ट के बाद लोग कहते नजर आए कि ऐसे बगावती और धोखेबाज नेताओं से दूर ही रहो। कई लोगों ने यह भी कहा कि कल तक तो भाजपा ठीक थी, अब वक्त बदल रहा है तो भाजपा में बुराई और कांग्रेस अच्छी हो गई। कुल मिला कर उत्तराखंड अभी रणभूमि बना हुआ है। एक तरफ भाजपा है जो कि किसी भी नेता के नखरे उठाने के मूड में नहीं है। दूसरी तरफ कांग्रेस है जो कि हरक को पार्टी में लेकर एक बड़ा दांव चल सकती है। और बीच मे उत्तराखंड राजनीति के वह नाम खड़े हैं जो न इधर के हैं न उधर के। अब हरकू दा की किस्मत की डोर कांग्रेस हाईकमान के पास है। इसी के साथ यह तो तय हो गया है कि उत्तराखंड के सियासी गलियारों में अगला बड़ा भूचाल कांग्रेस पार्टी ही लाएगी।