उत्तराखंड पौड़ी गढ़वालNarendra Singh Negi The Legendary Artist of Uttarakhand

गढ़रत्न नरेन्द्र सिंह नेगी: जिनके शब्दों की जादूगरी ने हर बार मंत्रमुग्ध किया है

नरेंद्र सिंह नेगी जी ने उत्तराखंडी समाज लगभग हर भाव, हर रंग पर गीतों की रचना की है। पढ़िए राज्य समीक्षा के लिए अनूप बिजल्वाण का ये लेख

Narendra Singh Negi: Narendra Singh Negi The Legendary Artist of Uttarakhand
Image: Narendra Singh Negi The Legendary Artist of Uttarakhand (Source: Social Media)

पौड़ी गढ़वाल: उत्तराखंड के प्रतिष्ठित लोकगायक, गीतकार, संगीतकार नरेंद्र सिंह नेगी जी अपने आप में एक संगीत संस्थान हैं

Narendra Singh Negi The Legendary Artist of Uttarakhand

उनके गीतों का संसार देखा जाए तो उसमें जितने भाव, जितने रंग हैं वह हिंदी फिल्म जगत के किसी भी प्रसिद्ध गीतकार से विविध नजर आते हैं। नरेंद्र सिंह नेगी जी ने उत्तराखंडी समाज लगभग हर भाव, हर रंग पर गीतों की रचना की है। उनके गीतों में प्रेम है, उत्सव है, विरह है, वेदना है, प्रकृति और पहाड़ों का सौंदर्य है, पहाड़ के जीवन की दुरूहता है, पलायन का दर्द है, और उत्तराखंड के सामाजिक राजनैतिक संघर्ष के स्वर हैं।
यूं तो नेगी जी के गीतों के भाव बहुत विविध हैं लेकिन उनका मुख्य भाव देखा जाए तो प्रेम और प्रकृति हैं। उनके गीतों में सारे बिम्ब, प्रतीक उपमाएं प्रकृति से आते हैं और जहां तहां प्रकृति का बड़ा खूबसूरत मानवीकरण करते हैं।जैसे उनका यह गीत
मालू ग्वीरालु का बीच खिलीं साकिनी अहा
गोरि मुखड़ी मां लाल ओंठडी जनि अहा
बांज अंयांरु का बीच खिल्यूं बुरांस कनु
हैरी साड़ी मां बिलोज लाल पैर्यूं हो जनू
यह गीत वैसे तो प्रकृति के सौंदर्य के वर्णन का है लेकिन इसमें प्रकृति के सौंदर्य का प्रेमिका के रूप से मानवीकरण किया गया है। जैसे मालू और ग्वीराल के वृक्षों के बीच जो साकीना के फूल खिले हैं वे प्रेमिका के गोरे मुखड़े में लाल ओंठों जैसे हैं। बांज और अंयांर के वृक्षों के बीच में जो बुरांस खिला है वह हरी साड़ी में पहने लाल ब्लाउज जैसा है।
प्रकृति का पुट नेगी जी के गीतों की सबसे खास विशेषता उनके लगभग हर गीत में प्रकृति का कोई न कोई बिम्ब जरूर होता है। उनके प्रेम गीतों में तो प्रकृति के बिना प्रेम की कल्पना लगभग असंभव है वे जब प्रेम का वर्णन करते हैं उसमें प्रकृति की कल्पना करते हैं और प्रकृति का वर्णन करते हैं तो उसमें प्रेम की कल्पना करते हैं। उनके गीतों में प्रकृति और प्रेम अलग अलग पहलू नहीं बल्कि आपस में समाहित हैं । जैसे प्रेमिका की कल्पना करता प्रेमी का यह गीत
इनी होली कि, उनी होली
मेरी सौंजड्यां वा बांद कनि होली दौं खुजाणी
लाल होलि बुरांस जनि कि होली फ्योंली जनि पिंगली
( ऐसी होगी कि वैसी होगी, मेरी संगनी वो सुंदर रूपवती कैसी होगी कौन जाने, लाल बुरांस सी होगी या पीली फ्योंलि सी होगी)
इस गीत में प्रेमिका के सौंदर्य की कल्पना प्रकृति के तमाम रंगों से की गई है। पहाड़ के अलग क्षेत्रों में प्राकृतिक सौंदर्य के अनुरूप प्रेमी अपनी प्रेमिका के सौंदर्य कल्पना करता है।
नागपुर चमोली की होगी तो कौंणी अनाज की बाल जैसी होगी। टिहरी जौनसार की होगी तो मक्खन की डली जैसी
होगी। प्राकृति की ऐसी तमाम उपमाएं प्रेमिका को देता है। आगे पढ़िए
मेरी दांडी कांठ्यों का मुलुक जैल्यू, त बसंत ऋतु मां जैई
हैरा बणु मां बुरांस का फूल जब बड़ांग लगाणा होला
बीटा पाखों तैं फ्योंली का फूल पिंगला रंग मा रंग्यांणा होला
इसमें नौकरी चाकरी के लिए पहाड़ से शहर आया आदमी पहाड़ की याद में शहरी लोगों के लिए गाता है कि मेरे पर्वत पहाड़ियों के मुल्क जाना तो वसंत ऋतु में जाना जब हरे भरे जंगलों में बुरांस खिल रहे होंगे खेतों के मेड़-ओढ़ फ्योंली के फूलों से पीले रंग में रंगे होंगे। लैय्या, पैंय्या, ग्वीराल भिन्न भिन्न प्रकार के फूलों से धरती सजी होगी देख आना। इस गीत में नेगी जी ने पहाड़ तमाम सौंदर्य को; यहां की प्रकृति, प्रेम, लोक संस्कृति, सांकृतिक पर्व, जन जीवन हर अक्स को बखूबी पिरोया है।
नेगी जी के प्रेम और प्रकृति के गीतों में जितनी मधुरता है, सामाजिक समस्याओं और संघर्ष के गीतों में उतनी ही प्रखरता है। शराबखोरी की समस्या पर उनका गीत
दारू बीना यख मुक्ति नी, बिना दारू का क्वी जुगती नी
उत्तराखंड में हर कार्य में शराब की अनिवार्यता और उसके नुकसान बताते हुए नीति नियंताओं पर तंज करता है तो उत्तराखंड राज्य आंदोलन में उनका गीत
उठा जागा उतराखंड्यों सौं उठाणों बगत ऐगे
उतराखंड का का मान सम्मान बचाणौं बगत ऐगे
उत्तराखंड के जन जन में आंदोलन में सम्मिलित होने का जोश भरता है। उत्तराखंड राज्य आंदोलन में नेगी जी गीतों की एक अहम भूमिका रही उनके गीतों ने गांव गांव तक आंदोलन की चेतना जगाने का कार्य किया किया।
मथि पहाड़ू बीटी निस गंगाड़ू बिटी
स्कूल दफ्तर शैरू बजारु बिटी
बोला कख जाणा छा तुम लोग
उत्तराखंड आंदोलन मां
गीत ने आंदोलन की विशाल व्यापकता और रोष को दिखाकर लोगों को प्रेरित किया तो जीजा साली के संवाद में लिखे गीत
हिट स्याली धर हाथ थमाली चल उत्तराखंडै रैली मा
इस गीत ने आंदोलन को विकट संघर्ष की जगह जीजा साली की ठिटोली के समान मस्ती के माहौल जैसा आसान बना दिया। इस गीत में एक जीजा अपनी साली को उत्तराखंड आंदोलन की रैली में चलने के लिए ऐसे प्रेरित कर रहा जैसे कि किसी पिकनिक स्पॉट में घूमने के लिए। लाठी गोली खाने को किसी बेहतरीन डिश को खाने जैसा प्रदर्शित करता है। हथकड़ी और बेड़ियां को किसी सुंदर आभूषण के समान प्रदर्शित करते हुए वह बातों ही बातों में अपनी साली को आंदोलन की आवश्यकता समझा देता और उसे आंदोलन में चलने के लिए राजी कर लेता है। आंदोलन के गीत में ऐसा अनूठा प्रयोग नेगी जी के सिवाय और कोई नहीं कर सकता।
नरेंद्र सिंह नेगी जी ने उत्तराखंडी जन मानस के हर भाव को प्रखरता से व्यक्त किया है। उनके गीतों में जहां प्रेम और प्रकृति की उपासना है तो अपने हक हकूकों के लिए लड़ने की हुंकार भी है। पहाड़ के सौंदर्य का वर्णन है तो यहां की दुरूहता का भी दर्शन है। व्यक्तिगत जीवन के संघर्षों की गीत हैं तो सामाजिक संघर्ष के भी गीत हैं। नेगी जी के गीतों का संसार जितना व्यापक है उसे एक लेख में समेटना मुश्किल है। यहां केवल कुछ गीतों के माध्यम उनके व्यापक रचना संसार की एक झलक प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है।

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