ऋषिकेश: हरिद्वार लोकसभा सीट और ऋषिकेश में मिलकर देखे तो साधू-संतों की कुल संख्या लाखों में है। ये संत लोग हरिद्वार और ऋषिकेश में स्थित मंदिरों, आश्रम, अखाड़े तथा धार्मिक संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। ऐसे में अधिकांश प्रत्याशी तो चुनाव मैदान में उतरने से पहले अपने चुनाव अभियान की शुरुआत संतों की शरण में जाकर करते हैं। स्पष्ट है कि ये संत धार्मिक आस्था का एक हिस्सा होने के साथ ही मतदाता भी हैं। इन मतदाता संतों की संख्या भी कई हजारों में है, तो स्थानीय राजनीतिक दलों और प्रत्यशियों के लिए दोनों तरह से महत्वपूर्ण रहते हैं।
50 हजार से अधिक संत मतदाता
हरिद्वार और ऋषिकेश के अलावा रुड़की, हरिद्वार का ग्रामीण क्षेत्र, और डोईवाला आदि विधानसभाओं को भी जोड़े तो हरिद्वार लोकसभा सीट में मतदाता साधु-संतों की संख्या 50 हजार से भी अधिक पहुंच जाती है। हरिद्वार विधानसभा में ही लगभग 27 हजार मतदाता साधु-संत हैं, और ऋषिकेश विधानसभा में लगभग मतदाता साधु-संत 10 हजार हैं। हरिद्वार ग्रामीण, और रुड़की, डोईवाला तथा अन्य विधानसभाओं में भी लगभग 15 से 20 हजार मतदाता साधु-संतों की संख्या है।
ऋषिकेश-हरिद्वार के साधु-संतों का यह वोट किसी आशीर्वाद के रूप में नहीं देते हैं। बल्कि अपने अखाड़ों और धार्मिक संस्थाओं की अपनी-अपनी राजनीतिक निष्ठा से साधु कई मौकों पर काफी हद तक वोट्स अलग-अलग दलों को वोट देते हैं। उत्तरखंड में हरिद्वार लोकसभा सीट पर जनता साधु-संतों को आध्यात्मिक रूप से भले ही प्रमुखता देते हैं। लेकिन जब भी साधु-संतों को सत्ता में पहुंचाने की बात आती है, तब आम जनता द्वारा उन्हें अक्सर अस्वीकार किया जाता है। साधु-संतों की ओर से टिकट के लिए बार-बार मजबूत पैरवी करने के बावजूद उनको अमूमन राजनीतिक दलों ने भी टिकट देने के मामले में कोई वरीयता नहीं मिलती है।
तीन लोक सभाओं के लिए महत्वपूर्ण
हरिद्वार, गढ़वाल और टिहरी तीन लोकसभायें ऋषिकेश और हरिद्वार के संत मतदाताओं से सधती हैं। सभी राजनीतिक दल और चुनाव प्रत्याशी अपने-अपने तरीकों से साधुओं के वोट बैंक को अपनी पार्टी तरफ करने की कोशिश में जुटे रहते हैं। राजनीति की इस चुनावी दौड़ में जहां हर एक वोट की अपनी एक कीमत होती है। वहां इतने अधिक संख्या में साधु-संतों के वोट्स सभी राजनीतिक दलों के लिए महत्वपूर्ण हो जाते हैं। हरिद्वार लोकसभा सीट पर भाजपा के प्रत्याशी त्रिवेंद्र सिंह रावत और पौड़ी गढ़वाल लोकसभा सीट पर भाजपा के प्रत्याशी अनिल बलूनी दोनों आने वाले लोकसभा चुनाव के लिए ऋषिकेश व मुनिकीरेती क्षेत्र में संतों की शरण में जाकर अपना चुनाव अभियान का श्रीगणेश कर चुके हैं।
नरेंद्रनगर विधानसभा का मुनिकीरेती, तपोवन क्षेत्र और यमकेश्वर विधानसभा का स्वर्गाश्रम व लक्ष्मणझूला क्षेत्र भी साधु-संतों का बहुत बड़ा गढ़ है। इन स्थानों पर भीधार्मिक संस्थाएं, अखाड़े और मंदिरों में हजारों मतदाता साधु संत हैं। ये सभी क्षेत्र गढ़वाल लोकसभा सीट के अंतर्गत आते हैं। इसलिए गढ़वाल लोकसभा सीट पर चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशी भी चुनाव प्रचार के दौरान इन स्थानों पर साधु-संतों की शरण में जाते हैं। टिहरी लोकसभा में भी ऋषिकेश और देहरादून का बड़ा क्षेत्र पड़ता है।
देवभूमि में ज्यादा नहीं चले संत नेता
हरिद्वार विधानसभा सीट पर साधु-संतो का इतना बड़ा वोटर बैंक होने के बावजूद भी साधू-संत राजनीतिक चुनावों में विशेष कमाल भी नहीं दिखा पाए हैं। जगदीश मुनि राम मंदिर आंदोलन की लहर में हरिद्वार से विधायक चुने गए। इसके बाद स्वामी यतींद्रानंद, ब्रह्मस्वरूप ब्रह्मचारी, सतपाल ब्रह्मचारी, और सतपाल ब्रह्मचारी को लोकसभा और विधानसभा के चुनावों में हार का सामना करना पड़ा। हरिद्वार विधानसभा चुनाव में एक अखाड़े के संत स्वामी सुंदर दास को हार का मुँह देखना पड़ा। स्वामी यतीश्वरानंद विधानसभा चुनाव में एक बार जीतनेके बाद अगली बार उन्हें भी हार का सामना करना पड़ा।