उत्तराखंड टिहरी गढ़वालNo Voting in 24 Villages in Uttarakhand for Lok Sabha Election 2024

उत्तराखंड: 6 जिलों में 24 निर्जन गांव, यहां आजादी के बाद पहली बार नहीं होगा मतदान

Lok Sabha Election 2024: आजादी के बाद यह पहली बार ऐसा होने जा रहा है, जब प्रदेश के 6 जिलों के 24 गाँव से लोकसभा चुनाव में एक भी वोट नहीं पड़ेगा।

Lok Sabha Election 2024: No Voting in 24 Villages in Uttarakhand for Lok Sabha Election 2024
Image: No Voting in 24 Villages in Uttarakhand for Lok Sabha Election 2024 (Source: Social Media)

टिहरी गढ़वाल: देश में हो रहे 16वीं लोकसभा चुनावों में भागीदारी करने वाले 24 गांवों में इस बार वोट नहीं पड़ेंगे। पलायन के चलते उत्तराखंड के इन गांवों को निर्जन घोषित कर दिया गया है, यहाँ अब कोई भी निवास नहीं करता।

No Voting in 24 Villages in Uttarakhand for Lok Sabha Election 2024

भारतीय स्वतंत्रता के बाद देश में हो रहे 16वीं लोकसभा चुनावों में भाग लेने वाले 24 गांवों में इस बार कोई वोट नहीं पड़ेगा। वोट न देने की वजह जानकार आपको आश्चर्य होगा। पलायन आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, उत्तराखंड में इन गांवों को निर्जन घोषित किया गया है। अर्थात इन गांवों में अब कोई नहीं रहता है। ये गांव टिहरी, पौड़ी गढ़वाल, चम्पावत, अल्मोड़ा, पिथौरागढ़ और चमोली जिले के हैं। पलायन आयोग ने फरवरी 2023 में दूसरी रिपोर्ट जारी करते हुए बताया था कि 2018 से 2022 तक उत्तराखंड की 6436 ग्राम पंचायतों में अस्थायी पलायन हुआ।

जरुरत पड़ने या घूमने के लिए आते हैं गाँव

तीन लाख से अधिक लोग रोजगार के लिए अपने गांव छोड़कर बाहर शहरों में चले गए हैं। हालांकि कुछ लोगों का बीच-बीच में जरुरत पड़ने या घूमने के लिए गाँव आना जारी है। इस अवधि में उत्तराखंड राज्य के 2067 गाँवों से लोगों का स्थायी पलायन हुआ है। ये लोग अब रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य, और आर्थिक सुधार के लिए अपने गांव को छोड़कर बाहर शहरों में गए और वहीं बस गए।

6 जिलों के 24 निर्जन गांवों का ब्यौरा

टिहरी गढ़वाल - 09
चम्पावत - 05
पौड़ी गढ़वाल - 03
पिथौरागढ़ - 03
अल्मोड़ा - 02
चमोली - 02

रोजगार, शिक्षा और स्वास्थ्य असली वजह

उत्तराखंड के ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक पलायन होता है क्यूंकि यहाँ लोगों के पास शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार संबंधित अवसर की कमी होती है। इसलिए वे बेहतर जीवन और आर्थिक संरक्षण की उम्मीद में शहर निकल पड़ते हैं। देखा गया है कि कुछ लोगों ने अपनी पुस्तैनी खेती या ज़मीनें बेच दी जबकि कुछ लोग भूमि बंजर छोड़कर चले गए। यह सबसे अधिक अल्मोड़ा ज़िले में हुआ है जहाँ 80 ग्राम पंचायतों के लोगों ने अपने गांवों को स्थायी रूप से छोड़ दिया है। आयोग की रिपोर्ट में सबसे महत्वपूर्ण निष्कर्ष यह निकला है कि वर्ष 2018 से 2022 तक उत्तराखंड के 24 गांवों पूर्ण रूप से आबादी रहित हो गए हैं। इस बार खाली गांवों में लोकसभा चुनाव की धूमधाम नहीं देखने को मिलेगी। यहाँ पर पोलिंग बूथ तो बिल्कुल नहीं बनेंगे और न ही किसी प्रत्याशी चुनाव प्रचार के लिए अपना कदम रखेगा।

  • 28 हजार मतदाताओं का पलायन

    Migration of 28 thousand voters
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    पलायन आयोग के अनुसार प्रदेश में वर्ष 2018 से 2022 तक कुल 2067 ग्राम पंचायतों में स्थायी पलायन हुआ है। इस दौरान 28531 लोग जिला मुख्यालयों या दूसरे जिलों में चले गए हैं। पलायन करने वालों में सर्वाधिक 35.47 प्रतिशत लोग नजदीकी कस्बों में चले गए। जबकि 23.61 प्रतिशत लोग दूसरे जिलों में जा चुके हैं और 21.08 प्रतिशत लोगों ने राज्य से बाहर रहने लगे हैं। इसके अतिरिक्त 17.86 प्रतिशत लोग अब जिला मुख्यालयों में निवास कर रहे हैं।

  • राज्यसमीक्षा (rajyasameeksha.com) का पलायन पर विचार

    Rajya Sameeksha's (rajyasameeksha.com) views on migration
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    उत्तराखंड में पलायन स्थिति पर विचार करते हुए, हमें यह समझ में आता है कि गाँवों में पलायन की समस्या का समाधान के लिए सरकार को गाँवों में शिक्षा, रोजगार और स्वास्थ्य सेवाओं के विकास पर प्राथमिकता देनी चाहिए। यदि प्रदेश सरकार ग्रामीण क्षेत्रों में ये सुविधाएं प्रदान करें, तो पलायन की समस्या में जरूर कमी आएगी। पलायन का मुख्य कारण है कि गाँवों में अच्छी और सस्ती स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं हैं। लोग अधिक उच्चतम शिक्षा, रोजगार और स्वास्थ्य सेवाओं के लिए शहरों में जाते हैं। इसलिए सरकार को गाँवों में इन सुविधाओं की प्रदान करने के लिए प्रयास करना चाहिए। जिससे गाँवों में पलायन में कमी आएगी। इससे न केवल गाँवों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति में सुधार होगा बल्कि पहाड़ का पानी, पहाड़ की जवानी, पहाड़ के काम आएगी जिससे प्रदेश के साथ-साथ राष्ट्र के विकास में भी योगदान होगा।