उत्तराखंड श्रीनगर गढ़वालKamleshwar Temple of Shrinagar Garhwal Uttarakhand

उत्तराखंड: यहां विश्वमोहिनी रूप में दर्शन देते हैं भगवान विष्णु, शिव ने 11 हजार वर्ष किया था तप

देवभूमि उत्तराखंड में भगवान शिव के कई पौराणिक मंदिर स्थित हैं, जो धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से बहुत महत्वपूर्ण हैं। ऐसा ही एक पौराणिक मंदिर श्रीनगर गढ़वाल में भी है।

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Kamleshwar Mahadev: Kamleshwar Temple of Shrinagar Garhwal Uttarakhand
Image: Kamleshwar Temple of Shrinagar Garhwal Uttarakhand (Source: Social Media)

श्रीनगर गढ़वाल: पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान शिव ने इस स्थल पर 11 हजार वर्षों तक भगवान विष्णु के मोहिनी अवतार के दर्शन के लिए कठोर तपस्या की थी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उन्हें विश्वमोहिनी अवतार में दर्शन दिए।

Kamleshwar Temple: Shiva Penance For 11 Thousand Years here

देवों के देव महादेव पहले योगी माने जाते हैं, अरण्य संस्कृति के काल से ही भगवान शिव की पूजा होती आ रही है। सनातन शास्त्रों में उल्लेखित है कि भगवान शिव ब्रह्मांड को संजीवनी शक्ति प्रदान करते हैं। वे न आदि हैं और न अंत इसलिए उन्हें अनादि कहा जाता है। उत्तराखंड में भगवान शिव के कई पौराणिक मंदिर स्थित हैं, लेकिन श्रीनगर गढ़वाल में एक विशेष मंदिर है जहाँ भोलेनाथ ने 11 हजार वर्षों तक कठोर तप किया। इसके बाद भगवान विष्णु ने उन्हें विश्वमोहिनी अवतार में दर्शन दिए। कहा जाता है कि लगभग एक हजार वर्ष पूर्व जगतगुरु शंकराचार्य और देवशिल्पी भगवान विश्वकर्मा ने यहाँ मंदिर का निर्माण किया, जिसे शंकर मठ नाम से जाना जाता है।

  • एकमात्र स्थान जहाँ विश्वमोहिनी अवतार में होते हैं दर्शन

    Kamleshwar Mahadev Garhwal
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    यह मंदिर अपनी प्राचीनता के साथ-साथ, शालिग्राम पत्थर से बनी भगवान विष्णु की मोहिनी अवतार की मूर्ति के लिए भी प्रसिद्ध है, जो यहां की दुर्लभ और विशेष विशेषताओं को दर्शाती है। श्रीनगर में भगवान विष्णु एकमात्र विश्वमोहिनी अवतार में दर्शन देते हैं। माना जाता है जब शंकराचार्य ने चार धाम बारह ज्योतिर्लिंग और एक रात में 360 मठों की स्थापना की उसी कालखंड में लगभग एक हजार वर्ष पूर्व शंकर मठ का निर्माण भी हुआ। इस मंदिर में शालिग्राम पत्थर से निर्मित तीन प्रमुख मूर्तियाँ स्थापित हैं: पहली राधा बल्लभ की, दूसरी विश्वमोहिनी अवतार की और तीसरी मां राजराजेश्वरी की मूर्ति।

  • हर पावन पर्व में श्रद्धालुओं की लगती है भीड़

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    मान्यता है कि बैकुंठ चतुर्दशी के अवसर पर शंकर मठ में पूजा-अर्चना के बाद कमलेश्वर महादेव मंदिर में 365 बातियां चढ़ाई जाती हैं। हर सावन के सोमवार, शिवरात्रि और श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर की गई पूजा से भगवान शिव और भगवान विष्णु भक्तों की सभी मनोकामनाओं को पूरा करते हैं। सावन के प्रत्येक सोमवार को शंकर मठ में दर्शन के लिए श्रद्धालुओं की बड़ी भीड़ देखी जाती है। आप भी दर्शन करने यहाँ जरूर जाएं।

  • खड़रात्रि पूजा से होती है संतान प्राप्ति!

    Kamleshwar Mahadev Temple
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    कमलेश्वर मंदिर में होने वाली पूजा निसंतान दंपतियों की सूनी गोद भरने के लिए प्रसिद्ध है। उत्तराखंड के कई मंदिर ऐसे हैं जहां संतान प्राप्ति के लिए “खड़े दीये” की पूजा की जाती है। इस पूजा को स्थानीय भाषा में “खड़रात्रि” कहा जाता है। इस दौरान संतान की इच्छुक महिलाएं अपने पति के साथ इस मंदिर में रातभर जलते दीये को हाथों में लेकर खड़ी रहती हैं। भगवान शिव की आराधना की जाती है। कहा जाता है कि यहां दिल से और मन से पूजा की जाए तो हर इच्छा पूरी होती है। मान्यता है कि इस पूजा के बाद भगवान शिव के आशीर्वाद से कई दम्पतियों को संतान की प्राप्ति हुई है। वैकुण्ठ चतुर्दशी के दिन खड़रात्रि पूजा करने की चाहत रखने वाले दंपतियों का यहां रजिस्ट्रेशन होता है। वैकुण्ठ चतुर्दशी के दिन गोधूलि बेला पर पुजारी दीपक प्रज्वलित कर अनुष्ठान की शुरुआत करते हैं। मंदिर के ब्राहमणों द्वारा हर निसंतान दंपति से संकल्प लिया जाता है और पूजा कराई जाती है।