उत्तराखंड नैनीतालNainital High Court Strict On Assembly Backdoor Recruitment

Uttarakhand: विधानसभा बैकडोर भर्ती पर हाईकोर्ट सख्त, राज्य सरकार को 3 सप्ताह का दिया टाइम

विधानसभा में बैकडोर भर्ती में हुए भ्रष्टाचार को लेकर नैनीताल हाईकोर्ट ने सरकार से जवाब माँगा है।

Assembly Backdoor Recruitment: Nainital High Court Strict On Assembly Backdoor Recruitment
Image: Nainital High Court Strict On Assembly Backdoor Recruitment (Source: Social Media)

नैनीताल: याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया है कि विधानसभा सचिवालय द्वारा 2016 के बाद की भर्तियों को निरस्त करने के लिए एक जांच समिति गठित की गई, लेकिन इसके पूर्व की नियुक्तियों पर कोई कार्रवाई नहीं की गई है।

Nainital High Court Strict On Assembly Backdoor Recruitment

नैनीताल हाईकोर्ट ने विधानसभा में बैकडोर भर्ती के आरोपों को लेकर दायर जनहित याचिका पर उत्तराखंड सरकार को तीन सप्ताह का समय देते हुए जवाब दाखिल करने का आदेश दिया है। मंगलवार को मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रितु बाहरी और न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ के सामने याचिका की सुनवाई हुई। याचिकाकर्ता ने 2000 में राज्य गठन के बाद से 2022 तक विधानसभा में हुईं बैकडोर नियुक्तियों की जांच और संबंधित माननीयों से सरकारी धन की वसूली की मांग की है। अगली सुनवाई 15 अक्टूबर को निर्धारित की गई है। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता अभिजय नेगी ने बताया कि कोर्ट ने छह फरवरी 2003 के शासनादेश के अनुसार कार्रवाई के निर्देश दिए हैं, जिसमें ‘माननीयों से सरकारी धन की वसूली’ का भी स्पष्ट उल्लेख है।

हाईकोर्ट ने सरकार को 3 सप्ताह में जवाब देने को कहा

हालांकि कई महीनों का समय बीत चुका है, लेकिन सरकार की ओर से कोई उत्तर नहीं आया। मंगलवार को हाईकोर्ट ने सरकार को स्पष्ट निर्देश देते हुए कहा कि सचिव कार्मिक को तीन सप्ताह के भीतर जवाब प्रस्तुत करना होगा। याचिकाकर्ता अभिनव थापर ने जनहित याचिका के माध्यम से विधानसभा में हुई भर्तियों को चुनौती दी है। उन्होंने कहा कि विधानसभा सचिवालय ने वर्ष 2016 के बाद की भर्तियों को निरस्त करने के लिए एक जांच समिति का गठन किया था, लेकिन इससे पहले की नियुक्तियों पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। याचिका में आरोप लगाया गया है कि घोटाला वर्ष 2000 से राज्य गठन के अब तक जारी रहा है और सरकार ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया। तदर्थ नियुक्तियों के मामले में तत्कालीन विधानसभा अध्यक्षों और मुख्यमंत्रियों के शासनादेश के अनुसार रिकवरी भी नहीं हुई।