उत्तराखंड Story of arsa arsalu of garhwal

सिर्फ गढ़वाल में ही कहां से आया ‘अरसा’ ? 1100 साल पहले का इतिहास जानिए

अरसा...ये स्वाद जिसके मुंह लगा , वो आज तक इसे भूल नहीं पाया होगा। क्या आपने कभी सोचा कि आखिर अरसा सिर्फ गढ़वाल में कहां से आया ?

उत्तराखंड न्यूज: Story of arsa arsalu of garhwal
Image: Story of arsa arsalu of garhwal (Source: Social Media)

: अरसा...इसे एक बार मुंह में रख लीजिए, तो कभी ना भूलने वाली मिठास मंह में घुल जाती है। आज खाइए, या कल खाइए, या एक महीने बाद, अरसे का स्वाद ताउम्र एक जैसा रहेगा। आज अरसा बनाने की कला हर गढ़वाली भूल रहा है। गढ़वाली हम इसलिए कहेंगे क्योंकि ये डिश आपको उत्तराखंड केे गढ़वाल में ही मिलेगी। अब सवाल ये है कि आखिर अरसा सिर्फ गढ़वाल में ही कैसे आया। अगल बगल देखो तो ना ही कुमाऊं, ना ही नेपाल, ना ही तिब्बत, ना ही हिमाचल , कहीं भी अरसा नहीं बनता, फिर ये गढ़वाल में कैसे आ गया ? कभी सोचा है ? तो लीजिए हम आपको बता दे रहे हैं। जिस अरसा को आप गढ़वाल में खाते हैं, उसे कर्नाटक या यूं कहें कि दक्षिण भारत में अरसालु नाम से पुकारते हैं। अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर दक्षिण भारत का गढ़वाल स क्या कनेक्शन है ?

ये भी पढ़ें:

यह भी पढें - उत्तराखंड का वो मंदिर..जहां मार्क जुकरबर्ग भी सिर झुकाते हैं, खुद बताई हैं बड़ी बातें
ये भी हम आपको बता देते हैं। इसका कनेक्शन बेहद धार्मिक भी है। कहा जाता है कि जगदगुरू शंकराचार्य ने बद्रीनाथ और केदारनाथ मंदिरों का निर्माण करवाया था। इसके अलावा गढ़वाल में कई ऐसे मंदिर हैं, जिनका निर्माण शंकराचार्य ने करवाया था। इन मंदिरों में पूजा करने के लिए दक्षिण भारत के ही ब्राह्मणों को रखा जाता है। कहा जाता है कि नवीं सदी में दक्षिण भारत से ये ब्राह्मण गढ़वाल में अरसालु लेकर आए थे। दरअसल अरसा काफी दिनों तक चल जाता है, इसलिए वो पोटली भर-भरकर अरसालु लाया करते थे। धीरे धीरे इन ब्राह्मणों ने ही स्थानीय लोगों को ये कला सिखाई। लीजिए...गढ़वाल में ये अरसालु बन गया अरसा। 9वीं सदी से अरसालु लगातार चलता आ रहा है, यानी इतिहासकारों की मानें तो बीते 1100 साल से गढ़वाल में अरसा एक मुख्य मिष्ठान और परंपरा का सबूत था।

ये भी पढ़ें:

यह भी पढें - गढ़वाल राइफल के शौर्य का सबूत है ये युद्ध, जब पाकिस्तान में घुसकर गरजे थे गढ़वाली वीर
ये दुनिया की सर्वश्रेष्ठ मीठी चीज है। फर्क क्या है ये भी जरा जान लीजिए। गढ़वाल में गन्ने का गुड़ इस्तेमाल होता है और कर्नाटक में खजूर का गुड़ इस्तेमाल होता है। बस यही थोड़ा सा फर्क है स्वाद में। धीरे धीरे ये गढ़वाल का यादगार व्यंजन बन गया। इसके अलावा अरसा तमिलनाडु, केरल, आंध्र, उड़ीसा और बंगाल में भी पाया जाता है। कहीं इसे अरसालु कहते हैं और कहीं अनारसा। लेकिन आज सोचने वाली बात ये है कि हम इसे लगातार भूलते जा रहे हैं। आज आप किसी गढ़वाली से पूछेंगे कि अरसा क्या होता है ? काफी युवा ऐसे होंगे, जो अरसे की जगह फास्ट फूड को तरजीह देंगे। अरसा केवल हमारी संस्कृति ही नहीं बल्कि शरीर के लिए बेहद की पौष्टिक आहार है। शरीर में शक्ति और ऊर्जा का प्रवाह बढ़ाने के लिए इसका इस्तेमाल होता था।