उत्तराखंड nelong velley uttarakhand

देवभूमि का वो शहीद स्मारक..जहां सपने में पानी मांगने आते हैं शहीद जवान..पढ़िए अद्भुत कहानी

शौर्य, परंपराओं और संस्कृति का अनूठा मिश्रण है उत्तराखंड...आज हम आपके बीच वो कहानी लेकर आए हैं, जिसे शायद आप बहुत कम जानते होंगे...पढ़ें और शेयर करें

उत्तराखंड: nelong velley uttarakhand
Image: nelong velley uttarakhand (Source: Social Media)

: कहते है हर पंरपरा के पीछे कोई दिलचस्प कहानी छिपी होती है। खासतौर पर उत्तराखंड में आपको चप्पे चप्पे पर ऐसी कहानियां सुनने को मिल जाएंगी। कई परंपराएं ऐसी भी हैं, जो आज तक निभाई जा रही हैं। ऐसी ही एक परंपरा उत्तरकाशी जिले के नेलांग घाटी पर ड्यूटी करने वाला जवान भी निभाता है। ये पंरपरा लोगों को एहसास कराती है कि हमारी सुरक्षा के लिए हमारे वीर सपूत कैसी तकलीफों से गुजर जाते हैं। नेलांग घाटी में भारत तिब्बत सीमा पुलिस और सेना की चौंकियां है। जिस वजह से देश के जवान यहां डयूटी पर तैनात रहते है। गर्मियों तो यहां पर डूयटी करना उतना मुश्किल नहीं होता। लेकिन सर्दियों में यहां पर भारी बर्फ पड़ जाती है। इस वजह से जवानों को बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। यहां तक कि यहां तैनात जवानों को पानी भी बर्फ पिघलाकर पीना पड़ता है। यहां पर निभाई जाने वाली अनोखी पंरपरा भी पानी से ही जुड़ी है। आगे पढ़िए...

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ये घटना 22 साल पहले की, जब उत्तरकाशी जिले की नेलांग घाटी में भारत-चीन एफडी रेजीमेंट ">एफडी रेजीमेंट के तीन सैनिक पीने को पानी की तलाश में भटकते हुए ग्लेशियर के नीचे दबकर शहीद हो गए थे। उन शहीदों के प्रति सेना और अ‌र्द्धसैनिक बलों के जवानों की आस्था देखिए कि आज भी सीमा पर आगे बढ़ने से पहले उनके स्मारक पर पानी से भरी बोतल रखना नहीं भूलते। जवान कहते हैं कि शहीद सैनिक कई बार उनके सपने में आते हैं और पीने को पानी मांगते हैं। 6 अप्रैल 1994 को 64 एफडी रेजीमेंट के सैनिक हवलदार झूम प्रसाद गुरंग, नायक सुरेंद्र और दिन बहादुर गश्त कर रहे थे। नेलांग से दो किलोमीटर पहले धुमका में ये सैनिक पानी पीने के लिए एक ग्लेशियर के पास गए। कहा जाता है कि तभी अचानक ग्लेशियर टूट गया और तीनों सैनिक उसके नीचे दब गए।

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इन शहीद सैनिकों की याद में धुमका के पास उनका मेमोरियल बनाया गया। नेलांग सीमा पर तैनात जवानों का दावा है कि शहीद सैनिक कई बार उनके सपने में आते हैं और पीने को पानी मांगते हैं। इसीलिए नेलांग घाटी में आते-जाते समय हर सैनिक और अफसर शहीद सैनिकों के मेमोरियल में पानी की बोतल भरकर रखता है। माना जाता है इस घटना के कुछ समय बाद जो – जो सैनिक यहां पर गश्त के लिए आए उन सभी के सपने में वो जवान आए और पानी मांगने लगे। जिसके बाद आइटीबीपी ने यहां पर उन जवानों का स्मारक बनाया। आप इसे आप अंधविश्वास कहें या आस्था लेकिन इतना जरुर कहा जा सकता है कि ये स्मारक और प्रथा हमें इस बात का एहसास जरुर दिलाती है कि हमारे जवान हमारे लिए किस किस परिस्थिति से लड़ते हैं।