उत्तराखंड story of daat kali mandir dehradun

देहरादून का डाट काली सिद्धपीठ...अंग्रेज अफसर के सपने में आई थी मां काली..तब बना मंदिर

मां डाट काली दून क्षेत्र की अधिष्ठात्री हैं, ये मां सती के 9 शक्तिपीठों में से प्रमुख शक्तिपीठ है...

देहरादून डाट काली मंदिर: story of daat kali mandir dehradun
Image: story of daat kali mandir dehradun (Source: Social Media)

: उत्तराखंड भगवान शिव की भूमि है, तो माता सती के प्रयाण की साक्षी भी...यही वो जगह है, जहां आज भी मां सती के अंश विद्यमान हैं, जिन-जिन जगहों पर माता सती के अंश गिरे वहां आज सिद्धपीठ बने हैं, कहा जाता है कि इन सिद्धपीठों में दर्शन करने वालों को मां भगवती मनोकामना पूर्ण होने का वरदान देती हैं, भक्तों ने उनकी शक्ति को महसूस भी किया है। मां काली का ऐसा ही चमत्कारी शक्तिपीठ है मां डाटकाली मंदिर, जो कि माता सती के 9 शक्तिपीठों में से एक है। मंदिर के निर्माण के पीछे भी एक अनोखी कहानी है। बताते हैं कि अंग्रेज जब दून घाटी में आ रहे थे तो यहां प्रवेश करने के लिए उन्हें सुरंग बनाने की जरूरत पड़ी। अंग्रेजों ने यहां सुरंग बनाना शुरू कर दिया, इसी दौरान खुदाई करते वक्त मजदूरों को यहां से मां काली की मूर्ति मिली। मूर्ति निकलने के बाद जब अंग्रेज सुरंग निर्माण का काम करा रहे थे तो ये काम आगे नहीं बढ़ पाया। दरअसल मजदूर पूरा दिन खुदाई करने के बाद जब सो जाया करते थे तो सुबह उन्हें वो काम फिर से अधूरा मिलता था।

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कुल मिलाकर काम में लगातार अड़चनें आ रही थीं। मान्यता है कि एक रात मां काली ने एक अंग्रेज इंजीनियर को सपने में दर्शन दिए और उससे मंदिर बनाने को कहा। इसके बाद सुरंग के पास ही मंदिर बनाया गया और वहां मां काली की मूर्ति स्थापना की। तब कहीं जाकर सुरंग बन पाई। गढ़वाली भाषा मे सुरंग को डाट कहते हैं, यही वजह है कि इस मंदिर का नाम डाट काली पड़ा। आज भी नया काम शुरू करते वक्त या नया वाहन खरीदने के बाद श्रद्धालु मां डाट काली के दर्शन करने जरूर आते हैं। नवरात्रि के मौके पर यहां विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। मां डाटकाली के मंदिर को भगवान शिव की अर्धांगिनी माता सती का अंश माना गया है। ये मंदिर देहरादून से 14 किलोमीटर की दूरी पर उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की सीमा पर स्थित है। जो भी दून आता है या दून से जाता है वो मां डाट काली का आशीर्वाद लेने के लिए उनके मंदिर के पास जरूर रुकता है। ये मंदिर जितना चमत्कारी है, इस मंदिर से जुड़ी मान्यताएं भी उतनी ही अनोखी हैं। मंदिर का निर्माण 13 जून 1804 में हुआ था, यानि ये मंदिर दो सौ साल से भी ज्यादा पुराना है।