उत्तराखंड Geological scientist said 40 glaciers and lakes are dangerous in Uttarakhand

उत्तराखंड को भू-वैज्ञानिकों को बड़ी चेतावनी, 40 ग्लेशियर और झीलें मचा सकती हैं तबाही

भू-वैज्ञानिकों का कहना है कि उत्तराखंड में बनी 40 ग्लेशियर झीलें खतरनाक स्थिति में हैं, ये बड़ी तबाही का सबब बन सकती हैं...

Geological scientist: Geological scientist said 40 glaciers and lakes are dangerous in Uttarakhand
Image: Geological scientist said 40 glaciers and lakes are dangerous in Uttarakhand (Source: Social Media)

: अब जो खबर हम आपको बताने जा रहे हैं, उसे पढ़कर आपकी चिंता बढ़ जाएगी। केदारनाथ आपदा के जख्म झेल रहे उत्तराखंड में 40 ग्लेशियर झीलें जलप्रलय मचाने को तैयार हैं। ये हम नहीं कह रहे, भू-वैज्ञानिक कह रहे हैं। उत्तराखंड में करीब 40 ग्लेशियर झीलें खतरनाक स्थिति में हैं, इनका फटना भारी तबाही का सबब बन सकता है। ये जानकारी वैज्ञानकों ने सिंचाई मंत्री सतपाल महाराज को एक बैठक में दी। देहरादून में हुई बैठक में वैज्ञानिकों ने उत्तराखंड के ग्लेशियरों की स्थिति के बारे में बताया। कई मुद्दों पर मंथन हुआ। वैज्ञानिकों ने कहा कि केदारनाथ जैसी आपदा की दोबारा होने से रोकने के लिए ग्लेशियरों की निगरानी करनी होगी। इससे पन बिजली परियोजनाओं की सही देखरेख भी संभव हो सकेगी। वैज्ञानिकों ने क्या कहा है...आगे पढ़िए

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वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के हिमनद विशेषज्ञ डॉ. डीपी डोभाल ने कहा कि उत्तराखंड में 968 ग्लेशियर हैं, जिनमें 1253 झीलें हैं। ग्लेशियर के सामने बनने वाली झील को मोरेन डैम लेक कहते हैं। ऐसी झीलों का बनना खतरनाक है, क्योंकि ऐसी झीलें ही फटने की वजह से तबाही लाती हैं। उत्तराखंड में ऐसी 40 झीलें हैं। दूसरी तरह की झीलें सुपर ग्लेशियर झील हैं, जिनकी संख्या 800 से ज्यादा है। ये मध्यम खतरे वाली झीलें होती हैं। बैठक में काबीना मंत्री सतपाल महाराज ने ग्लेशियरों पर ग्लोबल वार्मिंग के बढ़ते असर पर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र यूसैक के जरिए ग्लेशियर झीलों पर सेटेलाइट से नजर रखी जाएगी। बैठक में वैज्ञानिक संस्थानों ने ग्लेशियरों पर अपना प्रजेंटेशन भी दिया। आपको बता दें कि जून 2013 में केदारघाटी में आई आपदा की वजह भी एक ग्लेशियर झील ही थी। चौराबाड़ी झील के टूटने की वजह से उत्तराखंड में जो सैलाब आया, वो हजारों की जान लेकर थमा था। आपदा के निशान आज भी उत्तराखंड की केदारघाटी में देखे जा सकते हैं। सालों बाद भी लोग सदमे से उबर नहीं पाए हैं।