उत्तराखंड देहरादूनAjay dhaundiyal column about ramesh bhatt song

‘’तुम ‘रैबार का गितार’ बनो रमेश’’

यह आवाज़ बुलाती है, यह आवाज़ पुकारती है। शायद पत्रकार होने के नाते यह आवाज यह सब कुछ कहती है। यह आवाज़ जब गायन के रूप में उभरती है, तो इसमें पहाड़ समाहित होता है।

उत्तराखंड न्यूज: Ajay dhaundiyal column about ramesh bhatt song
Image: Ajay dhaundiyal column about ramesh bhatt song (Source: Social Media)

देहरादून: उत्तराखंड के वरिष्ठ पत्रकार और लोकगायक अजय ढौंडियाल का कहना है कि रमेश भट्ट ‘जय जय हो देवभूमि’ गीत से एक रैबार (संदेश) गितार के रूप में स्थापित हुआ है। मुझे लगता है इनकी आवाज में रैबार है। ये ही रैबार प्रवासी उत्तराखंडियों में जाना चाहिए। यहीं नहीं ये रैबार विश्व के तमाम लोगों के बीच जान चाहिए कि उत्तराखंड सांस्कृतिक, भौगोलिक, धार्मिक दृष्टि से कितना समृद्ध है। यह सब कुछ रमेश भट्ट ने अपने गीत से किया है। रमेश भट्ट ने स्वर्गीय गोपाल बाबू गोस्वामी रचित गीत को नया रूप देकर एक नई गाथा लिखी है। यह गाथा पूरे विश्व को उत्तराखंड बुलाती है, उत्तराखंड के दर्शन कराती है। 6 मिनट में उत्तराखंड दर्शन संभव नहीं है लेकिन रमेश भट्ट ने इसे संभव कर दिखाया। उत्तराखंड देवभूमि के दर्शन आध्यात्मिक, अलौकिक, प्राकृतिक सौंदर्य, सांस्कृतिक रूप से जय जय हो देवभूमि में संभव हुए। यह अपने तरीके का पहला प्रयोग है, जिसमें देवभूमि को इस तरीके से दर्शाया दा रहा है।
एक पत्रकार और कलाकार होने के नाते मैं तो ये ही कह सकता हूं कि जिसने यह गीत नहीं देखा, उसने उत्तराखंड में कुछ नहीं देखा। एक पहाड़ी कलाकार होने के नाते मैंने साढ़े चार सौ गीतों को आवाज़ दी है। इनमें पलायन का दर्द भी है, पहाड़ का सौंदर्य भी है, पहाड़ का प्रकृति प्रेम भी है, पहाड़ के वैज्ञानिक दृष्टि से समृद्ध गीत भी हैं लेकिन ऐसा गीत पेश करने का ख़ुद को कभी मौका नहीं मिल पाया। एक पत्रकार होने के नाते मैं यह कह सकता हूं कि उत्तराखंड की भौगोलिक, सांस्कृतिक समृद्धि, सौंदर्य प्रकृति के तो सभी कायल रहे हैं लेकिन यहां के सौंदर्य में जो संस्कृति रची बसी है, उसको दिखाने का काम रमेश भट्ट ने अपने गीत में किया है।
रमेश भट्ट की आवाज़ अपने आप में अलग है। यह आवाज़ ख़ुद को एक कलाकार और पत्रकार दोनों कहती है। यह आवाज़ बुलाती है, यह आवाज़ पुकारती है। शायद पत्रकार होने के नाते यह आवाज यह सब कुछ कहती है। यह आवाज़ जब गायन के रूप में उभरती है, तो इसमें पहाड़ समाहित होता है। यह पहाड़ की पुकार लगती है क्योंकि इसमें पहाड़ का दर्द, प्राकृतिक सौंदर्य और सब कुछ समाहित लगता है। इस आवाज को सुनकर लगता है कि मैं पहाड़ का हूं। पहाड़ का नहीं भी हूं, किंतु पहाड़ मेरे अन्तर्मन में समाहित है। एक एंकर को ऐसे गायक की आवाज़ मिलनी संभव नहीं लगती लेकिन जब दोनों का संगम एक साथ है तो सब कुछ संभव है। तो चले आओ मेरे पहाड़ के प्रवासियो और पहाड़ के दर्शन करने वाले लालायित लोगो ‘जय जय हो देवभूमि’ देखकर पहाड़ दर्शन करने के लिए।