उत्तराखंड देहरादूनTrivendra singh rawat decision and his ability

उत्तराखंड: क्यों छटपटा रहे हैं त्रिवेंद्र के विरोधी? क्या सीएम के खिलाफ हो गई बड़ी साजिश?

सवाल ये है कि मुखिया को अपशब्द कहने वालों पर एक्शन क्यों नहीं हुआ? क्या किसी और राज्य में ऐसा हो सकता था? क्या इसके पीछे किस गिरोह की साजिश है, इसका पर्दाफाश नहीं होना चहिए?

Trivendra Singh Rawat: Trivendra singh rawat decision and his ability
Image: Trivendra singh rawat decision and his ability (Source: Social Media)

देहरादून: राजनीति में फैसले लेना, अपने ही फैसलों को बदलना कोई नई बात नहीं। जाहिर है ऐसे मुद्दों पर जनता आलोचना भी करती है, इसमें भी कोई बड़ी बात नहीं। लेकिन आप माने न मानें उत्तराखंड में आजकल हर छोटी बड़ी बात के लिए मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को गाली देने और मजाक बनाने का फैशन चल चुका है। जबकि हकीक़त ये है कि त्रिवेंद्र सरकार ने जो भी फैसले लिए वह जनता के हित में लिए, अगर इन फैसलों से जनता को फायदा पहुंचता है तो इसका श्रेय राज्य सरकार को निसंदेह जाना चाहिए, और इसी तरह अगर कोई फैसला उल्टा पड़ता है तो भी विफलता के लिए सरकार ही जिम्मेदार मानी जयेगी। लेकिन सोशल मीडिया के स्वघोषित धुरंधरों को तो जैसे हर बात पर त्रिवेंद्र को गरियाने का बहाना चाहिए। चलिए अब मुद्दे पर आते हैं।
27 मार्च को लॉकडाउन में राज्य सरकार यह आदेश जारी करती है कि प्रदेश में फंसे लोगों को उनके घरों तक पहुंचाने के लिए 31 मार्च को परिवहन खोला जायेगा। तब इस बात पर भी लोग सरकार को कोसने लगे, कि इतनी भी क्या जल्दी है। लेकिन जब केंद्रीय गृहमंत्रालय ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि लॉकडाउन में कोई भी छूट न दी जाय, तो सरकार को यह फैसला वापस लेना पड़ा।

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27 अप्रैल को उत्तराखंड सरकार ने एक आदेश जारी किया कि 4 मई से ग्रीन जोन जिलों में सभी दुकानें सुबह 7 बजे से शाम 7 बजे तक खुली रहेंगी, लेकिन गृह मंत्रालय की आपत्ति के बाद इस फैसले को रोकना पड़ा। इस बीच 2 मई को केंद्र सरकार की गाइडलाइन आई कि दुकानें रोस्टर के हिसाब से खुलेंगी।
तीसरा वाकया प्रवासियों से जुड़ा है। दूसरे प्रदेशों में रह रहे उत्तराखंडी सरकार को कोसते रहे कि उन्हें वापस लाने के प्रयास क्यों नही किये जा रहे। 30 अप्रैल को गृहमंत्रालय की हरी झंडी मिलते ही सबसे पहले त्रिवेंद्र सरकार ने अपने लोगों को घर लाने की पहल की, ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन की सुविधा दी और देखते ही देखते डेढ़ लाख से ज्यादा लोगों ने अपना पंजीकरण भी करा दिया।
यही नहीं मुख्यमंत्री ने प्रवासियों को घर लाने के इंतजाम करने के लिए सम्बन्धित सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों से भी बात की, मगर जैसे ही उन्हें घर लाने की कोशिश हुई, गृह मंत्रालय की एक और एडवाजरी आ गई। अब केवल राहत शिविरों में फंसे लोगों, श्रमिकों, छात्रों आदि को ही लाया जा सकेगा।

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लेकिन सोशल मीडिया पर मीम बनने लगते हैं, गालियां दी जाती हैं, सरकार पर सवाल नहीं उठाया जाता बल्कि सीधे मुख्यमंत्री पर प्रहार किया जाता है। यह ट्रेंड केवल इस मुद्दे पर ही नहीं है। पिछले कुछ समय से कुछ स्वयम्भू पत्रकार, छुटभैये नेता, चाटुकार और सोशल मीडिया पर भेड़चाल चलने वाली नासमझों की फौज एक सोची समझी साजिश के तहत त्रिवेंद्र के खिलाफ एजेंडा चलाते जा रहे हैं।
उत्तराखण्ड के हर नागरिक को पता है कि सीएम त्रिवेंद्र की छवि साफ सुथरे नेता की है। त्रिवेंद्र हमेशा लीक से हटकर जनहित में फैसले लेते रहे हैं। जीरो टोलरेंस के असर से शासन प्रशासन में दलालों, बिचौलिओं, औऱ कुछ ठेकेदार टाइप पत्रकारों का दखल बंद हुआ है। ऐसे लोग परेशान हैं, बात बात पर त्रिवेंद्र को बदनाम करने का बहाना ढूंढते हैं। जिनको सरकार और प्रशासन का सामान्य ज्ञान तक नहीं वो भी सीएम को अपशब्द बोलकर अपनी मानसिकता का बखान करते हैं।
हैरानी तब होती है जब पूरा शासन प्रशासन आंख मूंद कर बैठा है। मुखिया के खिलाफ लोग अंट शंट लिखते हैं और सब चुप रह जाते हैं। न तो मुख्य सचिव, न गृह सचिव, न तो पुलिस विभाग और न ही खुद को सरकार का करीबी बताने वाले सरकार के फैसलों के समर्थन करते। सवाल ये है कि मुखिया को अपशब्द कहने वालों पर एक्शन क्यों नहीं हुआ? क्या किसी और राज्य में ऐसा हो सकता था? क्या इसके पीछे किस गिरोह की साजिश है, इसका पर्दाफाश नहीं होना चहिए?