उत्तराखंड चमोलीStory of Uttarakhand Shaheed Heera Singh

उत्तराखंड: पिता करगिल में शहीद हुए थे, बेटे ने सेना में भर्ती होकर किया मां का सपना पूरा

1999 में कारगिल युद्ध के दौरान अपने शहीद हुए लांसनायक हीरासिंह की शहादत के बाद अब उनके पुत्र भी बुलंद हौसला लिए भारतीय सेना में प्रहरी के तौर पर शामिल हो गए हैं। यह उनके परिवार के लिए गर्व की बात है।

Uttarakhand Shaheed Heera Singh: Story of Uttarakhand Shaheed Heera Singh
Image: Story of Uttarakhand Shaheed Heera Singh (Source: Social Media)

चमोली: उत्तराखंड के नौजवानों के अंदर भारतीय सेना के प्रति जो जज्बा है वह शायद ही कहीं और देखने को मिले। शायद यही कारण है कि भारतीय सेना में आज भी उत्तराखंड की हिस्सेदारी सबसे अधिक है। यहां के युवाओं के रगों में भारतीय सेना में भर्ती होने का जुनून दौड़ता है। इस पावन माटी में हर साल न जाने कितने ऐसे जांबाज जन्म लेते हैं जो देश की रक्षा के लिए अपने प्राण तक न्यौछावर कर देते हैं। सैन्य परंपरा को आगे बढ़ाते हमारे नौजवान आज भी हमें याद दिलाते हैं कि देश की सेवा से बढ़कर और कुछ भी नहीं है। कारगिल के युद्ध में उत्तराखंड की देवभूमि के जवानों की बहादुरी के कई किस्से हमने सुने हैं मगर उन किस्सों का अंत वहां पर नहीं हुआ। उनकी स्मृतियां आज भी उनके सदस्यों के बीच जिंदा हैं और उनके बाद अब उनके परिवार के सदस्य भी सैन्य परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं। कितने ही ऐसे युवा हैं जो भारतीय सेना में जाने की इच्छा पाले बैठे हैं और मेहनत कर मुकाम हासिल कर रहे हैं। आज राज्य समीक्षा आप सबके समक्ष एक ऐसे ही सैनिक की कहानी लेकर आया है जो अपने पिता की शहादत के बाद सैन्य परंपरा को आगे बढ़ा रहा हैं और भारतीय सेना में प्रहरी के तौर पर भर्ती हो कर देश की सीमा पर सुरक्षा कर रहे हैं।

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कारगिल युद्ध के दौरान अपने पिता की शहादत के बाद अब उनके पुत्र भी भारतीय सेना में प्रहरी के तौर पर शामिल हो गए हैं। हम बात कर रहे हैं शहीद लांस नायक हीरा सिंह की जो कि नागा रेजीमेंट में तैनात थे। 30 मई 1999 को कारगिल युद्ध में शहीद हुए लांस नायक हीरा सिंह की पत्नी गंगी देवी आज भी अपने पति को याद करती हैं और उनकी शहादत पर गर्व करती हैं। वे भावुक होकर बताती हैं कि पति के जाने के बाद तीनों बेटों को अकेले पालना उनके लिए काफी कठिन था मगर उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। 1999 में पति की शहादत के बाद चमोली के देवाल गांव में रहने वाला परिवार 2000 में बालावाला में आकर बस गया। एक ओर जहां शहीद लांसनायक हीरा सिंह के बड़े बेटे वीरेंद्र गांव में गैस एजेंसी चला रहे हैं और मंझले बेटे सुरेंद्र भी उसी गैस एजेंसी में अपने बड़े भाई का हाथ बंटा रहे हैं। वहीं उनके छोटे बेटे धीरेंद्र ने पिता की शहादत के बाद बुलंद हौसले और हिम्मत के साथ यह बचपन में ठान लिया था कि वह अपने पिता की तरह सेना में जाएंगे और अपने देश की रक्षा करेंगे।

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बुलंद हौसला लिए जाबांज धीरेंद्र ने 12वीं की परीक्षा का बस एक ही पेपर दिया कि सेना की भर्ती रैली आयोजित की गई। उन्होंने आखिर अपने शहीद पिता की शहादत को याद किया और आर्मी में जाने का अपना सपना पूरा करने की ओर उन्होंने एक आगे कदम बढ़ाया और फौज को चुना। अब जवान धीरेंद्र कुमाऊं रेजिमेंट का हिस्सा बन चुके हैं। वह भी उसी सरहद पर तैनात रहे हैं जहां पर कभी उनके पिता ने देश के लिए बलिदान दिया था और हमेशा के लिए शहीद हो गए थे। उन्हें तकरीबन 3 साल तक कारगिल क्षेत्र में ड्यूटी की और अब फिलहाल लद्दाख में तैनात हैं। उनकी मां और उनके तमाम परिजनों को उनके ऊपर गर्व है। धीरेंद्र की एक पत्नी है और दो बच्चियां भी है। उनकी पत्नी मालती बताती है कि उनके मन में डर सा बना रहता है। किंतु उनकी सास को देखते हुए उनके अन्दर हिम्मत और हौसले का सृजन होता है। वाकई यह गर्व की बात है कि शहीद पिता के बाद अब उनके पुत्र भी घर की सैन्य परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं और भारतीय सेना में भर्ती होकर देश की रक्षा कर रहे हैं।