उत्तराखंड पौड़ी गढ़वालPauri Garhwal Subedar Major Virendra Singh's Wife

गढ़वाल: सैनिक की विधवा को 10 साल करना पड़ा इंतजार..तब जाकर मिला अपना हक

पौड़ी गढ़वाल के सूबेदार मेजर बीरेंद्र सिंह की शहादत के बाद उनकी पत्नी सरोजनी देवी को अपना पेंशन का अधिकार पाने के लिए 10 साल का लंबा इंतजार करना पड़ा। जानिए पूरा मामला

Pauri Garhwal News: Pauri Garhwal Subedar Major Virendra Singh's Wife
Image: Pauri Garhwal Subedar Major Virendra Singh's Wife (Source: Social Media)

पौड़ी गढ़वाल: कितने ही सैनिक ऐसे हैं जो अपनी जिंदगी देश के नाम न्योछावर कर देते हैं। अपने घर-परिवार से दूर होकर सारा जीवन देश के नाम कुर्बान करने वाले एवं देश के लिए जान गंवाने वाले शहीदों के परिवार के साथ अन्याय रुक नहीं रहा। सरकार बड़े-बड़े वादे करती है, शहीदों के परिजनों को हर तरह से मदद के लिए भी आश्वस्त करती है मगर वो वादे महज कुछ ही दिनों के होते हैं। शहीदों के परिजनों को खून के आंसू रुलाने में सिस्टम चूक नहीं रहा है। एक ओर जवान देश के लिए अपनी जान का बलिदान दे रहे हैं मगर उनकी मृत्यु के बाद उनके परिजनों की सुध लेने का किसी के पास भी समय नहीं है। सहायता या सहारा तो छोड़िए शहीदों के परिजनों को तो उनका हक हासिल करने के लिए भी एड़ी-चोटी का जोर लगाना पड़ रहा है। कभी शहीदों के परिजनों को पेंशन देर से मिल रही है तो कुछ आश्रितों को पेंशन के आधे पैसे ही मिल रहे हैं। यह बेहद शर्मनाक है कि उत्तराखंड के अंदर सैनिकों की मृत्यु के बाद उनके परिवार वालों के साथ इस तरह की लापरवाही और बर्ताव किया जा रहा है। आज हम आपको उत्तराखंड के तीन ऐसे केसों के बारे में बताएंगे जिससे यह साबित होता है कि शहीदों के परिजनों के साथ सिस्टम कितना अन्याय कर रहा है और उनको उनके हक की धनराशि लेने के लिए भी कितने सालों की लंबी लड़ाई लड़नी पड़ रही है। पूर्व सैनिक आश्रितों की पेंशन कई सालों तक कम दी जा रही है। 10-10 साल पुराने मामलों का हल अब जाकर निकल पाया है। आगे पढ़िए

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लाइव हिन्दुस्तान की खबर के मुताबिक पौड़ी गढ़वाल के सूबेदार मेजर वीरेंद्र सिंह का निधन बीते 5 दिसंबर 2010 को हो गया था। उनकी पत्नी सरोजनी देवी को दिसंबर 2010 से अबतक तक सामान्य पारिवारिक पेंशन ही दी जाती रही, जबकि सामान्य पेंशन में काफी इजाफा हो गया था। 10 साल के संघर्षों के बाद दिसंबर 2020 में जाकर सरोजनी को एरियर के रूप में 7 लाख 32 हजार 208 रुपए मिल पाए हैं। जी हां, 10 साल से उनका यह केस पेंडिंग पड़ा हुआ था और अब जाकर यह केस सुलझा है और उनको उनके धनराशि मिल पाई है। दूसरा केस महार रेजिमेंट से रिटायर्ड लेफ्टिनेंट मदन मोहन सिंह का है जो कि युद्ध में घायल हो गए थे। नियम के हिसाब से युद्ध के दौरान घायल होने पर 75 फीसदी दिव्यांगता के आधार पर पेंशन दी जानी थी, मगर बैंक उनको 50 फीसदी दिव्यांगता के आधार पर ही पेंशन जारी कर रहा था। सितंबर 2020 में जाकर उनको अपने पिछले कई सालों का बकाया पैसा मिला।

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तीसरे केस में भी 6 साल के बाद शहीद की पत्नी को उनके हक के पैसे मिले हैं। राजेश्वरी देवी के पति सेना में राइफलमैन के रूप में नियुक्त थे और उनके शहीद होने के बाद उनकी पत्नी को भी सामान्य पारिवारिक पेंशन ही मिल रही थी। नवंबर 2013 से लेकर नवंबर 2019 पर पुरानी दर पर ही उनको पेंशन देती जाती रही। 6 साल की लंबी लड़ाई के बाद आखिरकार राजेश्वरी देवी को अपना पुराना बकाया पैसा वापस मिला और उनको 4 लाख 60 हजार एरियर मिल पाया। पौड़ी गढ़वाल की सरोजनी देवी ने 10 साल की लंबी लड़ाई के बाद और सैकड़ों बार बैंक एवं कार्यालय के चक्कर काटने के बाद आखिरकार अपने हक का पैसा प्राप्त किया है। उन्होंने बताया कि उनके पति के शहीद होने के बाद उनको पारिवारिक पेंशन के रूप में 12 हजार रुपए दिए जाते थे जो कि बढ़ते बढ़ते 17 हजार हो गए थे मगर उनको 10 सालों से उतने ही पैसे मिलते रहे। उन्होंने कहा कि 10 साल के बाद आखिरकार उनको एरियर की पूरी राशि मिल पाई है। वहीं सैनिक कल्याण एवं पुनर्वास के निदेशक के केबी चंद का कहना है कि यदि किसी भी पूर्व सैनिक या उसके आश्रित को पेंशन या किसी भी अन्य प्रकार की समस्या आ रही है तो वे तत्काल रुप से ब्लॉक पूर्व सैनिक प्रतिनिधि अथवा जन सैनिक कल्याण अधिकारी को इस बात की सूचना दें और उनकी समस्या को प्राथमिकता से हल करवाया जाएगा।