देहरादून: अंगदान.... एक ऐसा पुण्य का काम जिसके बराबर पुण्य शायद ही इस धरती पर हो। अपना जीवन देकर दूसरों को एक नया जीवन दान देना आखिरकार इससे बेहतर काम और दुनिया में क्या होगा। आज हम आपको एक ऐसी ही बहादुर बच्ची के बारे में बताने जा रहे हैं जो अपनी मौत के बाद भी समाज के लिए एक बड़ी मिसाल बनकर सामने आई है और दुनिया की सबसे कम उम्र की कैडेवर डोनर भी बन गई है। हम बात कर रहे हैं दिल्ली के रोहिणी की 20 महीने की बच्ची धनिष्ठा की। धनिष्ठा अब इस दुनिया में नहीं है। धनिष्ठा ने संसार को 11 फरवरी को अलविदा कह दिया है। मगर उसने जाते-जाते भी पांच लोगों को जीवनदान दे दिया। धनिष्ठा ने मरणोपरांत 5 मरीजों को अपना अंग देकर एक नया जीवनदान दिया है। धनिष्ठा का हृदय, उसका लीवर, दोनों किडनी और दोनों कॉर्निया दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल ने 5 रोगियों में प्रत्यारोपित की गई हैं।
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8 जनवरी वह दिन था जिस दिन धनिष्ठा अपने घर की पहली मंजिल पर खेलते हुए नीचे गिर कर बेहोश हो गई थी। इसके बाद उसके परिजनों ने तुरंत ही उसको अस्पताल में भर्ती कराया। डॉक्टरों ने धनिष्ठा की जान को बचाने का पूरा प्रयास किया मगर अथक प्रयास के बावजूद भी बच्ची को बचाया नहीं जा सका और 11 जनवरी को एक बुरी खबर सामने आई कि धनिष्ठा का ब्रेन डेड हो चुका है। धनिष्ठा के मस्तिष्क के अलावा सारे अंग अच्छे से काम कर रहे थे। अपनी 20 माह की मासूम बच्ची को अपने सामने मौत के मुंह में समाते हुए देखना उसके मां-बाप के लिए बेहद मुश्किल था। हम सब यह शायद सोच भी नहीं सकते कि आखिर धनिष्ठा के माता-पिता के ऊपर क्या बीती होगी उनको यह पता होगा कि उनकी डेढ़ वर्ष की मासूम बच्ची अब दोबारा उनके पास वापस नहीं आ पाएगी। वह वाकई बेहद कठिन समय था पर धनिष्ठा के माता-पिता ने अपनी बेटी की मौत को यूं जाया होने नहीं दिया और उन्होंने यह निर्णय लिया कि वह अपनी बच्ची का अंग दान करेंगे
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शोकाकुल होने के बावजूद भी बच्ची के माता-पिता आशीष कुमार एवं बबीता ने अस्पताल के अधिकारियों से अपनी बच्ची के अंगदान की इच्छा जाहिर की। इसके बाद धनिष्ठा का हृदय, उसका लिवर, दोनों किडनी और दोनों कॉर्निया सर गंगा राम अस्पताल के 5 रोगियों में डॉक्टरों ने प्रत्यारोपित कर दी। धनिष्ठा तो दुनिया से अलविदा कह गई मगर अब धनिष्ठा के कारण 5 लोग अपने जिंदगी की नई शुरुआत करने जा रहे हैं। आज धनिष्ठा दुनिया की सबसे कम उम्र की अंगदान करने वाली व्यक्ति बन गई है। धनिष्ठा ने मरणोपरांत 5 मरीजों को अपने अंग देकर उन को नया जीवनदान प्रदान किया है। अस्पताल के चेयरमैन डॉ डीएस राणा का कहना है कि धनिष्ठा के परिवार वालों का यह काम वास्तव में प्रशंसनीय है। उन्होंने बताया कि हर वर्ष अंगों की कमी के कारण भारत में औसतन 5 लाख लोगों की मृत्यु हो जाती है। वहीं धनिष्ठा के पिता आशीष कुमार का कहना है कि हमने अस्पताल में रहते हुए कई ऐसे मरीजों को देखा जिनको अंगों की सख्त जरूरत थी। उन्होंने कहा कि भले ही हमारी बच्ची अब हमारे पास नहीं है लेकिन अब उसके अंग दान करने से उसके अंग मरीजों में जिंदा रहेंगे और हमारी बच्ची के अंगों से मरीजों को नया जीवनदान मिलेगा।