उत्तराखंड चमोलीRainy village saved due to Bagotadhar mound

चमोली आपदा के बीच चमत्कार..बगोटधार टीले ने तबाह होने से बचा लिया पूरा गांव

ऋषिगंगा की बाढ़ से रैणी गांव भी पूरी तरह खतरे की जद में आ गया था, लेकिन गांव के ठीक सामने स्थित चट्टान ने सैलाब का रुख मोड़ दिया। इससे गांव तो बच गया लेकिन यहां के लोग अब तक सदमे में हैं। Chamoli Disaster: Rainy village saved due to Bagotadhar mound

Chamoli Disaster: Rainy village saved due to Bagotadhar mound
Image: Rainy village saved due to Bagotadhar mound (Source: Social Media)

चमोली: चमोली के रैणी गांव में आई आपदा का खौफनाक मंजर भुलाए नहीं भूलता। ऋषिगंगा नदी हमेशा शांत होकर बहती थी, लेकिन रविवार को इस नदी ने ऐसा रौद्र रूप दिखाया कि हर कोई सहम गया। ग्रामीण खौफजदा हैं। सिर्फ रैणी ही नहीं आस-पास के कई ग्रामीण सैलाब के डर से रात के वक्त भी अपने घरों में नहीं गए। डरे हुए लोगों ने जंगल में टैंट लगाकर रात गुजारी। रैणी के निवासी सैलाब के खौफ से अब तक नहीं उबर पाए हैं। इस गांव में 70 परिवार रहते हैं। ग्रामीणों ने रविवार को आई आपदा का मंजर बयां करते हुए आपबीती बताई। साथ ही एक चमत्कार की कहानी भी सुनाई। ग्रामीणों ने कहा कि रैणी गांव के ठीक सामने बगोटधार का टीला है। रविवार को जब आपदा आई तो टीले ने सैलाब का रुख दूसरी तरफ मोड़ दिया। अगर सैलाब का रुख न मुड़ता तो रैणी गांव का पूरी तरह नामोंनिशान मिट चुका होता। ऋषिगंगा नदी का रौद्र रूप देखकर डरे हुए ग्रामीणों ने रविवार की रात जंगल और गोशालाओं में गुजारी। रविवार को आई तबाही का हर रैणीवासी प्रत्यक्ष गवाह है। गांववाले अब तक सदमे में हैं। रविवार की रात ग्रामीणों ने जंगलों में टैंट लगाकर बिताई। यही नहीं सोमवार को भी वो दिन में अपने घर लौटे, लेकिन रात होने से पहले ही गांव छोड़ दिया और ऊंचाई वाली जगहों पर चले गए।

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लोगों ने गोशालाओं और जंगल में चट्टान की आड़ लेकर रात गुजारी। सुबह होने पर ही लोग गांव वापस लौटे। ग्रामीणों को ग्लेशियरों के बीच से फिर पानी का सैलाब आने की आशंका है। गांव के लोगों का कहना है कि ऋषिगंगा की बाढ़ से रैणी गांव भी पूरी तरह खतरे की जद में आ गया था, लेकिन गांव के ठीक सामने स्थित चट्टान ने सैलाब का रुख मोड़ दिया, जिससे गांव तो बच गया, लेकिन अभी भी सैलाब को देख सब सदमे में हैं। गांव में रहने वाले रविंद्र कहते हैं कि हम उस खौफनाक दृश्य को भुला नहीं पा रहे। बगोटधार टीला न होता तो आज हम जिंदा नहीं होते। गांव में रहने वाली बीना देवी बताती हैं कि जब ग्लेशियर टूटकर आया तो उसके साथ बड़े पत्थर भी आए। जिससे मकानों में दरारें आ गई हैं। गांव के ऊपर जंगल में हमने जानवरों के लिए छानी बनाई हुई हैं। आपदा के वक्त यही छानियां ग्रामीणों का आसरा बनीं।