उत्तराखंड चमोलीDelivery in the forest in Nizamula Valley

गढ़वाल का दुर्भाग्य..मीलों दूर था अस्पताल, जंगल के गदेरे में हुआ महिला का प्रसव

महिला को समय से उपचार न मिलने के कारण उसकी हालत बिगड़ गई और महिला को आसपास की स्थानीय महिलाओं द्वारा गांव के गदेरे में ही प्रसव करवाया गया।

Chamoli News: Delivery in the forest in Nizamula Valley
Image: Delivery in the forest in Nizamula Valley (Source: Social Media)

चमोली: उत्तराखंड के पहाड़ों में मूलभूत सुविधा का होना भी एक सपने जैसा है जो कि अधिकांश पहाड़ों पर पूरा नहीं होता है। चाहे वह रोड की खराब हालत हो या फिर अस्पतालों की लापरवाही और स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी होना हो, पहाड़ों पर जनजीवन इन सुविधाओं के ना मिलने से काफी बुरी तरह प्रभावित हो रहा है और सबसे दुख की बात यह है कि उनकी परेशानी को कोई भी जनप्रतिनिधि नेता या प्रशासन सुनने को तैयार नहीं है। हालत ऐसी है कि अगर किसी को गांव से अस्पताल जाना पड़ेगा तो पक्की सड़क ना होने के कारण और पालकी में बैठाकर अस्पताल ले जाना पड़ता है। अस्पताल भी इतने किलोमीटर दूर है कि वहां जाते-जाते मरीज के साथ अनहोनी हो जाती है। ऐसा ही कुछ चमोली जिले में देखने को मिला जहां पर निजमूला घाटी में बीते रविवार को एक गर्भवती महिला ने सड़क और स्वास्थ्य सुविधाओं जैसे मूलभूत जरूरत की कमी की कीमत चुकाई और समय पर ना उपचार मिलने के कारण महिला को आसपास की स्थानीय महिलाओं द्वारा गदेरे में ही प्रसव करवाया गया। जी हां, इससे अधिक शर्मनाक और क्या होगा। एक ओर भारत विश्व गुरु बनने की राह पर है और दूसरी ओर उत्तराखंड में अब भी पालकी के जरिए गर्भवती महिलाओं को उपचार के लिए दूर के अस्पताल में ले जाया जा रहा है। बता दें कि चमोली जिले के भनाली गांव से पालकी के सहारे अस्पताल ले जा रही महिला जंगल के रास्ते में ही प्रसव पीड़ा हो गई जिसके बाद 2 किलोमीटर दूर के गांव से महिलाओं को मौके पर बुलाया गया और गदेरे में ही महिला का प्रसव करवाया गया। आगे पढ़िए

ये भी पढ़ें:

यह भी पढ़ें - उत्तराखंड में लव जिहाद, 3 साल तक छुपाया अपना मजहब और नाम..करता रहा युवती से दुष्कर्म
जिसके बाद नवजात शिशु और गर्भवती महिला को अस्पताल पहुंचाया गया। चलिए आपको पूरी घटना से अवगत कराते हैं। दरअसल भनाली गांव के निवासी मुकेश राम की पत्नी 24 वर्षीय मीना हाल ही में जंगल में घास काटने गई थी। अचानक ही जंगल के बीच उसको प्रसव पीड़ा शुरू हो गई। जब प्रसूता की हालत बिगड़ी तो ग्रामीण उसको पालकी के सहारे चिकित्सालय की ओर ले जाने लगे लेकिन गांव से 2 किलोमीटर दूर मीना की हालत ज्यादा गंभीर हो गई और उसकी प्रसव पीड़ा बढ़ गई जिसके बाद गांव की महिलाओं ने गदेरे में ही उसका प्रसब करवा दिया। इसके बाद ग्रामीण महिला मीना और उसके शिशु को वापस गांव ले आए और उसके बाद में उनका अस्पताल पहुंचाया गया। निजमूला घाटी में जंगल के रास्ते 5 किलोमीटर पैदल सफर कर गांव तक पहुंचा जा सकता है और ग्रामीणों को 32 किलोमीटर दूर जिला मुख्यालय की ओर दौड़ लगानी पड़ती है क्योंकि क्षेत्र में कोई भी अस्पताल नहीं है। कच्ची सड़क के कारण पालकी के सहारे 32 किलोमीटर का लंबा सफर तय करना पड़ता है। इसके चलते गांव के मरीजों और खास कर कि गर्भवती महिलाओं को भारी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। पहाड़ों पर लापरवाही का यह खेल लंबे समय से चलता आ रहा है और न जाने आखिर कब तक यूं ही बेकसूर लोगों की जान के साथ खिलवाड़ किया जाएगा और कबतक पहाड़ पर रहने वाले लोगों को मूलभूत सुविधाओं से वंचित रखा जाएगा।