चमोली: कोविड काल में बच्चों की पढ़ाई बुरी तरह प्रभावित हुई। क्लासरूम की जगह मोबाइल, टैबलेट और लैपटॉप ने ले ली। जैसे-तैसे दो साल तक ऑनलाइन पढ़ाई की, लेकिन अब इसके साइड इफेक्ट भी दिखने लगे हैं। पिछले दिनों जब ऑफलाइन क्लासेज शुरू हुईं तो कई बच्चों के लिए ब्लैक बोर्ड पर नजरें टिकाना मुश्किल हो गया। उन्हें ब्लैक बोर्ड धुंधला दिखाई दे रहा है। परेशान परिजन अब अस्पतालों की दौड़ लगा रहे हैं। नेत्र रोग विशेषज्ञों के पास पहुंच रहे हैं। अकेले दून अस्पताल के नेत्र रोग विभाग में ही आठ से दस बच्चे रोजाना पहुंच रहे हैं। नेत्र रोग विशेषज्ञ इस समस्या को रिफ्रेक्टिव एरर की समस्या बता रहे हैं। दून अस्पताल में एक महीने में 35 बच्चों में मायोपिया यानी निकट दृष्टि दोष मिला है। इन बच्चों को दवा के साथ चश्मा लगाना पड़ा। डॉक्टरों ने बताया कि कोरोना काल में अधिकांश समय बच्चों को घर में कैद रहना पड़ा, इससे वह सूर्य की रोशनी में कम समय रहे। जिससे समस्या बढ़ गई।
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यहां आपको मायोपिया के बारे में भी बताते हैं। इसमें दूर की चीजें साफ नहीं दिखाई देतीं। मायोपिया में आंख की पुतली लंबी हो जाती है या कार्निया की वक्रता बढ़ती है। इससे जो रोशनी आंखों में प्रवेश करती है, वह फोकस नहीं होती। इसी तरह रिफ्रेक्टिव एरर में आंखें प्रकाश के लिए रेटिना के ऊपर फोकस नहीं कर पातीं। वे रेटिना के पहले या बाद में फोकस करने लगती हैं। नजदीक की चीजें साफ नहीं दिखाई देतीं। नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. सुशील ओझा के मुताबिक बच्चों में रिफ्रेक्टिव एरर की समस्या काफी देखी जा रही है। वो मायोपिया के शिकार भी हो रहे हैं। दो साल से बच्चे घरों में रहे और कई गतिविधियों में शामिल नहीं हो पाए। ऑनलाइन पढ़ाई से विजन एक दायरे में सीमित हुआ। जिससे समस्या बढ़ गई। रिफ्रेक्टिव एरर वाले बच्चों की केस हिस्ट्री तैयार की जा रही है।