हल्द्वानी: आज स्वतंत्रता दिवस है, आज़ादी का अमृत महोत्सव है, हम सब आज़ादी के 75 वर्ष पूरे कर चुके हैं, मगर यह आज़ादी हमें उन तमाम जवानों के खून से मिली है जिन्होंने हंसते-हंसते वतन के लिए जान कुर्बान कर दी।
Uttarakhand martyr Chandrashekhar Herbola
ऐसे ही सैनिक थे चंद्रशेखर हर्बोला। 1984 में वीरगति को प्राप्त हुए चंद्रशेखर का पार्थिव शरीर 38 वर्षों के बाद मिला है। जी हां, शहीद चंद्रशेखर हर्बोला की पत्नी शांति देवी ने अपने पति के पार्थिव शरीर का इंतजार 38 साल किया है। उन्हें इस बात पर पूर्ण विश्वास था कि वह अपने पति के पार्थिव शरीर के अंतिम दर्शन जरूर करेंगी। शांति देवी ने बताया कि जब उनके पति शहीद हुए तब उनकी उम्र सिर्फ 28 साल थी। कम उम्र में ही उन्होंने अपने जीवनसाथी को खो दिया और दोनों बेटियों को उन्होंने मां और पिता बनकर पाला। इस दौरान सेना की ओर से भी उन्हें पूरी मदद दी गई।जवान की शहादत के समय बड़ी बेटी की उम्र उस समय सिर्फ साढे़ चार साल और छोटी बेटी की उम्र सिर्फ डेढ़ साल थी। शांति देवी ने बताया कि जब जनवरी 1984 में वह अंतिम बार घर आए थे तब वे वादा करके गए थे कि इस बार जल्दी लौट आऊंगा। मगर उनकी शहादत की खबर ने जैसे पूरे परिवार को ही तहस-नहस कर दिया।
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19 कुमाऊं रेजीमेंट के लांसनायक चंद्रशेखर हर्बोला की पार्थिव देह को सियाचिन में बर्फ में दबे रहने की वजह से नुकसान नहीं हुआ है। शहीद चंद्रशेखर का जब शव मिला तो उनकी पहचान के लिए उनके हाथ में बंधे ब्रेसलेट का सहारा लिया गया। इसमें उनका बैच नंबर और अन्य जरूरी जानकारी दर्ज थीं। बैच नंबर से सैनिक के बारे में पूरी जानकारी मिल जाती है। इसके बाद उनके परिजनों को सूचना दी गई।दरअसल भारत-पाकिस्तान की झड़प के दौरान मई 1984 में सियाचिन में पेट्रोलिंग के लिए 20 सैनिकों की टुकड़ी भेजी गई थी। इसमें लांसनायक चंद्रशेखर हर्बोला भी शामिल थे। सभी सैनिक सियाचिन में ग्लेशियर टूटने की वजह से इसकी चपेट में आ गए थे। जिसके बाद किसी भी सैनिक के बचने की उम्मीद नहीं थी। भारत सरकार और सेना की ओर से सैनिकों को ढूंढने के लिए सर्च ऑपरेशन चलाया गया। इसमें 15 सैनिकों के शव मिल गए थे लेकिन पांच सैनिकों का पता नहीं चल सका था। इसमें चंद्रशेखर हर्बोला भी शामिल थे। शांति देवी ने बताया कि 38 साल तक हर रोज उन्होंने हृदय पर पत्थर रख कर यह समझाया है कि उनके पति के अंतिम दर्शन जरूर करने को मिलेंगे। मजबूत इच्छाशक्ति और अटूट विश्वास के आगे ईश्वर को भी झुकना पड़ा और आखिरकार 38 वर्षों के बाद Uttarakhand martyr Chandrashekhar Herbola का शव प्राप्त हुआ है।