उत्तराखंड उत्तरकाशीLosar Festival started in uttarkashi

उत्तरकाशी के इस गांव में दिवाली के साथ शुरू हुआ लोसर पर्व, आखिरी दिन होली खेली जाएगी

उत्तरकाशी में इन दिनों एक ऐसा त्योहार मनाया जा रहा है, जिसमें दिवाली और होली के दर्शन एक साथ होते हैं। पढ़िए हमारी खास रिपोर्ट

Uttarkashi Losar Festival: Losar Festival started in uttarkashi
Image: Losar Festival started in uttarkashi (Source: Social Media)

उत्तरकाशी: उत्तराखंड विविध संस्कृतियों वाला प्रदेश है। यहां की मान्यताएं और त्योहार इस क्षेत्र को विशेष बनाते हैं।

Uttarkashi Losar Festival

उत्तरकाशी में इन दिनों एक ऐसा ही त्योहार मनाया जा रहा है, जिसमें दिवाली और होली के दर्शन एक साथ होते हैं। जिले में जाड़ समुदाय के चार दिवसीय लोसर पर्व का आगाज हो गया है। जाड़ समुदाय के ग्रामीण चार दिन एक साथ चार त्योहार मनाते हैं। जिसमें पहले दिन दीपावली और अंतिम दिन आटे की होली के साथ लोसर पर्व का समापन होता है। जनपद में भारत-चीन सीमा पर स्थित नेलांग एवं जाढ़ूंग गांव से विस्थापित होकर हर्षिल, बगोरी एवं डुंडा में बसे जाड़ भोटिया समुदाय के लोग पर्व को विशेष उत्साह एवं हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं। लोसर के पहले दिन चीड़ के छिलकों से बनी मशालें जलाकर दीपावली मनाई गई। सर्दियों में जाड़ समुदाय के ग्रामीण बगोरी गांव से वीरपुर डुंडा आ जाते हैं। शुक्रवार की रात सभी डुंडा बाजार में एकत्रित हुए।

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जहां ग्रामीणों ने मशाल जलाकर अपने आराध्य देवता की पूजा के साथ ढोल दमाऊ की थाप पर स्थानीय वेशभूषा में लोक नृत्य किया। बगोरी के पूर्व प्रधान भवान सिंह राणा ने बताया कि इस लोसर पर्व में हिन्दू और बौद्ध धर्म का मिश्रण देखने को मिलता है, जहां पहले दीपावली होती है, वहीं दूसरे दिन बौद्ध पंचांग के अनुसार नववर्ष का शुभारंभ होता है। इस मौके पर जाड़ समुदाय से जुड़े हिन्दू समुदाय के लोग अपने घरों और पूजा स्थलों में श्रीराम जी के झंडे लगाते हैं। वहीं खंपा जाति के लोग बौद्ध मंदिरों में बुद्ध के श्लोकों से लिखे झंडे लगाते हैं। तीसरे दिन जाड़ समुदाय की आराध्य देवी रिंगाली देवी के मंदिर में हरियाली काटकर दशहरा मनाया जाता है। इस अवसर पर जाड़ समुदाय की महिलाएं अपनी स्थानीय वेशभूषा में लोकनृत्य करती हैं। लोसर पर्व के अंतिम दिन आटे की होली खेली जाती है। जाड़ समुदाय के लोग लोसर पर्व के साथ नए साल का स्वागत करते हैं। उनके पंचांग के अनुसार हर साल फाल्गुन शुक्ल प्रतिपदा से नए साल का शुभारंभ होता है।