पौड़ी गढ़वाल: गढ़वाल के द्वार कहे जाने वाले कोटद्वार को जल्द ही नया नाम मिलने वाला है। कोटद्वार का नाम कण्वनगरी रखा जाएगा। ये ऐलान सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कोटद्वार में हुए कार्यक्रम में किया। वैदिक आश्रम गुरुकुल महाविद्यालय में विश्व के पहले मुस्लिम योग शिविर के उद्घाटन के मौके पर सीएम ने कई बड़े ऐलान किए। उन्होंने कहा कि कण्वाश्रम चक्रवर्ती सम्राट भरत की जन्मस्थली है, जिसे केंद्र सरकार ने देश के 32 आइकॉनिक स्थलों में शामिल किया है। इससे यहां पर्यटन संबंधी गतिविधियां बढ़ेगी, जिससे लोगों को रोजगार मिलेगा। मुख्यमंत्री ने कहा कि जल्द ही कोटद्वार का नाम बदला जाएगा। कोटद्वार को कण्वनगरी के नाम से जाना जाएगा। इसी तरह कलालघाटी का नाम बदलकर कण्वघाटी किया जाएगा। इसके लिए नगर निगम की तरफ से शासन को प्रस्ताव भेजा गया है।वैदिक आश्रम गुरुकुल महाविद्यालय कण्वाश्रम के स्वर्ण जयंती समारोह के मौके पर सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत ने चक्रवर्ती सम्राट भरत और महर्षि कण्व की मूर्ति का लोकार्पण भी किया। इस मौके पर स्थानीय लोगों ने सीएम को ज्ञापन देकर कण्वाश्रम को राष्ट्रीय स्मारक घोषित करने की मांग की। साथ ही यहां की सड़कों की मरम्मत कराने और कण्वाश्रम के 5 किलोमीटर क्षेत्र में मांस-शराब पर रोक लगाने की भी मांग की। कुल मिलाकर अब उत्तराखंड भी उत्तर प्रदेश की राह पर चल पड़ा है। जिस तरह उत्तर प्रदेश में शहरों के नाम बदले जा रहे हैं, उसी तरह अब उत्तराखंड के कोटद्वार को भी नया नाम मिलेगा। जल्द ही कोटद्वार को कण्वनगरी कोटद्वार के नाम से जाना जाएगा। आगे जानिए कोटद्वार का इतिहास
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कोटद्वार भाबर क्षेत्र की प्रमुख एतिहासिक धरोहरों में कण्वाश्रम सर्वप्रमुख है जिसका पुराणों में विस्तृत उल्लेख मिलता है। हजारों वर्ष पूर्व पौराणिक युग में जिस मालिनी नदी का उल्लेख मिलता है वह आज भी उसी नाम से पुकारी जाती है। तथा भाबर के बहुत बड़े क्षेत्र को सिंचित कर रही है। कण्वाश्रम शिवालिक की तलहटी में मालिनी के दोनों तटों पर स्थित छोटे-छोटे आश्रमों का प्रख्यात विद्यापीठ था। यहां मात्र उच्च शिक्षा प्राप्त करने की सुविधा थी इसमें वे शिक्षार्थी प्रविष्ट हो सकते थे जो सामान्य विद्यापीठ का पाठ्यक्रम पूर्ण कर और अधिक अध्ययन करना चाहते थे। कण्वाश्रम चारों वेदों, व्याकरण, छन्द, निरुक्त, ज्योतिष, आयुर्वेद, शिक्षा तथा कर्मकाण्ड इन ६ वेदांगों के अध्ययन-अध्यापन का प्रबन्ध था। आश्रमवर्ती योगी एकान्त स्थानों में कुटी बनाकर या गुफाओं के अन्दर रहते थे। यह कण्वाश्रम कण्व ऋषि का वही आश्रम है जहां हस्तिनापुर के राजा दुष्यन्त तथा शकुन्तला के प्रणय के पश्चात "भरत" का जन्म हुआ था, कालान्तर में इसी नारी शकुन्तला पुत्र भरत के नाम पर हमारे देश का नाम भारत पड़ा। शकुन्तला ऋषि विश्वामित्र व अप्सरा मेनका की पुत्री थी