उत्तराखंड टिहरी गढ़वालBirwan singh made agriculture the basis of progress at tehri

पहाड़ के बिरवान रावत..शहर की नौकरी छोड़ गांव लौटे, अब बड़े शहरों में है इनके फलों की डिमांड

बिरवान सिंह ने खेती के लिए सरकारी नौकरी तक छोड़ दी, आज वो फल-फूल की खेती कर लाखों कमा रहे हैं...

Agriculture: Birwan singh made agriculture the basis of progress at tehri
Image: Birwan singh made agriculture the basis of progress at tehri (Source: Social Media)

टिहरी गढ़वाल: जिन लोगों को खेती-किसानी घाटे का सौदा लगती है, समय की बर्बादी लगती है, उन्हें पहाड़ के किसान बिरवान सिंह रावत से सीख लेने की जरूरत है। टिहरी के रहने वाले इस किसान ने अपनी मेहनत से ऐसा शानदार बगीचा तैयार किया है, जिसकी सराहना विदेश के वैज्ञानिक तक कर चुके हैं। बिरवान सिंह फूलों और फलों की खेती करते हैं, जिससे उन्हें खूब मुनाफा हो रहा है। बिरवान ना सिर्फ खेती को बचाने के प्रयास में जुटे हैं, बल्कि क्षेत्र के युवाओं को रोजगार भी दे रहे हैं। टिहरी जिले के जौनपुर ब्लॉक में एक गांव है बसाण, 52 साल के बिरवान सिंह इसी गांव में रहते हैं। वो रक्षा मंत्रालय के उपक्रम में उपप्रबंधक थे। इसी दौरान उन्होंने देखा कि गांव के युवा नौकरी के लिए गांव छोड़ शहरो में भटक रहे हैं। इस बात ने बिरवान को इतना आहत किया कि वो नौकरी से त्यागपत्र देकर गांव लौट आए। यहां खेती करने लगे। 17 साल की मेहनत के बाद उन्होंने जो बगीचा तैयार किया आज उसकी पूरे क्षेत्र में मिसाल दी जाती है।

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वो उत्तराखंड के ऐसे अकेले काश्तकार हैं जो कि फलों की पैदावार बढ़ाने के लिए पौधों के क्लोन तैयार करवा रहे हैं। बसाण गांव के लोग पहले धान की खेती करते थे, पर आज दूसरे ग्रामीण भी क्षेत्र में बागवानी करने लगे हैं। बिरवान सिंह अपने खेतों में सेब, कीवी और नाशपाती का उत्पादन करते हैं। जिन्हें देहरादून, दिल्ली, मुंबई और अहमदाबाद सप्लाई किया जाता है। इस सीजन में वो दो लाख के सेब और कीवी बेच चुके हैं। साथ में फूलों की खेती भी कर रहे हैं। कुछ दिन पहले अमेरिका के वैज्ञानिकों की टीम ने भी बिरवान के आधुनिक उद्यान का दौरा किया था। जहां वो क्लोन से तैयार पेड़ों से खूब उत्पादन कर रहे हैं। बिरवान ने क्षेत्र के कई लोगों को रोजगार से जोड़ा है। सीजन में वो लगभग 15 लोगों को रोजगार देते हैं, जबकि 5 लोग नियमित रोजगार पा रहे हैं। बिरवान सिंह की बेटी शिवाली देहरादून से बीएएमएस कर रही है, जबकि बेटा हिमांशु दिल्ली में पर्यावरण विज्ञान में एमएससी कर रहा है। छुट्टियों में दोनों गांव आते हैं और खेती में पिता की मदद करते हैं। बिरवान सिंह रावत की देखादेखी अब गांव के दूसरे लोग भी फल-फूल के उत्पादन के लिए आगे आ रहे हैं। जो खेत कल तक बंजर हुआ करते थे, आज वहां बगीचे नजर आते हैं। गांव में आये इस सुखद बदलाव का श्रेय काफी हद तक बिरवान सिंह रावत को जाता है, जिनकी कोशिश ने ना सिर्फ उनकी, बल्कि गांव के दूसरे लोगों की भी जिंदगी बदल दी।