टिहरी गढ़वाल: उत्तराखंड की धरती मैं न जाने कितने वीर सपूतों ने जन्म लिया है। इन वीरों की वीरता के किस्से लिखने शुरू करेंगे तो किताबें ही काम पद जायें। एक बार फिर से टिहरी गढ़वाल के डागर गाँव के गोपाल सिंह पुंडीर (Gopal singh pundir sena medal) ने देवभूमि उत्तराखंड का मान बढ़ाया है। इस जांबाज़ के शौर्य की कहानी पढ़कर आपको भी गर्व होगा। इसी अद्भुद शौर्य और पराक्रम के लिए इस सपूत को सेना मेडल से नवाज़ा गया है। डागर गांव के रहने वाले लांसनायक गोपाल सिंह को अदम्य शौर्य और साहस के लिए सेना मेडल मिला है। बात साल 2018 की है। जम्मू कश्मीर की एक बड़ी बिल्डिंग मैं कुछ आतंकी घुस गए थे। सेना को तुरंत ही इस बात की भनक लग गयी थी इसलिए जवानों की एक टीम को आतंकियों से निपटने के लिए भेजा गया। लांसनायक गोपाल सिंह पुंडीर भी इसी टीम मैं थे। अचानक आतंकियों को सेना के आने की खबर मिली तो आतंकियों ने ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू कर दी। इस दौरान लांसनायक गोपाल सिंह पुंडीर की हथेली पर गोली लगी। गोपाल सिंह डिगे नहीं। आगे पढ़िए
ये भी पढ़ें:
यह भी पढ़ें - टिहरी झील पर एशिया का सबसे लंबा सस्पेंशन ब्रिज, मार्च से शुरू होगी आवाजाही..जानिए खूबियां
गोली लगने के बावजूद लांसनायक गोपाल सिंह पुंडीर (Gopal singh pundir sena medal) आतंकियों को अपना निशाना बनाते रहे। मौके पर ही उन्होंने एक आतंकी को ढेर किया। शरीर पर छोटी सी चोट लग जाये तो घबराहट होने लगती है लेकिन शरीर पर गोली लगने के बाद भी गोपाल सिंह पुंडीर का हौसला हिमालय की तरह अडिग था। वो तब तक रहे जब तक सेना का opration सफल नहीं हो गया। लांसनायक गोपाल सिंह के इस शौर्य को देखते हुए उन्हें सेना मेडल से नवाजा गया है। इस उपलब्धि के बाद लांसनायक गोपाल के घर में खुशी का माहौल है। उनके घर पर बधाई देने वालों का तांता लगा हुआ है। आपको बता डैन की भारतीय सेना के आग्रह पर वीर जांबाज़ों को भारत सरकार द्वारा सेना मेडल दिया जाता है। ये सम्मान ऐसे सैनिकों को दिया जाता है जो असाधारण परिस्थितियों में भी साहस का परिचय देते हैं। इस सम्मान को 17 जून 1960 में भारत के राष्ट्रपति द्वारा स्थापित किया गया था। लांसनायक गोपाल सिंह पुंडीर के सहस को राज्य समीक्षा का सलाम।