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देहरादून के परेड ग्राउंड में आमने-सामने हो जाएं उमेश कुमार, तब होगी सरोकारों की बात

एक बार आमने सामने हो जाओ ना वरिष्ठ पत्रकार उमेश जी..देहरादून का परेड ग्राउंड खाली है। आपको उत्तराखंड का वास्ता...पहाड़ियत और पहाड़ का वास्ता

Umesh Kumar: Blog on umesh kumar
Image: Blog on umesh kumar (Source: Social Media)

देहरादून: बहुत सीधा और स्पष्ट सवाल..जब उमेश कुमार एक न्यूज चैनल का जिम्मा अपने कंधों पर उठा रहे थे, तो क्या उन्होंने सरकारी खजाने का इस्तेमाल नहीं किया? क्या उन्होंने सरकार से किसी भी तरह का कोई विज्ञापन नहीं लिया? अगर उमेश कुमार सबूतों के साथ फेसबुक पर लाइव आकर कह दें कि- ‘मेरे प्यारे उत्तराखंडवासियों उमेश कुमार ने आज तक किसी भी सरकार से एक भी पैसे का विज्ञापन नहीं लिया’। तो इसके बाद हम यानी राज्य समीक्षा कभी भी उमेश कुमार के खिलाफ नहीं लिखेंगे। ये वादा हम ताल ठोंक कर उमेश कुमार से करते हैं। अगर हिम्मत है तो उमेश कुमार उत्तराखंड की जनता से ये कहने का कलेजा रखें।
इसका जवाब है….हां। डंके की चोट पर हां और वो भी करोड़ों में। हर जगह से करोड़ों में कमाई हुई है। सवाल ये है कि क्या उमेश कुमार कुमार का चैनल पेड मीडिया नहीं था?
अब बात को आगे बढ़ाते हैं। जब उत्तराखंड में हरीश रावत सरकार थी और यूपी में अखिलेश सरकार...क्या उस वक्त उमेश कुमार स्वतंत्र पत्रकारिता कर रहे थे? इंडिपेंडेंट जर्नलिज़्म के अगर मूल तत्व का इन महापुरुष को इतना ज्ञान था, तो क्यों उस वक्त सरकार के करोड़ों रुपये इन पर न्योछावर हो जाते थे ?

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ध्यान रखिएगा- एक स्टिंग हुआ था पूर्व सीएम हरीश रावत का, जिसमें उमेश कुमार फोन पर कह रहे हैं कि ‘कैप्टेन...उमेश कुमार बोल रहा हूं, प्लेन लगवा दीजिए।’
अब सवाल ये है कि भई आखिर इतने कम वक्त में एक पत्रकार के पास इतनी अकूत धनराशि कहां से आ गई थी? हमने तो आज तक ऐसे किसी भी पत्रकार का नाम नहीं सुना (माफ कीजिए...वरिष्ठ पत्रकार एंव समाजसेवी)
आजकल सोशल मीडिया पर माहौल बदल सा गया है। महोदय का एक ही काम है..इस मीडिया को गरियाना, उस मीडिया को गरियाना...उस पत्रकार को गरियाना, उस पत्रकार को गरियाना। किसी को पत्तलकार कह देना, किसी को चाटुकार कह देना, किसी को चरणभाट्ट कह देना।
मतलब कभी कभी ऐसा लगता है कि उमेश कुमार सर्टिफिकेट बांट रहे हैं। ये पत्रकार सही है, इसे सपोर्ट करो...वो पत्रकार गलत है, उसे गाली दो।
जब जनता की आवाज उठाने का ठेका, उत्तराखंड की लाज बचाने का ठेका, उत्तराखंड को भ्रष्ट राजनेताओं से मुक्ति दिलाने का ठेका..ये सारे ठेके उमेश कुमार के कंधों पर हैं तो भई उस वक्त क्या उत्तराखंड में रामराज्य था, जब विजय बहुगुणा या एनडी तिवारी या बीसी खंडूरी की सरकार थी? तब ये पत्रकार हृदय द्रवित क्यों नहीं हुआ? विजय बहुगुणा के दौर में राकेश शर्मा से मान्यवर की दोस्ती..कौन नहीं जानता साहेब? तब इस पत्रकार का मन लोगों की पीड़ा देखकर विचलित क्यों नहीं हुआ? तब क्या सरोकारों की पत्रकारिता को तिलांजलि दे दी थी?

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चलिए ये भी छोड़िए..हमारा एक सवाल है उमेश जी से...जब आप समाचार प्लस के हुजूर-ए-आला थे तो सुना है कि रनडाउन पर फोन जाते थे- अरे? ये वसुंधरा राजे के खिलाफ खबर क्यों चला दी? अरे ये अखिलेश यादव के खिलाफ खबर किससे पूछ कर चलाई? सुनो कल सुबह अमिताभ अग्निहोत्री के बिग बुलेटिन का रिपीट टेलिकास्ट किसी भी हाल में नहीं चलना चाहिए। कौन करवाता था ये सब?
एक और सवाल…. आपके ही राजस्थान के चैनल से एक एक महीने की सैलरी देकर लोग निकाले गए। तब कहां था आपका पत्रकार हृदय? एक झटके में सारे कर्मचारी एक दूसरे की आखों में देखने लगे थे। तब क्या उमेश कुमार ने उन कर्मचारियों की आंखों में आंखें डालकर और दिल से दिल मिलाकर कहा कि हां मैं तुम्हारे साथ हूं? तब उमेश कुमार ने कितने लोगों की नौकरी लगवाई दूसरे मीडिया संस्थानों में?
लोग कभी नहीं समझेंगे, लेकिन जब समझेंगे तो देर हो चुकी होगी। ‘पिक एंड चूज’...ये एक ऐसी पॉलिसी है, जिसे समझना बहुत मुश्किल हैं...लेकिन जो समझा, वो ही गेम प्लानर बना। उमेश भी ऐसे ही खिलाड़ियों में से एक हैं।
क्या उत्तराखंड में सरोकारों की पत्रकारिता करने वाले लोग नहीं हैं? क्या इन्द्रेश मैखुरी, राहुल कोटियाल, प्रदीप सती, योगेश भट्ट, गुणानंद जखमोला जैसे प्रबुद्ध पत्रकार नहीं हैं यहां? ये वो लोग हैं, जिनकी एक आवाज से सत्ता की चौखट थरथराने लगती है। तो फिर क्या जरूरत आन पड़ी इन महाराज की? या फिर ये जबर खुद को वरिष्ठ पत्रकारों की लिस्ट में घुसेड़ रहे हैं?
एक बार आमने सामने हो जाओ ना वरिष्ठ पत्रकार उमेश जी..देहरादून का परेड ग्राउंड खाली है। आपको उत्तराखंड का वास्ता...पहाड़ियत और पहाड़ का वास्ता