उत्तराखंड ऐतिहासिक धरोहरों का खजाना है। आध्यात्म के साथ-साथ इतिहास में रुचि रखने वाले लोगों के यहां बहुत कुछ है। इतिहास का ऐसा ही एक खजाना चमोली जिले के दुर्मीताल में मिला है, जिसे देख लोग हैरान हैं। यहां दुर्मीताल में खुदाई के दौरान करीब 50 साल पुरानी नाव मिली है। कुछ लोग इसे ब्रिटिश काल की नाव भी कह रहे हैं। बताया जा रहा है कि जिस क्षेत्र में नाव मिली है, वो जगह ब्रिटिश काल में नौकायन के लिए मशहूर थी। स्थानीय ग्रामीण प्रशासन से दुर्मीताल के पुनर्निर्माण की मांग कर रहे हैं। यहां नाव मिलने की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है। दुर्मीताल चमोली जिले की निजमूला घाटी में स्थित है। बताया जाता है कि अंग्रेजी शासनकाल के दौरान निजमूला घाटी के तकरीबन पांच किमी क्षेत्र में दुर्मीताल फैला हुआ था। ब्रिटिश हुकूमत के दौरान इस जगह की शान देखने लायक होती थी। बताया जाता है कि उस दौरान यहां अंग्रेज अफसर नौकायन का लुत्फ उठाने आते थे। आजादी के बाद भी ये ताल घाटी के एक दर्जन से ज्यादा गांवों के लिए रोजगार का प्रमुख जरिया बना रहा। यहां बड़ी तादाद में पर्यटक आते थे, लेकिन साल 1971 में आई आपदा में दुर्मीताल बाढ़ की भेंट चढ़ गया। उस दौरान यहां रखीं ज्यादातर नावें बाढ़ की भेंट चढ़ गईं, कुछ मलबे में दब गई थीं। जिससे घाटी की ग्रामीणों का रोजगार छिन गया। आगे पढ़िए
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50 साल पुरानी नाव
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काम की तलाश में ग्रामीण पलायन करने लगे। पलायन रोकने के लिए यहां के ग्रामीण लंबे अर्से से दुर्मीताल के पुनर्निर्माण की मांग कर रहे थे, लेकिन ना तो सरकार ने इस तरफ ध्यान दिया और ना ही संबंधित विभागों ने। सरकारी स्तर पर कोई सुनवाई नहीं हुई तो ग्रामीणों ने खुद ही दुर्मीताल की हालत सुधारने का बीड़ा उठा लिया। स्वतंत्रता दिवस के मौके पर घाटी के एक दर्जन से ज्यादा गांवों के लोग दुर्मीताल में इकट्ठे हुए और ताल के पुनर्निर्माण का संकल्प लिया।
दुर्मीताल को संवारने की अपील
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दुर्मीताल में जोर-शोर से खुदाई शुरू हुई। खास बात ये रही कि पहले ही दिन खुदाई में यहां मलबे से ब्रिटिश काल की नाव निकल आई। जैसे ही ये खबर क्षेत्र में फैली नाव देखने के लिए लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी। ईराणी गांव के प्रधान मोहन सिंह नेगी बताते हैं कि दुर्मीताल में अंग्रेजों की कई नावें थीं, जिन्हें रखने के लिए यहां एक किश्ती घर भी बनाया गया था। लेकिन 1971 में आई बाढ़ में किश्ती घर बह गया। यहां रखीं ज्यादातर नावें बाढ़ की भेंट चढ़ गईं, कुछ मलबे में दब गई थीं। अब दुर्मीताल को दोबारा सजाने-संवारने के लिए स्थानीय ग्रामीण खुद आगे आए हैं। यहां ईरानी, पाणा, झींझी, पगना, दुर्मी, गौना, निजमूला, थोलि और ब्यारा समेत कई गांवों के ग्रामीण दुर्मीताल को संवारने में जुटे हैं, ताकि दुर्मीताल को उसका खोया हुआ रुतबा वापस मिल सके।