उत्तराखंड चमोलीStory of Veer Chandra Singh Garhwali

वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली..पेशावर विद्रोह के महानायक को नमन, पढ़िए उनकी शौर्यगाथा

वीर चंद्र सिंह गढ़वाली साहस की प्रतिमूर्ति थे। देश की आजादी में उनका अविस्मरणीय योगदान रहा है।

Veer Chandra Singh Garhwali: Story of Veer Chandra Singh Garhwali
Image: Story of Veer Chandra Singh Garhwali (Source: Social Media)

चमोली: पेशावर विद्रोह के महानायक वीर चंद्र सिंह गढ़वाली की पुण्यतिथि की पूर्व संध्या पर उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि दी गई। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने 23 अप्रैल 1930 को अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ विद्रोह करने वाले नायक वीर चंद्र सिंह गढ़वाली को याद किया। वीर चंद्र सिंह गढ़वाली की पुण्यतिथि की पूर्व संध्या पर जारी संदेश में मुख्यमंत्री ने कहा कि वीर चंद्र सिंह गढ़वाली साहस की प्रतिमूर्ति थे। अपने मजबूत इरादों की वजह से वो किसी के आगे नहीं झुके। देश की आजादी में उनका अविस्मरणीय योगदान रहा है। मुख्यमंत्री ने कहा कि वीर चंद्र सिंह गढ़वाली ने निहत्थे स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों पर गोली चलाने से इंकार कर एक नई क्रांति का सूत्रपात किया था। देश को अंग्रेजों से आजाद कराने और क्रांतिकारी व्यक्तित्व के लिए वीर नायक चंद्र सिंह गढ़वाली को हमेशा याद किया जाएगा। इस मौके पर मुख्यमंत्री ने वीर चंद्र सिंह गढ़वाली स्वरोजगार योजना समेत दूसरी योजनाओं के बारे में भी जानकारी दी। मुख्यमंत्री ने कहा कि उत्तराखंड के समग्र विकास के लिए राज्य सरकार निरंतर प्रयासरत है। उत्तराखंड के केंद्र बिंदु गैरसैंण के विकास के लिए कई योजनाएं चल रही हैं। राज्य सरकार ने गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाया। साथ ही यहां पर्यटन और साहसिक पर्यटन की संभावनाएं तलाशी जा रही हैं। युवाओं को स्वरोजगार से जोड़ने के लिए वीर चंद्र सिंह गढ़वाली स्वरोजगार योजना शुरू की गई। जिसके तहत युवाओं को 50 फीसदी अनुदान देने की व्यवस्था की गई है। मुख्यमंत्री ने कहा कि हमें स्वतंत्रता संग्राम के इस वीर अमर सेनानी पर गर्व है

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पेशावर विद्रोह के महानायक वीर चंद्र सिंह भंडारी की शौर्यगाथा रोमांचित करने वाली है। 23 अप्रैल 1930 को हवलदार मेजर चंद्र सिंह भंडारी के नेतृत्व में पेशावर गई गढ़वाली बटालियन को अंग्रेज अफसरों ने खान अब्दुल गफ्फार खान के नेतृत्व में भारत की आजादी के लिए लड़ रहे निहत्थे पठानों पर गोली चलाने का हुक्म दिया, लेकिन चंद्र सिंह ने इसे मानने से इनकार कर दिया। उन्होंने कहा हम निहत्थों पर गोली नहीं चलाते। गढ़वाली बटालियन के इस विद्रोह को इतिहास में पेशावर विद्रोह के नाम से जाना गया। बगावत करने के जुर्म में चंद्र सिंह गढ़वाली और उनके 61 साथियों को कठोर कारावास की सजा दी गई। उनका असली नाम चंद्र सिंह भंडारी था। बाद में महात्मा गांधी ने उन्हें ‘गढ़वाली’ उपाधि दी। 1 अक्टूबर 1979 को गढ़वाली इस दुनिया को अलविदा कह गए। राज्य सरकार की तरफ से इस महान स्वतंत्रता सेनानी की याद में कई योजनाएं चलाई जा रही हैं।