उत्तराखंड रुद्रप्रयागKalimath Temple Rudraprayag

नवरात्र स्पेशल: देवभूमि का जागृत सिद्धपीठ, जहां मां काली देती हैं साधकों को शक्ति का वरदान

कालीमठ सिद्धपीठ को मां कामाख्या और मां ज्वालामुखी के सामान अत्यंत उच्च कोटि का माना जाता है। यहां कालीशिला पर आज भी मां काली के पैरों के निशान देखे जा सकते हैं।

Rudraprayag News: Kalimath Temple Rudraprayag
Image: Kalimath Temple Rudraprayag (Source: Social Media)

रुद्रप्रयाग: शारदीय नवरात्रि की शुरुआत हो चुकी है। नौ दिनों तक चलने वाली इस पूजा में मां दुर्गा के नौ अलग-अलग रूपों की पूजा की जाती है। नवरात्र के मौके पर राज्य समीक्षा आपके लिए सिद्धपीठों के दर्शन करने का सुअवसर लेकर आया है। आज हम आपको उत्तराखंड के उस सिद्धपीठ के बारे में बताएंगे। जहां असुरों का संहार करने के लिए मां काली 12 साल की बालिका के रूप में प्रकट हुई थीं। धनात्मक दृष्टिकोण से इस सिद्धपीठ को मां कामाख्या और मां ज्वालामुखी के सामान अत्यंत उच्च कोटि का माना जाता है। इस सिद्धपीठ का नाम है कालीमठ। रुद्रप्रयाग में स्थित सिद्धपीठ कालीमठ मंदिर पर अटूट आस्था के चलते हर साल बड़ी संख्या में भक्त कालीमठ पहुंचते हैं। कालीमठ घाटी में स्थित यह मंदिर समुद्र तल से 1463 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। साधना की दृष्टि से इस मंदिर का विशेष महत्व है। आगे पढ़िए

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यही वजह है कि नवरात्र के अलावा भी यहां सालभर श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है। स्कन्द पुराण के केदारखंड के 62वें अध्याय में मां काली के मंदिर का वर्णन है। कालीमठ मंदिर से 8 किलो मीटर की खड़ी ऊंचाई पर एक दिव्य शिला है, जिसे कालीशिला के नाम से जाना जाता है। कहते हैं कि दैत्य शुंभ-निशुंभ और रक्तबीज का वध करने के लिए मां काली ने यहीं पर 12 साल की बालिका का रूप लिया था। कालीशिला में मां काली के पैरों के निशान आज भी मौजूद हैं। इस शक्तिपीठ की प्रमुख विशेषता यह है कि यहां कोई मूर्ति नहीं है। मंदिर के अंदर एक कुंड की पूजा की जाती है। यह कुंड रजतपट श्री यंत्र से ढका रहता है। पूरे साल में सिर्फ एक बार इस कुंड को खोला जाता है। शारदीय नवरात्रि में अष्ट नवमी के दिन इस कुंड को खोला जाता है और देवी को बाहर लाकर मध्य रात्रि में पूजा की जाती है।

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कालीमठ में मां काली की पूजा का विशेष विधान है। अष्टमी की मध्य रात्रि में पूजा के दौरान यहां सिर्फ मंदिर के पुजारी ही मौजूद रहते हैं। इस स्थान में मां काली अपनी बहन महालक्ष्मी और महासरस्वती के साथ विराजमान हैं। यहां श्री महाकाली, श्री महालक्ष्मी और श्री महासरस्वती के तीन सुंदर और भव्य मंदिर है। तीनों देवियों की पूजा उसी विधान से होती है, जैसा दुर्गासप्तशती के वैकृति रहस्य में बताया गया है। कालीशिला में देवी-देवता के 64 यंत्र हैं। कहते हैं इन्हीं यंत्रों से मां दुर्गा को दैत्यों का संहार करने की शक्ति मिली थी। यह मंदिर भारत के प्रमुख सिद्ध और शक्तिपीठों में एक है। अटूट आस्था के चलते देशभर के साधक यहां साधना के लिए पहुंचते हैं।