उत्तराखंड रुद्रप्रयागGuptkashi nidhi death case

पहाड़ में एक बेटी चढ़ी अव्यवस्थाओं की भेंट..तड़प तड़प कर हुई मौत

डिलीवरी के 2 घंटे बाद तक बहता रहा खून, रुद्रप्रयाग के जिला अस्पताल में संसाधनों की कमी निधि को अपनी जान देकर चुकानी पड़ी। आखिर कबतक पहाड़ की बेकसूर महिलाएं यूं ही प्रशासन की लापरवाही और स्वास्थ्य सुविधाएं के कमी के चलते अपनी जान गंवाती रहेंगी।

Guptkashi nidhi: Guptkashi nidhi death case
Image: Guptkashi nidhi death case (Source: Social Media)

रुद्रप्रयाग: उत्तराखंड के पहाड़ों की बदतर और बेहाल स्वास्थ्य सेवाओं से कोई भी अंजान नहीं रहा है। अस्पताल जान देने वाले नहीं लेने वाले बनते जा रहे हैं। पहाड़ों की कई बेकसूर गर्भवती महिलाओं को बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्थाओं की कीमत अपनी जान देकर चुकानी पड़ रही है। न जाने, आखिर गर्भवती महिलाओं की मृत्यु का यह सिलसिला कहां जाकर थमेगा और कब तक पहाड़ की बेटियों को नेताओं और प्रशासन की लापरवाही का खामियाजा भुगतना पड़ेगा। सत्ता की भूख में खोखले वादे करने वाले नेताओं को आखिर इंसान की जान की कीमत कब समझ में आएगी। अस्पताल में नई जिंदगी को जन्म देने वाली बेकसूर गर्भवती महिलाएं बदहाल स्वास्थ्य सेवाओं के कारण अपनी जान से हाथ धो रही हैं। आखिर इन बेकसूर महिलाओं के जान की जिम्मेदारी किसकी है। सवाल यह है कि आखिर पहाड़ों पर विकास के नाम पर अब तक ढोंग क्यों किया जा रहा है। बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्थाओं को दर्शाती शर्मनाक खबर रुद्रप्रयाग जिले से सामने आ रही है जहां पर एक और बेटी अपनी जिंदगी की जंग प्रशासन की लापरवाही में हार गई है। जी हां, रुद्रप्रयाग जिला अस्पताल में नर्स के तौर पर कार्यरत एक गर्भवती महिला स्वास्थ्य प्रशासन की लापरवाही के कारण अपनी जिंदगी से हाथ धो बैठी है। सोचिए जिस महिला ने अब तक कई जिंदगियों को बचाने में अपना योगदान दिया हो उसी महिला को बदतर स्वास्थ्य व्यवस्थाओं की कीमत अपनी जान देकर चुकानी पड़ी। इससे अधिक शर्मनाक और क्या होगा?

ये भी पढ़ें:

यह भी पढ़ें - पहाड़ का बीरेंद्र सिंह रौतेला दिल्ली में लापता..समाजसेवी रौशन रतूड़ी ने की मदद की अपील
रुद्रप्रयाग जिले के गुप्तकाशी क्षेत्र की निवासी 28 वर्षीय निधि रगडवाल( पत्नी दीपक रगडवाल ) महादेव मंदिर रुद्रप्रयाग जिला अस्पताल के आयुर्वेदिक पंचकर्म में नर्स के तौर पर कार्यरत थी। 28 वर्षीय निधि का पहले से ही एक बच्चा है और उसका दूसरा बच्चा होने वाला था जिसको लेकर परिवार में सभी लोग बेहद उत्साहित थे। बीते शुक्रवार को निधि को प्रसव पीड़ा हुई जिसके बाद उसके परिजन उसको लेकर जिला अस्पताल पहुंचे जहां पर सुबह 11 बजे निधि को भर्ती किया गया और शाम को 4:15 पर निधि की डिलीवरी हुई और उसने एक स्वस्थ बच्चे को जन्म दिया। बच्चे को जन्म देने के बाद निधि का रक्तस्त्राव बंद नहीं हुआ। 2 घंटे तक डॉक्टर संसाधनों की कमी में निधि को बचाने का व्यर्थ प्रयास करते रहे और 2 घंटे तक निधि जीवन और मौत के बीच झूलती रही मगर उसका रक्तस्राव बंद नहीं हुआ। इसके बाद डॉक्टरों ने हार मान ली और उसके परिजनों को कहकर निधि को हायर सेंटर रेफर कर दिया। बेस अस्पताल पहुंचने के बीच दर्द से तड़पती हुई निधि की मृत्यु हो गई। जी हां, बता दें कि निधि की यह दूसरी डिलीवरी थी इससे पहले निधि की नॉर्मल डिलीवरी हुई थी। जिला अस्पताल में 2 घंटे तड़पने के बाद निधि को अपनी जान देकर बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्थाओं की कीमत चुकानी पड़ी।

ये भी पढ़ें:

यह भी पढ़ें - उत्तराखंड: राजनीतिक पारी की शुरुआत करने वाले हैं कर्नल अजय कोठियाल..फेसबुक पोस्ट से दिया संकेत
निधि के घर में मासूम की किलकारियां तो गूंजी मगर नन्ही सी जान को पैदा करने वाली मां हमेशा-हमेशा के लिए मौन हो गई। निधि की मृत्यु के बाद सही उसके परिजनों के बीच में कोहराम मचा हुआ है। निधि के दोनों बच्चे बिन मां के हो गए हैं। इसी के साथ जिला अस्पताल की स्वास्थ्य व्यवस्थाओं के ऊपर भी बड़े सवाल खड़े हो गए हैं। बता दें कि इस अस्पताल में पहले भी कई गर्भवती महिलाओं की मृत्यु हो चुकी है, मगर प्रशासन की नींद नहीं टूट रही है। रुद्रप्रयाग जिला चिकित्सालय में इस केस को देख रहे डॉ दिग्विजय सिंह रावत का कहना है कि महिला की नॉर्मल डिलीवरी हुई और डिलीवरी सक्सेसफुल भी हो गई मगर महिला का रक्त स्त्राव बंद नहीं हुआ और संसाधनों की कमी के कारण जिला अस्पताल में महिला को ठीक उपचार नहीं मिल पाया जिसके बाद उसको हायर सेंटर रेफर किया गया मगर उसके रास्ते में ही महिला की मृत्यु हो गई। डॉक्टर रावत ने बताया है कि महिला की ब्लीडिंग इतनी ज्यादा हो गई थी कि उनको बचाना नामुमकिन था। कहने को तो यह महज घटना थी जिसकी शिकार निधि हुई मगर अपर्याप्त स्वास्थ्य सुविधाओं के कारण अब तक पहाड़ों पर ऐसे कई निधियों की जान की भेंट चढ़ चुकी है। ऐसी शर्मनाक घटनाओं के बाद भी नेताओं की नींद नहीं टूट रही है। हर साल करोड़ों रुपए जिला चिकित्सालय पर खर्च होते हैं मगर उनकी स्वास्थ्य सुविधाओं को देखकर ऐसा प्रतीत नहीं होता। जनप्रतिनिधियों से लेकर अधिकारियों और नेताओं तक सभी को सत्ता की भूख है और इसीलिए इंसान की जान की कीमत अभी तक उनको पता नहीं लग सकी है। अगर इस विषय में जरूरी कदम नहीं उठाए गए तो आगे भी और कई गर्भवती महिलाओं को अपनी जान की कीमत चुकानी पड़ेगी और तब भी तमाम जनप्रतिनिधि, सरकारी अधिकारी और नेता चुप्पी साध कर बैठे रहेंगे।