उत्तराखंड देहरादूनUttarakhand backward in terms of sex ratio

उत्तराखंड में सेक्स रेश्यो के शर्मनाक आंकड़े..हरियाणा से भी फिसड्डी राज्य बना

चाइल्ड सेक्स रेशियो में सबसे फिसड्डी रहा उत्तराखंड। 1000 बालकों पर केवल 840 बालिकाएं। सेक्स रेशियो के मामले में हरियाणा को भी पीछे पछाड़ा

Uttarakhand Sex Ratio: Uttarakhand backward in terms of sex ratio
Image: Uttarakhand backward in terms of sex ratio (Source: Social Media)

देहरादून: नीति आयोग ने हाल ही में लिंग अनुपात के आंकड़े जारी किए हैं। आंकड़े सुनकर आप भी चौंक जाएंगे। उत्तराखंड ने शिशु जन्म में लिंग अनुपात के मामले में सबसे पिछड़े राज्य के तौर पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है। जी हां, उत्तराखंड को चेतावनी भी दी थी गई मगर राज्य समय रहते नहीं चेता और न ही लिंग अनुपात की ओर उत्तराखंड ने जरूरी कदम उठाए और अब इसका परिणाम आपके सामने है। उत्तराखंड सेक्स रेशियो में सबसे फिसड्डी राज्य के रूप में सामने आया है। 2011 के मुकाबले उत्तराखंड और 50 प्वाइंट नीचे चला गया है। नीति आयोग के ताजा जारी किए गए आंकड़ों से यह साबित हुआ है। आयोग ने हाल ही में सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स को लेकर जो डाटा जारी किया था और उसमें शिशु जन्म में लिंग अनुपात के मामले में उत्तराखंड राज्य आखिरी नंबर पर आया है। एसडीजी के आंकड़ों के हिसाब से बालक बालिका लिंगानुपात के मामले में उत्तराखंड में केवल 840 का औसत है यानी कि राज्य में प्रति हजार बालकों पर केवल 840 बालिकाएं ही जन्मती हैं।

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2011 में यह आंकड़ा 890 था। सबसे दुख की बात यह है कि उत्तराखंड को विशेषज्ञों ने 5 साल पहले ही इस बात की चेतावनी दे दी थी मगर खतरे की घंटी को नजरअंदाज करने का अंजाम आज सबके सामने है और उत्तराखंड लिंग अनुपात के मामले में सबसे पिछड़ा हुआ राज्य है। हैरत और दुख की बात यह है कि 2021 में भी ऐसे शर्मनाक और चिंताजनक आंकड़े सामने आ रहे हैं। इस से भी ज्यादा हैरान करने वाली बात यह है कि जो राज्य लिंग अनुपात के मामले में सबसे अधिक पिछड़ा था वह राज्य भी उत्तराखंड से आगे चला गया है। हम बात कर रहे हरियाणा की। जी हां, लिंगानुपात के मामले में उत्तराखंड ने हरियाणा को भी पछाड़ दिया है। हरियाणा में यह अनुपात 843 का रहा तो वहीं पंजाब में यह अनुपात 890 रहा। पहले इन राज्यों में सेक्स रेशियो के आंकड़े काफी चिंताजनक थे मगर इन राज्यों के आंकड़े इस बार बेहतर दिखाई दिए हैं। मगर उत्तराखंड ने इन दोनों राज्यों को भी पछाड़ दिया है और आखिरी नंबर पर आया है। सबसे बेहतर आंकड़े छत्तीसगढ़ में दिखाई दिए। छत्तीसगढ़ में यह अनुपात 1000:958 का रहा और यह साफ तौर पर राष्ट्रीय औसत से कहीं ज्यादा है। वहीं केरल इस लिस्ट में 957 के अनुपात के साथ दूसरे नंबर पर रहा। ताजा आंकड़ों के मुताबिक बच्चों के जन्म के समय लिंग अनुपात में देश का औसत 899 है तो उत्तराखंड में केवल 840 है। भारत के जनगणना कमिश्नर ने संयुक्त रूप से जो अध्ययन किया था उसके मुताबिक 2016 की रिपोर्ट में यह साफ कहा गया था कि उत्तराखंड में अगर प्रशासन ने लिंग अनुपात के ऊपर ध्यान नहीं दिया तो 2021 में यह आंकड़ा 800 के आसपास पहुंच जाएगा। उनकी भविष्यवाणी सच हुई। आगे पढ़िए

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उत्तराखंड में लापरवाही करते हुए इस दिशा में जरूरी कदम नहीं उठाए और अब इसके नतीजे हम सबके सामने हैं। उत्तराखंड में बालिका भ्रूण हत्याओं का होना बेहद चिंताजनक है। आपको बता दें कि 2011 की जनगणना के मुताबिक 6 साल की उम्र तक के बच्चों के मामले में उत्तराखंड का सेक्स रेश्यो 890 का था यानी कि 2011 में हर हजार बालकों पर 890 लड़कियां थीं मगर अब यह अनुपात 50 पॉइंट तक और गिर चुका है यानी कि पिछले 10 साल में उत्तराखंड में तेजी से भूण हत्या हुई हैं। उत्तरकाशी के आंकड़े भी चौंका देने वाले हैं। क्या आपको याद है 2019 का जुलाई का महीना जब उत्तरकाशी के 132 गांवों में 3 महीने से किसी भी बालिका का जन्म नहीं हुआ था। जबकि उस समय में ही 216 बालकों का जन्म हो गया था। उस समय भी उत्तराखंड सरकार को लिंग अनुपात के मामले में चेतावनी दी गई थी मगर उन सभी चेतावनियों कि गूंज सरकार के ऊपर बेअसर रही और अब ताजा आंकड़े बता रहे हैं कि बच्चों के जन्म के समय लिंग अनुपात के मामले में उत्तराखंड सभी राज्यों के मुकाबले सबसे पिछड़ा हुआ राज्य है।