चमोली: देवभूमि उत्तराखंड की कुछ बातें वास्तव में बेमिसाल हैं। कुछ कहानियां ऐसी हैं, जो वास्तव में सोचने पर मजबूर कर देती हैं कि हमारे पूर्वजों के वक्त कैसी परंपराएं निभाई जाती थीं। इन्हीं पौराणिक परंपराओं मे एक कहानी या यूं कहें कि एक जनश्रुति ऐसी भी जिसके बारे में जानकर आश्चर्य होता है। पहाड़ में पौराणिक मान्यताएं है कि कभी केदारनाथ व बदरीनाथ की (Pujari track of Kedarnath Badrinath) पूजा-अर्चना के लिए पहले एक ही पुजारी थे। जी हां..अक्सर आपने केदारघाटी और बद्रिकाश्रम में इन बातों को सुना होगा। कहा जाता है कि एक ही पुजारी शाम को बदरीनाथ व सुबह केदारनाथ पूजा के लिए हिमालय की पगडंडियों से होकर पहुंचते थे। दोनों धामों के कपाट खोलने के लिए भी पुजारी व अन्य लोग इसी रास्ते से आवाजाही करते थे। अब उस ट्रैक की खोज हो रही है लेकिन सरकार की कोशिश परवान नहीं चढ़ पा रही है। आगे पढ़िए
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जून 2013 में केदारनाथ आपदा आई, तो उसके बाद इस प्राचीन मार्ग की खोज व संरक्षण को लेकर शासन स्तर पर जोर दिया गया था। साल 2014/2015 में केदारनाथ वन्य जीव प्रभाग द्वारा करीब 3 करोड़ की लागत से त्रियुगीनारायण-तोषी-केदारनाथ और चौमासी-खाम बुग्याल-केदारनाथ वैकल्पिक मार्गों का निर्माण किया गया। उस दौरान केदारनाथ व बदरीनाथ को जोड़ने वाले प्राचीन मार्ग की खोज की मुहिम शुरू हुई। इस ट्रैक को पुजारी ट्रैक नाम दिया गया था। उस दौरान कहा गया कि इस पूरे ट्रेक पर प्राकृतिक झील, ग्लेशियर और चट्टानें मौजूद हैं। मिशन को धरातल पर उतारने के लिए NIM ने 2015 में एवरेस्ट विजेता सूबेदार तेजपाल सिंह के नेतृत्व में दस सदस्यीय टीम का गठन भी किया था लेकिन शासन स्तर पर सहयोग नहीं मिल पाया। 6 साल का वक्त गुजर गया लेकिन केदारनाथ और बदरीनाथ (Pujari track of Kedarnath Badrinath) को जोड़ने वाले पुजारी ट्रेक को खोजने की योजना धरातल पर नहीं उतर पाई है।