चमोली: उत्तराखंड के चमोली में स्थित लाटू देवता का मंदिर देश के सबसे रहस्यमयी मंदिरों में से एक है। इस मंदिर में भक्तों को मंदिर के अंदर दर्शन करने की इजाजत नहीं है।
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इतना ही नहीं मंदिर और आसपास के क्षेत्रों में कई रहस्यमयी मान्यताएं प्रचलित हैं। इस क्षेत्र में नाग दिवाली मनाई जाती है। यही नहीं गांव में जब बेटियों की विदाई होती है तो वो डोली में नहीं बल्कि घोड़े पर सवार होकर विदा होती हैं। आपको सुनने में अटपटा जरूर लगेगा, लेकिन ये सच है। लाटू मंदिर चमोली के वांण गांव में स्थित है। लाटू को मां नंदा (देवी पार्वती) का धर्म भाई माना जाता है। यह पहला ऐसा मंदिर है, जिसके अंदर कोई भी श्रद्धालु प्रवेश नहीं करता। इस मंदिर के अंदर क्या है, आज भी कोई इस बारे में नहीं जानता। श्रद्धालुओं को यहां प्रवेश करने की इजाजत नहीं है। मान्यताओं के अनुसार लाटू देवता मंदिर के अंदर नागराज मणि के साथ प्रवास करते हैं और नागमणि को कोई देख नहीं सकता है। हालांकि इस रहस्य से आज तक पर्दा नहीं उठ सका है कि लाटू देवता मंदिर के भीतर क्या है। आगे पढ़िए
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पुजारी भी यहां पर आंखों में पट्टी बांधकर पूजा करते हैं। लाटू देवता का मंदिर देवाल ब्लाक में समुद्रतल से साढ़े आठ हजार फीट की ऊंचाई पर ब्लाक के अंतिम गांव वांण से करीब 800 मीटर दूर स्थित है। मंदिर को लेकर कई मान्यताएं प्रचलित हैं। कहा जाता है कि एक बार मां नंदा के दर्शन के लिए कन्नौज के गौड़ ब्राह्मण लाटू कैलाश पर्वत की यात्रा कर रहे थे। वे वांण गांव पहुंचे। उन्हें प्यास लगी तो उन्होंने एक महिला से पीने का पानी मांगा। महिला बोली कि उसकी कुटिया में तीन घड़े रखे हैं। इनमें एक घड़े में पानी है, उससे पानी पी लें, लेकिन लाटू ब्राह्मण भूलवश पानी के घड़े की जगह दूसरे घड़े में रखी मदिरा पी गए। खुद के इस काम से लाटू ब्राह्मण इस कदर दुखी हुए कि उन्होंने अपनी जीभ काट दी। कहा जाता है कि इस घटना के बाद मां नंदा देवी ने सपने में लाटू ब्राह्मण को दर्शन दिए। उन्होंने लाटू ब्राह्मण से कहा कि वांण से आगे हिमालयी नंदा देवी राजजात यात्रा में वे उनके धर्म भाई बनकर यात्रा की अगुवाई करेंगे। तब से लाटू देवता बारह वर्षों में आयोजित होने वाली नंदा देवी राजजात यात्रा की अगुवाई करते हैं। वांण गांव की एक और विशेष परंपरा है। ग्रामीण मां नंदा देवी को डोली में बैठाकर श्री नंदा देवी राजजात यात्रा में कैलाश ले जाते हैं, इसलिए अपनी आराध्य मां नंदा के सम्मान में ग्रामीण अपनी बेटियों की शादी में दुल्हन को भी डोली के बजाय घोड़े पर बैठाकर विदा करते हैं।