उत्तराखंड china import ration in uttarakhand says report

उत्तराखंड के 6 गांव चीन का राशन खाने को मजबूर हैं, 400 परिवारों का दर्द कौन सुनेगा?

भारत में रहकर भी करीब 400 लोग चीन के रहम-ओ-करम पर पल रहे हैं। चिंता की बात ये है कि ये हाल उत्तराखंड में ही है। पढ़िए ये पूरी खबर

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Image: china import ration in uttarakhand says report (Source: Social Media)

: वो रहते भारत में है। उन्हें भारत की नागरिकता मिली हुई है। फिर क्या वजह है कि वो खाने के लिए पड़ोसी मुल्क चीन पर निर्भर हैं? अपना पेट भरने के लिए क्यों उन्हें चीन की तरफ देखना पड़ रहा है। इसकी वजह जानने के बाद आपको हैरानी जरुर होगी। भारत सरकार के लिए चिंता का विषय है कि उनके देश के कई गांव के लोग चीन से राशन ले रहे है। ये बात गंभीर है क्योंकि उत्तराखंड के कई गांव उस देश पर खाने के लिए निर्भर हो रहे है जो भारत की जमीन हथियाने के ताक पर बैठा रहता है। चीन ने अब बड़े ही कूटनीतिक अंदाज में भारत में घूसपैठ करने की कोशिश की है। चीन इन गांवों के लोगों की कमजोरी पकड़कर उसके जरिए अपना मकसद साधने की कोशिश कर रहा है। एक बड़ी वेबसाइट में छपी खबर के मुताबिक उत्तराखंड में तिब्बत सीमा से सटे गर्ब्यांग, गुंजी, नपल्चू, नाभि, रौंककौंग, कुटी करीब 6 गांव ऐसे है जहां के निवासी चीन का राशन, रिफाइंड, सब्जियां-मसाले और नमक खा रहे हैं।

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ये राशन चीन के जरिये नेपाल के छांगरु तिंकर के रास्ते भारत पहुंच रहा है। दरअसल चीन से राशन लेने की इन लोगों की मजबूरी की वजह ये है कि भारत की तरफ से इन तक राशन नहीं पहुंचता। नजंग के आगे रास्ता बंद होने की वजह से सीमांत गांवों के लोगों के लिए जरूरी सामान नहीं पहुंच पा रहा है। इस वजह से इन गांवों के लोगों को अपनी जरुरत का सामान लाने के लिए नेपाल जाना पड़ रहा है। आपको बता दे कि इन गांवों में तकरीबन 350-400 परिवार रहते हैं। कैलाश मानसरोवर यात्रा मार्ग के इन गांवों में धारचूला से खाने-पीने की वस्तुओं की सप्लाई होती है। धारचूला से लगभग 100 किमी दूरी पर बसे इन गांवों तक घोड़े, खच्चर से माल पहुंचाया जाता है। लेकिन धारचूला से गुंजी तक निर्माणाधीन सड़क के लिए पहाड़ काटने का काम जारी है। जिसकी वजह से रसद इन ग्रामीणों तक नहीं पहुंच रही है।

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वहीं धारचूला से 56 किमी दूर बसे गर्बाधार गांव के आगे ब्लास्टिंग की वजह से पहाड़ों से मलबा गिरने का डर है। इस वजह से घोड़े, खच्चर इन रास्तों पर नहीं जा रहे हैं। जरुरत का सामान पहुंचने का हर रास्ता बंद होने की वजह से सीमांत गांवों में रह रहे लोगों के लिए खाने-पीने की वस्तुओं के भी लाले पड़ गए है। ऐसे में ये ग्रामीण सीतापुल से नेपाल के छांगरु तिंकर पहुंच कर वहां से चीन का रिफाइंड, चावल, सब्जियां, मसाला आदि खरीदकर ला रहे हैं। खास बात यह है कि तिब्बत सीमा से सटे ये गांव सरकारी अफसरों और कर्मियों के हैं। गर्ब्यांग गांव से कई आईएएस, पीसीएस अफसर निकले हैं। कई अफसर रिटायर हो चुके हैं। यहां के तमाम लोग अब भी शासन में उच्च पदों पर कार्यरत हैं। लेकिन राशन नहीं मिलने की वजह से अब इन गांवों के लोगों को दूसरे देश की तरफ देखना पड़ रहा है।

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भारत के आखिरी गांल कुटी के गुलाब सिंह का कहना है कि केंद्र और प्रदेश सरकार भारत के आखिरी गांव में खाद्य सामग्री उपलब्ध नहीं करा पा रही हैं। लोग नेपाल के जरिए चीन से आने वाला चावल, तेल, मसाले खाने को मजबूर हैं। सरकार को हमारे बारे में भी सोचना चाहिए। आपको बता दे कि नजंग के आगे रास्ता बंद होने से माल इन लोगों तक नहीं पहुंच रहा है। जबकि गांव की अपनी विशेष पूजा पद्धति होती है जिसमें पूरे गांव को दावत देनी होती है। ऐसे में इन लोगों को नेपाल से रसद खरीद कर लानी पड़ती है। वही जब इस बारे में अंतरराष्ट्रीय भारत चीन एवं व्यापार पर्यटन अधिकारी और एसडीएम धारचूला राजकुमार पांडे से बात की गई तो उन्होंने बताया कि गुंजी के लिए रास्ता बंद होने की वजह से राशन नहीं पहुंच पाया। ऊपर के गांवों में हेलीकॉप्टर से राशन पहुंचाया गया है। पीडीएस सिस्टम से भी हर गांव में चावल आदि पहुंचा दिया गया है।